आज तुम्हें ये आख़िरी खत है हमारा। तुम्हें याद है जाते वक्त तुमने कहा था कि हमारे प्रेम में कभी दूरी नहीं आएगी । दूर रह कर भी तुम मोहब्बत की रस्मों को निभाओगे लेकिन तुम तो जैसे हमें भूल ही गए
क्या निभाओगे तुम
अहद – ए – मोहब्बत
जब खत लिखने का
वादा न निभा सके
तुम कहते थे कि इश्क की दुनियां सजाओगे संग हमारे। हमने भी जाने क्यूं इस बात पर यकीं कर कितने ही ख़्वाब सजा लिए थे इन आंखों में। जो अब बिखर रहें हैं रेत के महल की तरह।
क्या बनाओगे तुम
आशियां ए मोहब्बत
जब तुम एतबार के
कतरे न सहेज सके
जब हमने कहा था कि डर लगता है दुनियां से तो तुमने कहा कि क्यूं बेवजह डरती हो। हमारे इश्क के आगे जमाने को झुकना पड़ेगा। मैं साया बन साथ रहूंगा तुम्हारे लेकिन तुमने तो सुध ही न ली हमारी।
अब क्या जवाब दें हम
ज़माने के सवालों का
क्या करोगे अदावत
तुम हमारी खातिर
जब राह – ए – वफ़ा पर
कुछ कदम भी न चल सके
तुमने वादे तो बहुत किए पर फासलों ने तुम्हारी मोहब्बत को कम कर दिया और वो इश्क ही क्या जो दूरी होने पर फीका पड़ जाए। जिसमें यकीं की जमीं न हो। जिसका चिराग़ जमाने की आंधी में बुझ जाए।
न करेंगे अब एतबार
न इंतज़ार तुम्हारा
जब तुम हमारे जज़्बातों का
एहतराम न कर सके।
अदिति टंडन, आगरा ( उप्र )