प्रधानमंत्री मोदी का कांग्रेस अध्‍यक्ष को फोन करना : राजनीतिक अदावत के बीच भी गुंजाइश शेष है

Post by: Rohit Nage

Prime Minister Modi's call to Congress President: There is scope left even amidst political enmity
  • ⦁डॉ. मयंक चतुर्वेदी

मंच सजा हुआ था, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे बोलने के लिए खड़े होते हैं, कठुआ जिले के जसरोटा निर्वाचन क्षेत्र में वे बोले, “हम जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए लड़ेंगे। मैं 83 साल का हूं और इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूं। मैं तब तक जिंदा रहूंगा, जब तक प्रधानमंत्री मोदी सत्ता से बाहर नहीं हो जाते।” खरगे अभी बोल ही रहे थे कि अचानक उनका सिर तेजी से चकराने लगा, सामने सब कुछ उलट-पुलट सा दिख रहा था… ऐसा लगा वे यहीं गिर जाएंगे और इस तरह उनकी तबीयत खराब होना शुरू हो गई। फिर भी खरगे ने जैसे-तैसे खुद को संभाला।

खरगे की इस बिगड़ती तबीयत को मंच पर बैठे नेताओं ने भी महसूस किया, वे तुरंत ही माइक के पास दौड़े। खरगे ने भी चक्कर आने के कारण अपना भाषण बीच में ही रोक दिया था, अब तक मंच के नीचे एक दम सन्‍नाटा छा चुका था। कांग्रेस नेताओं उन्हें सोफे पर बिठाया, इस बीच कुछ लोग उन्हें हवा करने लगे। उनके जूते भी खोल दिए गए। बाद में उनकी हालत में सुधार होने लगा। मेडिकल ट्रीटमेंट मिलने के बाद मल्लिकार्जुन खरगे दोबारा मंच पर खड़े हुए और प्रधानमंत्री मोदी पर निधाना साधने लगे, पहले की तरह फिर दोबारा उन्‍होंने दोहराया, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटाने से पहले वे मरने वाले नहीं हैं। मैं तब तक जिंदा रहूंगा, जब तक प्रधानमंत्री मोदी सत्ता से बाहर नहीं हो जाते….“मैं बात करना चाहता था. लेकिन, चक्कर आने के कारण मैं बैठ गया, कृपया मुझे माफ करें।“

निश्‍चित ही राजनीति में आरोप-प्रत्‍यारोप लगते हैं, सत्‍ता पक्ष है तो विपक्ष भी है, दोनों का निर्माण और कार्य, लोक के कल्‍याण के लिए है। दोनों का अपना किसी भी मामले को देखने का नजरिया भिन्‍न हो सकता है, लेकिन एक समानता तो दोनों से अपेक्षित रहती है, वह है मानवता की। संवेदना के स्‍तर पर पक्ष हो या विपक्ष अपेक्षा दोनों से ही लोक जीवन में समान रूप से की जाती है। हालांकि ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि समाज जीवन में इसका अक्षरश: कोई पालन भी करे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर इसमें सबसे आगे दिखे हैं। राजनीतिक मतभेद एवं विचारों की दूरियों को एक तरफ रख असहमतियों के बीच अपनी तमाम व्‍यस्‍तताओं के बीच भी अपने विरोधी का कष्‍ट के समय हालचाल जानने का अवसर उन्‍होंने निकाल ही लिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जैसे ही खरगे के भाषण के वक्‍त चक्‍कर आने एवं तबीयत बिगड़ने की जानकारी लगी, उन्‍होंने तुरंत ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता का हाल जानने के लिए उनसे बातचीत की। सिस्‍टम को यथासंभव एक्‍ट‍िव किया और उनके स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखने के लिए कहा। वास्‍तव में ये बड़ी बात है कि जब आपके खिलाफ ही जहर उगला जा रहा हो, तब भी आप अपने विरोधी विचार के सम्‍मान में कोई कमी न होने दें। दरअसल, आप प्रधानमंंत्री मोदी के इस कदम को राजनीतिक तनाव के बीच शिष्टाचार का एक उल्लेखनीय उदाहरण भी मान सकते हैं। आज यह शिष्‍टाचार भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती भी बयां कर रहा है। साथ ही उस प्राचीन भारत की ज्ञान परंपरा की भी याद दिला रहा है, जिसमें तमाम असहमतियों को समान रूप से एक साथ अपनी अभिव्‍यक्‍ति का अधिकार प्राप्‍त रहा…

क्‍या फर्क पड़ता है? कोई मंडन मिश्र शब्दाद्वैत का समर्थन करे, मंडन ने अद्वैतप्रस्थान में अन्यथाख्यातिवाद का बहुत हद तक समर्थन किया, पर सुरेश्वर इसका खंडन करते हैं। मंडन के अनुसार जीव अविद्या का आश्रय है, सुरेश्वर ब्रह्म को ही अविद्या का आश्रय और विष मानते हैं। इसी मतभेद के आधार पर अद्वैत वेदांत के दो प्रस्थान चल पड़े। वहीं, शंकराचार्य के विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं, जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है। फिर चार्वाक दर्शन को भी देख सकते हैं, जोकि एक प्राचीन भारतीय भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है तथा पारलौकिक सत्ताओं के सिद्धांत को यह स्वीकार नहीं करता। इसलिए यह दर्शन वेदबाह्य कहा गया है। इसके समेत कुल वेदबाह्य दर्शन छह हैं- माध्यमिक, योगाचार, सौत्रान्तिक, वैभाषिक, और आर्हत(जैन)। वस्‍तुत: इन सभी में वेद से असम्मत सिद्धान्तों का प्रतिपादन है।

बौद्ध धर्म दार्शनिक तर्क और ध्यान के अभ्यास दोनों को जोड़ता है, यह धर्म मुक्ति के लिए कई बौद्ध मार्ग प्रस्तुत करता है। भारत में जब सिख पंथ का प्रादुर्भाव हुआ तो वह भी गुरुओं की वाणी से प्रकट हुआ। ये सभी दर्शन, मत, विचार भारत में एक साथ, एक समय में प्रगति करते हुए आपको मिलते हैं, कई बार एक घर में चार सदस्‍य अपने-अपने मत के पक्‍के मिल जाते हैं, कहीं कोई विरोध नहीं, कहीं कोई मनमुटाव नहीं, न कोई मनभेद, सभी अपने स्‍तर से विकास, संभावनाओं और अंतत: मुक्‍ति का मार्ग खोज रहे हैं। यही तो है भारत की खूबसूरती। असहमतियों के बीच भी सहमति…फिर भारत का लोकतंत्र भी तो यही है…।

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