जल स्रोतों के संरक्षण एवं पुनर्जीवन के लिये नगरीय निकायों में 5 से 15 जून तक विशेष अभियान

जल स्रोतों के संरक्षण एवं पुनर्जीवन के लिये नगरीय निकायों में 5 से 15 जून तक विशेष अभियान

  • – जन-प्रतिनिधियों, सामाजिक संस्थाओं एवं जन अभियान परिषद की सहभागिता से चलाया जायेगा अभियान
  • – अभियान के संदर्भ में नगरीय विकास एवं आवास विभाग द्वारा दिशा-निर्देश जारी

भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर प्रदेश के सभी नगरीय निकायों में जल स्रोतों तथा नदी, तालाबों, कुओं, बावडिय़ों एवं अन्य जल स्रोतों के संरक्षण एवं इनके पुनर्जीवन के लिये 5 जून से 15 जून तक विशेष अभियान चलाया जायेगा। यह विशेष अभियान जन-प्रतिनिधियों, सामाजिक व अशासकीय संस्थाओं एवं जन अभियान परिषद की सहभागिता से चलाया जायेगा। अभियान के तहत विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून से प्रदेश भर में मौजूद जल स्रोतों के स्थायी संरक्षण के लिये विभिन्न गतिविधियां की जायेंगी।

प्रमुख सचिव, नगरीय विकास एवं आवास विभाग नीरज मंडलोई ने इस विशेष अभियान के सुचारू संचालन एवं की जाने वाली गतिविधियों के संबंध में प्रदेश के सभी कलेक्टर्स को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये हैं। श्री मंडलोई ने सभी कलेक्टर्स से कहा है कि अभियान के दौरान अमृत 2.0 योजनान्तर्गत प्रचलित जल संरचनाओं के उन्नयन का कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता से कराया जाये। अमृत 2.0 योजना अंतर्गत नगरीय निकाय में चयनित जल संरचनाओं के अतिरिक्त यदि कोई नदी, झील, तालाब, कुआं, बावड़ी उपलब्ध है, जिसके पुनर्जीवन/संरक्षण की जरूरत है, तो इनके उन्नयन कार्य सामाजिक एवं जनभागीदारी के माध्यम से कराये जायें। जल संरचनाओं में मिलने वाले गंदे पानी के नाले-नालियों को स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम 2.0) के अंतर्गत लिक्विड वेस्ट मैनेजमेन्ट परियोजना के माध्यम से डायवर्सन के बाद शोधित कर जल संरचनाओं में छोड़ा जाये।

नगरीय निकाय द्वारा मौके पर जाकर चिन्हित संरचनाओं की मोबाइल एप के जरिये जियो-टैगिंग कराई जाये। इस कार्य के लिये अमृत 2.0 योजना के तकनीकी सलाहकारों की मदद लें। जीर्णोद्धार/नवीनीकरण किये जाने वाले जल संग्रहण संरचना के कैचमेन्ट में आने वाले अतिक्रमण एवं अन्य गतिरोधों को दूर करना और जीर्णोद्धार/नवीनीकरण के कार्य में अपने अनुभवों के आधार पर नगरीय निकाय जनभागीदारी से सलाह लेकर उपयुक्त कार्यों का चयन किया जाये। विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन तैयार करने एवं कार्य के क्रियान्वयन में भी आवश्यक सहयोग लिया जाये। कार्य क्रियान्वयन के दौरान जनभागीदारी श्रम, सामग्री, मशीनरी अथवा धनराशि के रूप में भी ली जा सकती है। जीर्णोद्धार/नवीनीकरण कार्य की सतत् निगरानी कर जीर्णोद्धार/नवीनीकरण के फलस्वरूप बढ़ी हुई जल भंडारण क्षमता के प्रयोजन एवं वितरण प्रणाली का निर्धारण किया जाये।

जल संरक्षण के जीर्णोद्धार/उन्नयन कार्य में कैचमेन्ट के अतिक्रमण हटाये जायें। कैचमेन्ट के उपचार जैसे नाले/नालियों की सफाई अथवा इनका डायवर्सन सिल्ट ट्रैप, वृक्षारोपण, स्टार्म वाटर ड्रेनेज मैनेजमेन्ट इत्यादि, बंड विस्तार, वेस्ट वियर सुधार अथवा निर्माण, जल-भराव क्षेत्र में जमा मिट्टी अथवा गाद को निकालना, डि-वीडिंग एरेशन, पिचिंग/घाट निर्माण कार्य किये जा सकते हैं। जल संग्रहण संरचनाओं से निकाली गई मिट्टी एवं गाद का उपयोग स्थानीय कृषकों के खेतों में किया जाये। जल संरचनाओं के किनारों पर यथासंभव बफर जोन तैयार किया जाये। इस जोन में हरित क्षेत्र/पार्क का विकास किया जाये। जल संरचनाओं के किनारों पर अतिक्रमण को रोकने के लिये फेंसिंग के रूप में वृक्षारोपण किया जाये तथा इनके संरक्षण के लिये सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से जागरूकता अभियान भी चलाया जाये।

जल संरचनाओं के आस-पास किसी भी प्रकार सूखा अथवा गीला कचरा फेंकना सख्ती से प्रतिबंधित किया जाये। प्रतिबंधित गतिविधियों के लिये सूचना पट्टी लगाई जाये। निकाय अंतर्गत पुराने कुएं एवं बावडिय़ों की साफ-सफाई/मरम्मत कार्य भी इसी अवधि में कराये जायें। निकाय क्षेत्र अंतर्गत विद्यमान रिहायशी रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम यदि बंद पड़े हैं, तो उनकी सफाई कराकर उन्हें पुन: उपयोग किये जाने के लिये जागरूक किया जाये। जल संरचनाओं की जल गुणवत्ता की जांच कराई जाये।

संरचनाओं के जीर्णोद्धार/नवीनीकरण कार्य के क्रियान्वयन के दौरान गुणवत्ता नियंत्रण के लिये निकाय के तकनीकी अमले, संभागीय कार्यालय एवं तकनीकी सलाहकारों द्वारा सतत मॉनीटरिंग की जाये। जल संरचनाओं के जीर्णोद्धार/उन्नयन उपरांत वाटर ऑडिट (संरचना की क्षमता वृद्धि के बाद कितना पानी जमा हुआ, कितना वितरित अथवा उपयोग हुआ तथा इसके क्या परिणाम और लाभ प्राप्त हुये) के आधार पर निर्मित संरचना परिणाम से प्राप्त हुए वास्तविक परिणामों का विश्लेषण और सत्यापन भी कराया जाये।

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