प्रलोभन या धोखे से धर्म परिवर्तन कराने पर कड़ी सजा का प्रावधान
भोपाल। नागरिकों को नियत समय-सीमा में लोक सेवा प्रदान करना सुनिश्चित करने के लिए अध्यादेश लाया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) ने कहा है कि अब चिन्हित की गई लोकसेवा तय समय-सीमा में अधिकारी द्वारा प्रदाय नहीं की जाती है तो वे सेवायें अपने आप ही नागरिकों को मिल जावेगी। इसे डीम्ड सेवा कहा जावेगा। यह जनहित में राज्य सरकार का क्रांतिकारी कदम है। जो लोक सेवायें मध्यप्रदेश लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम के तहत तय समय-सीमा में अधिकारी द्वारा आवेदक को प्रदान करनी होती है और तय समय-सीमा में आवेदक को प्रदाय नहीं होने पर अधिकारी पर जुर्माना लगाया जाता है। जुर्माने में मिली राशि आवेदक को दी जाती है। इस प्रावधान को जनहित में और प्रभावी बनाया गया है। इस अधिनियम में अध्यादेश के माध्यम से संशोधन कर प्रावधान किया जा रहा है कि सेवा प्रदाय की तय समस-सीमा तक यदि सेवा आवेदक को अधिकारी द्वारा प्रदाय नहीं की जाती है तो वे सेवायें स्वत: ही निर्धारित समय-सीमा के बाद आवेदक को मिल जाएगी।
मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश-2020
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम में अध्यादेश के जरिए संशोधन कर महिलाओं, बेटियों, विशेषकर नाबालिक बेटियों, अनुसूचित जाति, जनजाति के भाई-बहनों का नियम विरुद्ध धर्म परिवर्तन कराने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें न्यूनतम 2 वर्ष से लेकर अधिकतम 10 वर्ष तक का कारावास और 50 हजार रुपये का अर्थदण्ड दिया जा सकता है। लोभ, लालच, भय, प्रलोभन, परिचय छिपाकर धर्म परिवर्तन कराने या कुत्सितइरादों से धर्मांतरण कराने पर दण्ड दिया जा सकेगा। ऐसे अपराध बड़े पैमाने पर मध्यप्रदेश में हो रहे हैं। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। अपना धर्म छिपाकर या गलत व्याख्या कर धर्म परिवर्तन कराने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि अधिनियम विरुद्ध दो या अधिक व्यक्तियों का एक ही समय में सामूहिक धर्म परिवर्तन किये जाने पर न्यूनतम पांच वर्ष से अधिकतम 10 वर्ष तक कारावास और न्यूनतम एक लाख रुपये का अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि जिस व्यक्ति का धर्म परिवर्तन अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध किया गया है उसके माता-पिता, भाई-बहन इसकी शिकायत पुलिस थाने में कर सकेंगे। पीड़ित व्यक्ति के अन्य सगे संबंधी, कानूनी अभिभावक और दत्तक के संरक्षक भी परिवाद के माध्यम से सक्षम न्यायालय से आदेश प्राप्त कर सकेंगे। प्रस्तावित अधिनियम के अंतर्गत दर्ज किए गए अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होंगे। उनकी सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय ही अधिकृत होगा। यह अध्यादेश राज्यपाल को भेजा जा रहा है।
मिलावट करने पर आजीवन कारावास
मिलावट एक भयानक अपराध है। खाद्य पदार्थों और दवाईयों में यहां तक कि कोरोना संक्रमण के इलाज के उपयोग होने वाले प्लाज्मा में और कोरोना की वैक्सीन में मिलावट के समाचार मिले हैं। इससे बड़ा अपराध हो सकता है क्या? यह लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ है। यह किसी भी कीमत पर मध्यप्रदेश में नहीं चलने दिया जावेगा। इसके लिए भी कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश का अनुमोदन किया गया है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 272, 273, 274, 275 और 276 में संशोधन कर 6 माह के कारावास और एक हजार रुपये तक के जुर्माने के स्थान पर आजीवन कारावास और जुर्माना प्रतिस्थापित किया गया है। मिलावट करने वाले को आजीवन कारावास होगा। इस अध्यादेश में मिलावट कर सामग्री बनाने वाले को दण्ड मिलेगा। व्यापारी को दण्ड नहीं मिलेगा। जहां वस्तु बनती है, दोषी उस कारखाने का मालिक होगा। उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे। जिन्दगी भर जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी। नई धारा में 273(क) को जोड़ा गया है। जिसमें एक्सपायरी डेट के खाद्य पदार्थ के विक्रय पर पांच साल का कारावास और एक लाख रुपये जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान किया गया है। मिलावट के खिलाफ जो जंग चल रही है उसमें यह कानून मिलावट रोकने का बहुत बड़ा माध्यम बनेगा।