पर्वों की त्रिवेणी सोमवार को, ऐसे करें पूजा पाठ

Post by: Rohit Nage

इटारसी। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya,), वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat), शनि जयंती (Shani Jayanti,) सर्वार्थ सिद्धि एवं सुकर्मा योग में 30 मई को मनेगी।
मां चामुंडा दरबार भोपाल (Mother Chamunda Darbar Bhopal) के पुजारी पं. रामजीवन दुबे ने बताया कि शनि जयंती के दिन सोमवती अमावस्या और वट सावित्री का त्योहार भी मनाया जाएगा। शनि देव कुंभ राशि में रहेंगे ऐसा संयोग तकरीबन 30 साल बाद बन रहा है और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बनेगा। मकर, कुंभ, मीन राशि वालों को साढ़े साती शनि चल रहे हैं। कर्क, वृश्चिक राशी पर ढय्या शनि। शनि मंदिरों में भक्तों के द्वारा शनि देव की पूजा-पाठ होगी। सामवती अमावस्या, वट सावित्री पूजा, शनि जयंती तीनों पर्व 30 मई को धूम-धाम से मनाए जाएंगे।
ऐसी मान्यता है कि अगर सोमवती अमावस्या पर कोई उपवास करता है तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। इस दिन पितरों का तर्पण भी किया जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति को अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा इस दिन गंगा जल (Ganga Jal) से स्नान करने के साथ ही दान भी अवश्य करना चाहिए, इससे घर में सुख-शांति व खुशहाली आती है। सोमवती अमावस्या पर विधिवत स्न्नान करने से भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की कृपा बनी रहती है। साथ ही इस दिन सूर्यदेव को अघ्र्य देने और पीपल (Peepal) के वृक्ष की भी पूजा करनी चाहिए। घरों में स्नान करने वाले गंगा जल मिलाकर स्नान करें। गंगा जल का आचमन भी करें। सत्य नारायण की कथा विशेष लाभ देगी।
वट सावित्री व्रत को करके सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। धार्मिक मान्यताओं में वट सावित्री के व्रत का महत्व करवा चौथ जितना ही बताया गया है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं। पति के सुखमय जीवन और दीर्घायु के लिए वट वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु और लक्ष्मी (Lakshmi) की पूजा करती हैं। कच्चा सूत लेकर वट को लपेटकर 108 परिक्रमा करतीं हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से पति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि के साथ लंबी आयु की प्राप्ति होती है। हर साल ये व्रत ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। वट सावित्री व्रत वाले दिन सुहागिन महिलाएं प्रात: जल्दी उठें और स्नान करें। स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। शृंगार जरूर करें। साथ ही इस दिन पीला सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है। इस दिन बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री-सत्यवान (Savitri-Satyavan) और यमराज की मूर्ति रखें। बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, फूल और मिठाई चढ़ाएं। सावित्री-सत्यवान और यमराज (Yamraj,) की मूर्ति रखें। बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाएं। वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगें।

वट सावित्री व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। कहा जाता है कि इसी दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थीं। इस व्रत में महिलाएं सावित्री के समान अपने पति की दीर्घायु की कामना तीनों देवताओं से करती हैं, ताकि उनके पति को सुख-समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त हो सके।

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