सिकलसेल का फैलाव रोकने स्वैच्छिक जागरूकता अभियान

Post by: Rohit Nage

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– जनजातीय टोलों में सारिका समझायेंगी सिकल सेल कुंडली मिलाना
– डॉ. रणदीप गुलेरिया को भेंट किया जागरूकता गीतों का एल्बम
इटारसी। आमतौर पर हिन्दू (Hindu) परिवारों में विवाह पूर्व जन्म कुंडली मिलान पर विश्वास किया जाता है लेकिन अब नेशनल अवार्ड (National Award) प्राप्त विज्ञान प्रसारक (Vigyan Prasarak) सारिका घारू मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के जनजातीय टोलों में जाकर विवाह पूर्व सिकलसेल वैज्ञानिक कुंडली (Sickle Cell Scientific Kundli) मिलाना सिखाने जा रही हैं, वो भी बिना दक्षिणा के, अपने खर्चे पर।
इन्हीं प्रयासों के पहले चरण में सारिका ने 7 गीतों का वीडियो एल्बम (Video Album) तैयार किया है। इस एल्बम एवं जागरूकता गतिविधियों का जानकारी सारिका ने आल इंडिया इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंसेस एम्स नई दिल्ली के डायरेक्टर (All India Institute of Medical Sciences AIIMS New Delhi, Director) पद्मश्री प्रोफेसर रणदीप गुलेरिया (Padma Shri Professor Randeep Guleria) को भेंट की। एमीनेंट मेडिकल पर्सन का बीसी रॉय नेशनल अवार्ड (Eminent Medical Person, BC Roy National Award) प्राप्त डॉ रणदीप गुलेरिया ने सारिका के गीतों के अवलोकन के बाद कहा कि ये वीडियो गीत आम लोगों में सिकलसेल के कारण, लक्षण एवं बचाव के उपायों को सरल तरीके से पहुंचा सकेंगे।
सारिका ने कहा कि यह किसी वायरस, मच्छर या गंदगी से होने वाली संक्रामक बीमारी नहीं है। यह सिर्फ बीमार माता-पिता से बच्चों में अनुवांशिक रूप से जाती है। विवाह एवं बच्चे जन्म के पहले जागरूकता के द्वारा इस बीमारी की रोकथाम 100 प्रतिशत की जा सकती है।
सारिका ने बताया कि आदिवासी बहुल जिलों में फैले इस जन्मजात रोग के फैलाव को कम करने किये जा रहे बड़े प्रयासों के साथ अपना एक स्वैच्छिक योगदान दे रही हैं। वे 1 जून से मध्यप्रदेश के 22 प्रभावित जिलों में अपने खर्च पर जाकर जागरूकता का कार्य करेंगी। ये वीडियो एल्बम भी उन्होंने अपने खर्च पर तैयार किया है। सारिका ने बताया कि सिकल सेल रोगी दो प्रकार के होते हैं – एक रोगी और दूसरा वाहक। यदि माता पिता दोनों सिकल सेल रोगी हैं, तो उनके सभी बच्चे सिकल सेल रोगी होंगे। अगर माता पिता में से एक रोगी और दूसरा सामान्य है तो बच्चे रोग वाहक होंगे। अत: सिकल सेल रोगी या वाहक किसी सामान्य पार्टनर से विवाह करेगा तो इस रोग का फैलाव रोका जा सकता है।

क्या हैं लक्षण-

सारिका ने बताया कि इस जन्मजात बीमारी में रेड ब्लड सेल (Red Blood Cell) कठोर और चिपचिपी हो जाती है और उनका आकार गोल न होकर हंसिया या सिकल की तरह हो जाता है। ये जल्दी नष्ट हो जाती है, कई बार धमनियों में जम कर रक्त प्रवाह में रुकावट करती है जो कि दर्द के साथ जानलेवा भी हो जाता है। बीमारी का पता जन्म के एक साल के अंदर ही लग जाता है। संक्रमण, सीने में दर्द, जोड़ों में दर्द जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।

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