इटारसी। द्वारिकाधीश बड़ा मंदिर के प्रांगण में सोमवार से शुरू हुई सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा के पहले कलश यात्रा निकाली।
पहले दिन कथा प्रारंभ करते हुए कथा व्यास अंतरराष्ट्रीय कृष्ण समुदाय से मान्यता प्राप्त श्री श्री 1008 श्री राम कमल दास वेदांती जी के शिष्य पं. सौरभ दुबे ने कहा कि जन्मांतरे यदा पुण्यं, तदा भागवतं लभेत! अर्थात जन्म-जन्मांतर एवं युग-युगांतर में जब पुण्य का उदय होता है तब ऐसे अनुष्ठान शुरू होता है। श्रीमद्भागवत कथा एक अमर कथा है। इसे सुनने से पापी से पापी व्यक्ति भी पाप से मुक्त हो जाता है। श्री दुबे ने श्रीमद्भागवत कथा का महात्म्य बताते हुए कहा कि वेदों का सार युगों-युगों से मानव जाति तक पहुंचता रहा है। ‘भागवत महापुराण’ यह उसी सनातन ज्ञान की पयस्विनी है जो वेदों से प्रवाहित होती चली आ रही है। इसीलिए भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा गया है।
कथा के दौरान पं. दुबे ने वृंदावन का अर्थ बताते हुए कहा कि वृंदावन इंसान का मन है, कभी-कभी इंसान के मन में भक्ति जागृत होती है परंतु वह जागृति स्थाई नहीं होती। इसका कारण यह है कि हम ईश्वर की भक्ति तो करते हैं पर हमारे अंदर वैराग्य व प्रेम नहीं होता है इसलिए वृंदावन में जाकर भक्ति देवी तो तरुणी हो गई पर उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य अचेत और निर्बल पड़े रहते हैं।
पंडित दुबे ने बताया कि तुंगभद्रा अर्थात कल्याण करने वाली, 84 लाख योनियों से उत्थान दिलाने वाली यह मानव देह कल्याणकारी है जो हमें ईश्वर से मिलाती है। यह मिलन ही उत्थान है। आत्मदेव जीवात्मा का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य मोह, आसक्ति के बंधनों को तोड़, उस परम तत्व से मिलना है। यूं तो ऐसी कई गाथाएं, कथाएं हम अनेकों व्रत व त्योहारों पर भी श्रवण करते हैं, लेकिन कथा का श्रवण करने या पढऩे मात्र से कल्याण नहीं होता। अर्थात् जब तक इनसे प्राप्त होने वाली शिक्षा को हम अपने जीवन में चरितार्थ नहीं कर लेते, तब तक कल्याण संभव नहीं। आरती के साथ प्रथम दिवस की कथा का विश्राम हुआ।