दैत्यराज दक्ष के श्राप का भगवान शंकर ने किया निराकरण

Post by: Manju Thakur

इटारसी। अवाम नगर में चल रही श्री शिव महापुराण कथा में आचार्य मधुसूदन शास्त्री ने कहा कि इस कलयुग में एक पत्नी के रहते दूसरी अगर आ जाए तो तांडव नृत्य होता है, वह किसी भी परिवार से छुपा नहीं है। राजा इंद्र ने दैत्यराज दक्ष की 27 कन्याओं ने विवाह किया। लेकिन उनकी आशक्ति रोहणी के प्रति ज्यादा रही। जिन 27 बहनों को विवाह कर दैत्यराज दक्ष के यहां से इंद्र विवाह कर लाए थे। दक्ष ने हर तरह से इंद्र को समझाने की कोशिश की कि वह सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार करें। लेकिन इंद्र ने दक्ष की किसी बात पर ध्यान नहीं दिया। उसकी रोहणी के प्रति आशक्ति बढ़ती गई।
इंद्र के न मानने पर दैत्य राज दक्ष ने इंद्र को श्राप दिया कि वह क्षय रोग से पीडि़त हो जाए। इंद्र को जब इस बात का अहसास हुआ कि उससे बहुत बड़ा पाप हो गया है। तब वह देवताओं के पास गया और उनसे कहा कि मुझे क्षमा करो लेकिन देवताओं ने उन्हें ब्रम्हा के पास जाने की सलाह दी। ब्रम्हा ने कहा कि यह कार्य मेरे बस का नहीं है। दक्ष केवल भगवान शंकर की बात समझता है। सभी देवता और इंद्र भगवान शंकर के पास गए इंद्र ने अपने सभी पापों के लिए उनसे क्षमा मांगी। भगवान शिव ने पूरे श्राप को समाप्त नहीं किया। बल्कि उसके प्रभाव को कम किया। इसी कारण चंद्रमा शुक्ल पक्ष में चंद्रमा तेजस्वी रहते हैं और कृष्ण पक्ष में धूमीर हो जाते हैं। चंद्रमा की स्थिति से भगवान महादेव जिस स्थान पर निराकार से साकार हो गए थे वह स्थान आज भी सोमनाथ ज्योतिलिंग के नाम से जाना जाता है।
गुरूवार को कथा का विश्राम दिवस है। यजमान मेहरबान सिंह चौहान ने समस्त श्रद्धालुओं ने अनुरोध किया है कि वे कथा समापन पर भंडारे का प्रसाद लेने अधिक से अधिक संख्या में आएं। मेहरबान सिंह ने कहा कि भविष्य में उनकी इच्छा है कि पशुपतिनाथ धाम में गौशाला और वृद्धाश्राम को निर्माण हो, एवं मंदिर के गर्भग्रह में द्वादश ज्योर्तिलिंगों की प्रतिकृति स्थापित हो।

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