इटारसी। नर्मदा नदी के पानी में इन दिनों होने वाले पिस्टीया या जलगोभी खरपतवार के प्रकोप पर शासकीय एमजीएम कालेज की वनस्पतिशास्त्र की प्रोफेसर डॉ.राकेश मेहता का कहना है कि यह खरपतवार पानी से आक्सीजन खींच लेती है, जिससे जलीय जंतुओं के जीवन पर खतरा मंडराने लगता है और जैव विविधता की भी हानि होती है।
डॉ. मेहता के अनुसार पूर्व वर्षों में भी नर्मदा में एजोला का अतिक्रमण हुआ था। उन्होंने कहा कि यह एक एकबीज पत्री जलीय पौध है जिसकी पत्तियां गुलाबवत व्यवस्थित रहती हैं तथा तना आफसेट कहलाता है। इसकी अतिवृद्धि का कारण आफसेट तने का होना तथा वर्धी प्रजनन दर का बहुत तेज होना है, इसकी वृद्धि बीज के द्वारा भी होती है जिसका निर्माण गर्मी में होता है। उनका कहना है कि यह पौधा क्षारीय पानी एवं अधिक चूनायुक्त पानी में वृद्धि करता है। पिस्टीया का उद्गम स्थल वैज्ञानिक सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं अत: इसे अज्ञातोत्पन्न पौधों की श्रेणी में माना गया है। अचानक ऐसा प्रकोप अमेरिका और फ्लोरिडा-आस्ट्रिेलिया में भी देखा गया है। इसकी अतिवृद्धि का कारण इसकी कायिक प्रजनन की दर का बहुत तेज होना है, इसी कारण कुछ ही दिनों में सैंकड़ों पौधे, लाखों पौधों में तब्दील हो जाते हैं जिसके कारण ऊपरी सतह पर चटाई के समान संरचना बनाकर संपूर्ण सतह ढंक लेते हैं। इसकी जड़ें श्वसन द्वारा जल की आक्सीजन खींच लेते हैं जिससे जल में आक्सीजन की कमी हो जाती है।
ऐसे होता है नियंत्रण
इसका नियंत्रण रासायनिक विधियों से किया जाता है। एंडोथाल के प्रयोग से इस पर कंट्रोल संभव है। जैविक नियंत्रण वीविल कीड़े के द्वारा होता है जो इसकी पत्तियों को खाते हैं। इसके अतिरिक्त माथ (पतंगे) की कुछ प्रजातियां भी इसकी पत्तियों का भक्षण करती हैं। इस प्रकार इस जलगोभी का झीलों, धारा प्रवाहों सभी बहते हुए जल के स्रोतों में पाया जाता है। यह मच्छरों के प्रजनन स्थल के लिए उपयुक्त होते हैं तथा हाथीपांव के मच्छरों को आधार प्रदान करता है।