कव्वाली से फिजा हुई सुफियाना, उत्सव देशज का समापन

Post by: Manju Thakur

इटारसी। संगीत नाटक अकादमी द्वारा नगर पालिका परिषद इटारसी के सहयोग से गांधी मैदान पर विगत चार दिनों से चल रहे भारत की पारंपरिक, लोक एवं जनजातीय अभिव्यक्तियों का उत्सव देशज का समापन हो गया। समापन दिवस पर जहां मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध भगोरिया नृत्य में भील जनजाति की परंपरा के दर्शन हुए तो वहीं महाराष्ट्र के प्रसिद्ध लावणी को भी दर्शकों की भरपूर सराहना मिली। छह प्रस्तुति में त्रिपुरा का संगराई मोग नृत्य, जम्मू और कश्मीर का बच नगमा, तमिलनाडु का काई सिलम्बू अट्टम शामिल था तो अंतिम धमाकेदार प्रस्तुति में निजामी बंधुओं ने कव्वाली से मंच लूट लिया। कव्वाली की प्रस्तुति में श्रोताओं की ओर से फरमाइश नहीं रुक रही थी। लेकिन, समय की पाबंदी के कारण कार्यक्रम को तय वक्त पर ही खत्म करना पड़ा। निजामी बंधुओं की छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाईके, मेरे रश्के कमर, तूने पहली नजर…सहित उनके शेरों पर श्रोताओं ने भरपूर तालियां बजायीं।

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भगोरिया नृत्य, मप्र
भगोरिया मप्र की भील जनजाति का लोकप्रिय नृत्य है जो झाबुआ एवं अलिराजपुर अंचल में रहने वाली भील-भिलाल जनजाति के लोग करते हैं। भगोरिया पर्व फागुन माह में एक सप्ताह चलता है जिसमें प्रत्येक हाट बाजार में ढोल एवं मादल की थाप पर युवक-युवतियां आकर्षक वस्त्रों से सुसज्जित होकर उमंग से यह पर्व मनाते हैं।
कलाकार- भील भगोरिया नृत्य दल बाग के दल नायक गोविन्द गेहलोत, नर्तक रतन सिंह भावर, विनाश रावत, रवि रावत, सुरेश रावत, सुरेश जमरा, नर्तकी रंजिना, रंगु निमबाल, सुमन रावत, पार्वती मुझान्डा और सावित्री, भूरु गुनेश शहनाई वादक, रुमाल गुनेश मांदल वादक, दिनेश बघेल ढोलक वादक, पहाड़ सिंह सोलंकी काली वादक थे।

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लावणी, महाराष्ट्र
लावणी महाराष्ट्र का प्रसिद्ध पारंपरिक लोक नृत्य है। लावणी नाम लवन्या शब्द से लिया गया है, इसका स्थानीय भाषा में अर्थ है, सुंदरता। यह तीव्र पद संचालन के साथ नाल की लय पर किया जाता है। यह नृत्य केवल महिलाएं करती हैं। लगभग 9 गज की साड़ी पहने महिलाएं नाल की मनमोहक लय के साथ नृत्य करती हैं।
कलाकार- गायक एवं दल नायक राजेन्द्र केशव बडगे, गायिका प्रजता महामुनि, हारमोनियम वेंकटेश गरूड़, राहुल जावले नाल वादक राहुल कुलकर्णी, ताल आशीष काले, नर्तकी नयन थोरट, मानसी मूसले, राखी राठौर, धनाश्री मुठे, मिताली कटारे, प्रियंका यादव, चतुर्थी कुणेकर, प्रियका थोरट और रिया शर्मा थे।

संगराई मोग नृत्य, त्रिपुरा
संगराई डांस अकादमी अगरतला ने त्रिपुरा का लोकप्रिय नृत्य प्रस्तुत किया। यह वहां की मोग जनजाति द्वारा किया जाता है जो त्रिपुरा के प्रमुख आदिवासी समुदाय में से एक है। बंगाली कैलेंडर वर्ष के चैत्र मास में पडऩे वाले संघराय त्योहार के अवसर पर मोग समुदाय के लोगों द्वारा संगराई नृत्य नये वर्ष का स्वागत करने किया जाता है।
कलाकार – गायक एवं दल नायक राजू मोग, बांसुरी वादक चाईरे मोग, मोंगरी बाई मोग बांस वादक, पाइचा मोग गायक, थाइमचाई मोग गायिका, उग्गया जय मोग, सुमन मोग, अबुल मोग, म्रचा थाई मोग, उषा थाई मोग नर्तक, आओंग मोग, क्रजाई मोग, सेउली मोग, नऊ मोग, रूईमरा मोग नर्तकी।

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बच नगमा, जम्मू और कश्मीर
बच नगमा लोक नृत्य की एक विधा है। गुलाम अहमद चोपान एवं दल ने इसकी प्रस्तुति दी जिसमें सूफियाना कलाम के साथ स्त्रीवेश में लड़के नृत्य करते हैं। बच नगमा में बच बच्चा को प्रदर्शित करता है। जम्मू कश्मीर में हफीजा नृत्य की परंपरा थी। तीसरे दशक में महाराजा ने इस पर रोक लगा दी। बच ने इसका स्थान ले लिया।
कलाकार – गुलाम अहमद चोपान मटका एवं दल नायक, मोहम्मद रमजान रबाब वादक, मोहम्मद स्माईल सारंगी, शाहिद अहमद हारमोनियम, साहिल खान ढप, शाहिद अहमद गायक, इम्तियाज अहमद, मोहम्मद मकबूल नर्तक, महमदा याकूब गायक, आसिया, रोजिया, निशा, खुशबू, इकरा, सबरीना नर्तकी।

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काई सिलम्बू अट्टम, तमिलनाडु
काई सिलम्बू अट्टम तमिलनाडु का लोकप्रिय लोक नृत्य है। यह देवी दुर्गा और काली की उपासना का स्वरूप है। यह अम्मन या नवरात्रि उत्सव के दौरान मंदिरों में किया जाता है। इसमें नर्तक घंटिया और पायल पहनते हैं और हाथों में सिलम्बू धारण करते हैं जो नृत्य के वक्त हिलने पर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। नर्तक जोशपूर्ण पदसंचालन करते हैं।
कलाकार- एम काली, बी राजकिली, बी राजमनी, के मुर्थी, एम ईश्वरन, एम देवन, पी राजकुमार, के कनागराज नर्तक, जी मानिकन्दन, एस मुरलीधरन, पी मारियाराज सी पन्नीरसेल्वम, पी सरनराज, एम लोगनाथन पंबई वादक।

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कव्वाली
कव्वाली संगीत की एक लोकप्रिय विधा है। इसका इतिहास करीब 700 सौ साल से अधिक पुराना है। आठवी सदी में ईरान और अफगानिस्तान में दस्तक देने वाली यह विधा शुरुआत से ही सूफी रंगत में डूबी रही। यह 13 वी सदी में भारत पहुंची। सूफी संगीत परंपरा में यह भारत और पाकिस्तान में विशेष भक्ति गीत का ही एक रूप है।
कलाकार- हैदर निजामी, हन निजामी, इमरान निजामी गायक, दिलशाद खान, अफजल अहमद, सखावत हुसैन, अरफीन हुसैन कोरस, अमान हुसैन बैंजो, नदीम हुसैन तबला, अमसर हुसैन ढोलक।

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इटारसी को मिलेगा संस्कृति मंत्रालय के कैलेंडर में स्थान
समापन समारोह को संबोधित करते हुए देश की संस्कृति मंत्री सुश्री विजय लक्ष्मी साधौ ने कहा कि संस्कृति और कला ठीक रहे तो सामाजिक व्यवस्था ठीक रहती है। उन्होंने कहा कि हम धनी हैं कि हमारे देश की विविध संस्कृति है। मध्य प्रदेश देश का दिल है। यह संस्कृति का गुलदस्ता है। उन्होंने विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा की मांग पर होशंगाबाद और इटारसी में सांस्कृतिक कार्यक्रम संस्कृति मंत्रालय की ओर से कराने की घोषणा की।
विधायक डा. सीतासरन शर्मा ने कहा कि होशंगाबाद में स्थानीय संस्था तैयार हों तो वहां भी देशज का आयोजन कराया जा सकता है। पूर्व मंत्री विजय दुबे काकूभाई ने इटारसी को संस्कृति विभाग के वार्षिक कैलेंडर में शामिल करने की मांग की, जिसे मंत्री ने मान लिया। स्वागत भाषण नगरपालिका अध्यक्ष सुधा अग्रवाल ने दिया। संचालन सुनील बाजपेयी ने, आभार प्रदर्शन सीएमओ हरिओम वर्मा ने किया।
इस अवसर पर कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह, एसपी एम एल छारी, एसडीएम हरेंद्र नारायण, पूर्व विधायक अंबिका शुक्ल, कांग्रेस के जिला अध्यक्ष कपिल फौजदार, कार्यकारी अध्यक्ष रमेश सामने, काग्रेस विधि प्रकोष्ठ के रमेश के साहू, कांग्रेस नगर अध्यक्ष पंकज राठौर, भाजपा नगर अध्यक्ष नीरज जैन, जयकिशोर चौधरी मंच पर मौजूद थे।

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