विनोद कुशवाहा/ आज रविवार है और दिन है ” नर्मदांचल ” के लोकप्रिय कॉलम ‘ बहुरंग ‘ का। … इस सबसे बढ़कर बात ये है कि आज ” फ़्रेंड्शिप डे ” भी है। मित्र बनाने का दिन। मित्रता निभाने का दिन। ऐसा मैं इसलिये कह रहा हूं कि हम सबके जीवन में कोई एक व्यक्ति तो ऐसा रहे जिससे हम अपने सुख – दुख शेयर कर सकें। जिससे हम अपने दिल की बात कह सकें । कुछ सुना सकें कुछ सुन सकें । वो कोई भी हो सकता है। पुरुष भी हो सकता है या फिर कोई स्त्री भी हो सकती है । देखा तो यही गया है कि किसी पुरुष के लिए एक महिला मित्र ज्यादा अच्छी साबित होती है और दोस्ती के प्रति न केवल बेहद ईमानदार रहती है बल्कि दोस्ती निभाने के लिए किसी भी हद को पार करने का सामर्थ्य रखती है । ठीक इसी तरह कोई भी पुरुष अपनी महिला मित्र के लिए जान पर खेल जाने का सामर्थ्य रखता है । ये जरूर एक दुखद तथ्य है कि हमारे समाज में स्त्री – पुरूष की मित्रता को संदेहास्पद माना जाता रहा है । जबकि भगवान कृष्ण द्रोपदी को सखी ही मानते थे । साथ ही सखी कहकर संबोधित भी करते थे । … लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि एक पुरुष के लिए किसी अन्य पुरुष से दोस्ती अथवा एक स्त्री के लिये किसी अन्य स्त्री से दोस्ती रखना जोखिम भरा होता है । सफलता इसमें भी निहित है । भगवान राम ने दोस्ती निभाई है और भगवान कृष्ण – सुदामा की दोस्ती तो जगजाहिर है । फिल्म उद्योग की तरफ देखें तो राजकपूर – शैलेन्द्र – मुकेश , जितेन्द्र – राकेश रोशन , गुरुदत्त – अबरार अल्वी , वहीदा रहमान – आशा पारिख आदि कितने ही नाम ऐसे हैं जिनकी दोस्ती की मिसाल दी जा सकती है । संगीतकारों की जोड़ियां तो ज्यादातर दोस्ती पर ही टिकी रहीं । सलीम-जावेद की सफलतम जोड़ी को जाने किसकी नजर लग गई । फिल्म इंड्रस्टी में एक ही ऐसा शख्स है जिसने किसी से दोस्ती नहीं निभाई और वो है अमिताभ बच्चन । महमूद के भाई अनवर तक से उन्होंने याराना नहीं निभाया । ये वही अनवर है जिसने हर मुश्किल घड़ी में अमिताभ का साथ दिया । महमूद ने तो ‘ बाम्बे टू गोवा ‘ सिर्फ अमिताभ बच्चन के लिए बनाई थी । उन्हीं महमूद भाई जान के बीमार पड़ने पर अमिताभ उनको देखने तक नहीं गए । न ही उनकी कोई खोज खबर ली । ये वही महमूद भाई हैं जिन्होंने अमिताभ के संघर्ष के दिनों में उनको अपने घर में पनाह दी थी । खैर । फिल्मों की बात चली तो मीना आपा याद आ गईं । आज उनका जन्म दिन है । आज ही लोकमान्य तिलक की पुण्य तिथि भी है । दोनों शख्सियत को ‘ नर्मदांचल ‘ की विनम्र श्रद्धांजलि । तो बात चल रही थी दोस्ती की । पुरुष स्त्री की तो छोड़िए किसी भी रिश्ते में दोस्ती सम्भव है । मेरी माँ मेरी अच्छी मित्र थीं । उनसे मैं सब कुछ साझा करता था । अपने कॉलेज के दिनों में किसी लड़की ने जब मुझे पहली बार प्रेम पत्र भेजा तो वो पत्र मैंने सबसे पहले अपनी माँ को पढ़वाया । माँ ने कहा इसका जवाब मत देना । ये प्रेम की नहीं पढ़ाई की उम्र है । उस लड़की की तरफ मैंने जीवन में फिर कभी मुड़कर नहीं देखा । वैसे भी उसका प्रेम एकतरफा था । वह जहां भी हो मुझे आज के दिन माफ कर दे । अगर माँ एक अच्छी मित्र साबित हो सकती हैं तो पिता की मित्रता पर भी संदेह नहीं किया जा सकता । भाई-बहन भी आपस में अच्छे मित्र होते हैं । इधर पत्नी यदि मित्रता निभाने पर उतर आए तो उससे अच्छा कोई मित्र नहीं हो सकता । कुल मिलाकर मित्रता जीवन में बहुत जरूरी है जो अगर संघर्ष में शक्ति देती है तो हमको अवसाद से भी उबारने की क्षमता रखती है । इसलिये किसी शायर ने कहा भी है न –
तेरी दोस्ती से मिली है
मेरे वजूद को ये शोहरत ,
मेरा जिक्र ही कहां था
तेरी दास्तां से पहले ।
हमारे यहां तो इतना तक कहा गया है
कि –
मित्र ऐसा चाहिए
ढाल सरीखा होय ,
सुख में तो पीछे रहे
दुख में आगे होय ।
… लेकिन ऐसे ‘ मित्र ‘ मिलते कहां हैं।
होमर भी एक जगह कहते हैं – ‘कठिनाई मित्र के लिए जान देने की नहीं है। कठिनाई तो ऐसा मित्र पाने की है जिसके लिए जान दी जा सके।’
वैसे मेरे अनुभव इस मामले में कुछ ठीक नहीं रहे क्योंकि दोस्ती के मेरे अपने अलग मापदंड हैं । सबके होते हैं । अफ़सोस कि मुझे मेरे मापदंड के अनुसार कोई भी शख्स ऐसा नहीं मिला जिसे मैं ‘ दोस्त ‘ कह सकूं । … बल्कि ठीक इसके उल्टा ही हुआ । इसलिये दोस्ती को लेकर मेरी राय कोई बहुत अच्छी नहीं है क्योंकि –
हमने देखे हैं कई
रंग बदलने वाले ,
दोस्त बन बन के मिले हैं
मुझको मिटाने वाले ।
वाल्टेयर ने भी तो कहा है ‘ मुझे अपने मित्रों से बचाओ , शत्रुओं से तो मैं स्वयं को बचा लूंगा । ‘
बावजूद इसके आप सबकी मित्रता और दोस्ती के लिए शुभकामनायें । सही मायने में तो जीवन एक गणित है जिसमें मित्रों को जोड़ो , दुश्मनों को घटाओ , सुखों का गुणा करो और दुखों का विभाजन करो । फिर ‘ मित्र ‘ कितने भी हों तो कम हैं परन्तु शत्रु अगर एक भी है तो वह बहुत है । इससे भी अच्छी बात ओशो कहते हैं –
मित्र और शत्रु
स्वयं की ही परछाईयां हैं
मैं प्रेम हूं तो
संसार भी मित्र है
मैं घृणा हूं तो
परमात्मा भी शत्रु है ।
अंत में इतना ही कि ‘ मित्रता ‘ भले ही सभी के साथ रखें मगर ‘अंतरंगता’ कुछ ही के साथ रखें लेकिन अगर ऐसा कोई मित्र आपके जीवन में है जिसके साथ आपकी “अंतरंगता ” भी है तो निश्चित मानिये कि आपका जीवन आसान हो गया । … क्योंकि जो आपका ‘ अंतरंग मित्र ‘ है वही आपको समझेगा भी । … और यदि कोई इस जीवन में आपको समझ पाया तो समझो आपने जीवन जी लिया इसलिये ही शायद आस्कर वाइल्ड ने भी कहा है – ‘ दुनिया में जीवन जीना बिरली बात है । लोग तो प्रायः दुनिया में रहते भर हैं । ‘
” बहुरंग ” में ‘ नर्मदांचल ‘ के माध्यम से आज के दिन मशहूर शायर डॉ बशीर बद्र के शब्दों में बस इतना ही कहना चाहूंगा –
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में
कि मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे
मगर उसके बाद सहर न हो
[ (नवाज़ = कृपा या दया करने वाला) , (सहर = सुबह) ]
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है
मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ
तो दुआ में मेरी असर न हो
(रहीम-ओ-करीम = दया और कृपा करनेवाला) , (सिफ़त = गुण , स्वभाव , विशेषता , लक्षण) , (अता = प्रदान)
कभी दिन की धूप में झूम के
कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ-साथ चले सदा
कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो
(शब = रात)
मेरे पास मेरे हबीब आ
ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं
के बिछड़ने का कभी डर न हो ।
( हबीब = मित्र , दोस्त , प्रिय )
विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)