“आत्मविश्वास” कोविड -19 से अधिक संक्रामक है

“आत्मविश्वास” कोविड -19 से अधिक संक्रामक है

विशेष आलेख : डॉ हंसा कमलेश
वर्तमान समय वैश्विक संकट का समय है। जिस महामारी से मानव समुदाय जूझ रहा है, जीवन मात्र संकट में है, ऐसे समय में संपूर्ण विश्व की साझा जिम्मेदारी है कि वह भारतीय वेदो, उपनिषदों के दर्शन को समझे।
मांडूक्य उपनिषद में कहा गया है – असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय
अर्थात अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर , मृत्यु से अमरता की ओर।
उपनिषद का यह श्लोक केवल भारतीयों के लिए ही नहीं है वरन् सम्पूर्ण मानव मात्र के लिए है। ज्ञान रूपी प्रकाश से ही वर्तमान क्या भविष्य की चुनौतियों पर भी विजय पाई जा सकती है।
वेद ,उपनिषद ,बौध्द, जैन धर्म सभी ब्रम्हचर्य पर आधारित जीवन पध्दति की बात करते हैं।
सामवेद के अनुसार – “ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत। “ (सामवेद 11.5.19)
अर्थात -ब्रह्मचर्य के तप से देवों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की।
अर्थात : मानसिक और शारीरिक शक्ति का संचय करके रखना जरूरी है। इस शक्ति के बल पर ही मनुष्य मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है। शक्तिहिन मनुष्य तो किसी भी कारण से मुत्यु को प्राप्त कर जाता है। ब्रह्मचर्य का अर्थ और इसके महत्व को समझना जरूरी है।
हम सबको मानसिक शक्ति एवं आत्म विश्वास की ताकत को समझना होगा।
आत्मविश्वास वस्तुतः एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है।आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है। दरअसल यह हमारी आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन में सफल होना अनिश्चित है।
दुनिया में ईश्वर ने सभी को अनंत शक्तियां प्रदान की हैं। हर किसी में कोई न कोई खास बात होती है। बस, जरूरत है अपने अंदर की उस खास शक्ति को पहचानने की, उसे निखारने की। जो काम दूसरे लोग कर सकते हैं, वो काम आप क्यों नहीं कर सकते? अपने आप पर भरोसा कीजिए फिर दुनिया भी आप पर भरोसा करेगी।
“जैसा हमारा आत्मविश्वास होता है वैसी हमारी क्षमता होती है।”
कोरोना जैसी महामारी और उसके दूरगामी नकारात्मक प्रभावों पर यदि हमें विजय प्राप्त करना है तो सबसे पहले अपने आपको मानसिक रूप से मज़बूत करना होगा।अपने आत्मविश्वास की ताकत पहचानना होगी।
सारे समय यह कहना कि कोरोना के बारे में हमारे ग्रंथो में बहुत पहले से लिखा जा चुका है।सवाल उठता है कि यदि हमारे ग्रंथों ने हमे भविष्य के बारे सूचना दे दी थी तो हमने क्या किया?
आजकल उस भारतीय जीवन पध्दति के बारे में सोशल मीडिया भरा पड़ा है जिसे वेद, उपनिषद और गीता में कहा गया है। यहां भी सवाल उठता है कि हमें उस जीवन पध्दति को छोड़ने के लिए हाथ पकड़कर मजबूर किसी ने नहीं किया। वो हमने स्वयं समय के साथ बदली।
लॉकडाउन में हमारे देश की अधिकांश युवा उर्जा मोबाइल, लेपटाप पर बरबाद हो गई ,क्योंकि उसके पास कोई उद्देश्य नहीं ,कोई लक्ष्य नहीं।सारे समय हाहाकार। कुछ प्रतिशत ही उर्जा सकारात्मक कार्यो मे लगी रही। दसवीं कक्षा से लेकर कालेज तक का विद्यार्थी असमंजस में जी रहा है। रात तीन बजे तक हमारा युवा जाग रहा है और दोपहर बारह बजे तक सोकर उठता है।फिर उसके सवाल होते हैं -मैं क्या करूं, मुझे नींद नहीं आती, मुझे टेंशन है, डीप्रेशन है।
लॉकडाउन में हमारा केवल आर्थिक नुकसान ही नहीं हो रहा है, सामाजिक संतुलन भी बिगड़ रहा है। मानसिक दुर्बलता की और समाज अग्रसर है।
आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, स्वअनुशासन के साथ साथ स्वयं से सवाल करने की क्षमता का विकास करना ही होगा। हमें समझना होगा कि पूरे विश्व को संकटग्रस्त करके चीन रेपिड टेस्टिंग किट विश्व के देशो को प्रदान कर रहा है, वेक्सिन बनाने में लगा है और हम केवल इतिहास की बात करके गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
हमें समझना होगा कि आत्मविश्वास कोविड-19 से अधिक संक्रामक है। इस आत्मविश्वास और आत्मानुशासन से हम जीत सकते हैं।

डॉ हंसा कमलेश
सदर बाजार, होशंगाबाद
Contact : 9425366286

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