विधायक (MLA) की शिकायत पर अध्यात्म विभाग (Spirituality department) को पत्र प्रेषित
इटारसी। विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा (Dr. Sitasaran Sharma, MLA) द्वारा इटारसी में एसडीओ राजस्व रहे हरेन्द्र नारायण (Harendra Narayan, Former SDO) के खिलाफ मुख्य सचिव को की गई शिकायत पर आगामी कार्यवाही के लिए मुख्य सचिव कार्यालय से पत्र अपर मुख्य सचिव, आध्यात्म विभाग को प्रेषित किया जा चुका है। विधायक डॉ. शर्मा ने हरेन्द्र नारायण के खिलाफ भादवि की धारा 166, 166 ए, एवं 167,171 एवं 219 के अंतर्गत प्रकरण चलाने हेतु अनुमति प्रदान करने संबंधी पत्र दिया था।
इस पत्र के जवाब में विजय राज अवर सचिव (Vijay Raj Under Secretary), ने मुख्य सचिव कार्यालय जानकारी दी है कि उक्त पत्र आगामी कार्यवाही के लिए अपर मुख्य सचिव, आध्यात्म विभाग को आगामी कार्यवाही के लिए प्रेषित कर दिया है। विधायक ने पत्र में कहा था कि हरेन्द्र नारायण ने रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट (Registrar Public Trust) की शक्तियों का उपयोग करते हुए श्री द्वारिकाधीश मंदिर समिति, इटारसी को 27 सितंबर 19 को सूचना जारी की जबकि रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट को इस प्रकार की जांच के लिए सिविल न्यायालय के अधिकार प्राप्त होते हैं।
उन्होंने लिखा था कि हरेन्द्र नारायण से विवाद होने के बाद श्री द्वारिकाधीश एजुकेशन सोसायटी (Sri Dwarikadhish Education Society) एवं श्री द्वारिकाधीश मंदिर समिति इटारसी (Sri Dwarkadhish Temple Committee Itarsi) के अध्यक्ष के नाते मैंने तत्कालीन कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह (Collector Shilendra Singh) से पत्र के माध्यम से अनुरोध किया था कि यह जांच किसी अन्य डिप्टी कलेक्टर को दी जाए, क्योंकि हरेन्द्र नारायण से मुझे न्याय मिलने की आशा नहीं है। ऐसा ही पत्र उन्होंने आयुक्त नर्मदापुरम संभाग को भी दिया था। बार-बार पत्र लिखने के बावजूद दोनों अधिकारियों ने आवेदन पर ध्यान नहीं दिया था।
डॉ. शर्मा ने पत्र में यह भी उल्लेख किया था कि इस दौरान हरेन्द्र नारायण लगातार जांच कर रहे थे जबकि यदि किसी अधिकारी के खिलाफ इस प्रकार की शिकायत हो, जबकि वह न्यायाधीश की हैसियत से बैठा हो, उसे उच्च अधिकारियों के निर्णय होने तक कार्यवाही रोक देना चाहिए। हरेन्द्र नारायण ने जिस तारीख को उन्हें नोटिस दिया, उस दिन उन्हें रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट के अधिकारी नहीं थे। जिन दो लोगों की शिकायत पर नोटिस दिया, न तो उनके पिता का नाम, ना ही उनका पता और ना मोबाइल नंबर उनके आवेदन में था। शिकायतकर्ता की जानकारी मांगे जाने पर भी नहीं दी गयी।
एक पक्षीय जांच कर आरोपों के अलावा यह आरोप भी लगाया कि मैं स्वयं ही मंदिर समिति का अध्यक्ष हूं और स्वयं ने ही विधायक निधि से खेल प्रशाल के लिए मंदिर समिति की भूमि पर बन रहा है, राशि दी है। जबकि उन्होंने इस प्रकार की कोई निधि खेल प्रशाल को दी ही नहीं। उन्होंने ओपन कोर्ट में निर्णय सुनाने के या पोर्टल पर डालने के सीधे अखबारों में लीक कर दिया और सारा फैसला जिसमें मैं दोषी करार दिया गया था, प्रकाशित हो गया। जिसका उनको दूसरे दिन पत्रकार वार्ता करके खंडन करना पड़ा था। यह उनको जानबूझकर बदनाम करने की दृष्टि से झूठा आपराधिक मामले में फंसाने की दृष्टि से न्यायिक अधिकार का दुरुपयोग किया है।