सुख, सौभाग्य, समृद्धि की शुभकामना के साथ माता श्री लक्ष्मी जी के महापर्व ज्योति पर्व दीप मालिका मनाए जाने की आदिकालीन वैदिक परम्परा है। माताजी को श्री कहा गया है, जिसका अर्थ शुभ,सुंदर कांति है। मंजुल माँ लक्ष्मी जी सर्व सुख, वैभव, ऐश्वर्य प्रदाता है। लक्ष्मी जी की आरती में आता भी है, खानपान का वैभव सब तुम से आता, जय लक्ष्मी माता। माता जी का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है, और सबका आधार कमला वासनी, हरि प्रिया लक्ष्मी जी ही है,उनसे विरत कुछ भी नहीं। इसीलिए वे लक्ष गुणों की स्वामनी है।
जगमग पर्व दीपावली महा लक्ष्मी जी की पूजन अर्चना का विशेष पर्व है, करीब करीब अलग रूपो में विभिन्न देशों में कार्तिक अमावस्या को मनाई जाती है। माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी, सरस्वती जी कुबेर की पूजा का विधान है।
जगमग ज्योति दीपमालिका सर्व जीवन को सुखमय, लाभमय एवं ज्योतिर्मय बनाने का सरस स्निग्ध महापर्व है। दीप का जो स्वधर्म है, वही स्वधर्म है। लिहाजा यह हमारी विराट संस्कृति के अनुरूप सर्वजन का आलोक पर्व है। दीप की अद्भुत विशेषता यह है कि वह स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी प्रदान करता है और इस तरह जीवन में तप, त्याग, बलिदान के महत्व को चरितार्थ करते हुए अपनी दिव्य भाषा में यह संदेश देता कि जीवन का सच्चा आनंद और सार्थकता परमार्थ के लिए इस तरह सतत् जलने में है।
दीपमालिका अंधकार के विरुद्ध सनातन आस्था का पर्व है दीपमालिका अद्भुत आनंद हर्षाल्लास का पर्व है। दीपावली समृद्धि के लिए साभार सविनयता बौध का स्मृति पर्व है। तो वह दैन्यता को भी दिव्यता देने का पर्व है। दीपावली प्राकृतिक, धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के कारण जन जन की आस्था का पर्व है।
समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में एक माँ लक्ष्मी भी है इसलिए विष्णु प्रिया माता लक्ष्मी जी का एक सुनाम सिंधुसुता भी है। लक्ष्मी जी का एक स्वरूप भूदेवी अथवा पृथ्वी भी है सुख, संपदा, समृद्धि और कल्याण की वे अधिढार्थी है।
सिंधु ने उन्हें पीले रेशमी वस्त्र, वरूण ने वैजयंती माला सरस्वती ने रत्नहार और ऊषा ने स्वर्ण कांति प्रदान की है। सृष्टि के पालनहार चतुर्भुज भगवान विष्णु को उन्होंने वरण किया। लिहाजा उन्हें विष्णु प्रिया भी भक्तिभाव से कहा जाता है। सुख सम्पन्नता की आकांक्षा के लिए आदिकाल से माँ लक्ष्मी की पूजा अर्चना आराधना की परम्परा चली आ रही है। परम्पराएँ निरन्तर जीवन को आहृाद से भरती हैं।
अतः दीपावली के दिन सभी जन लक्ष्मी मैया का आहृाद अर्चना आराधना करते हैं। अंधकार से प्रकाश की ओर उन्मुख होने का पर्व दीपावली है। ’तमसो मा ज्योतिर्गमय’ इस वेदवाक्य में निहित है ज्योति पर्व का बीज मंत्र यह मनुष्य मात्र में सह प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख होने की चेतना जागृत की श्री यात्रा का महापर्व है। शुभ और लाभ दो मंगल शब्द में सिमटा है इस आलोक पर्व का आभामंडल और महात्मय। बस हम इन्हीं शुभ और लाभ को अपना आधार बनाये जीवन का आदर्श बनाते। तो हर दिन दीपोत्सव है, दीपावली है। आईये हम शुभलाभ के दिव्य दर्शन का दर्शन कर अपना अंतः दीप की सदवृत्ति की घृतवाती से बालने का शिव संकल्प लें। इसी मंगल कामना के साथ।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateria) वरिष्ठ पत्रकार,कवि संपादक शब्द ध्वज 9893903003 | माता श्री लक्ष्मी जी की पेंटिंग शिल्पा चौरे ने बनाई हैं। शिल्पा होशंगाबाद निवासी हैं और इटारसी में हितेश पटेल से उनका विवाह हुआ। वर्तमान में आप ओहियो यूएसए में रहती हैं। |