इटारसी,(रोहित नागे)। गर्मी में तरावट चाहिए तो तरबूज से बेहतर कुछ भी नहीं। और यदि तरबूज ऑर्गेनिक (Watermelon Organic) तरीके से उपजाया हो, तो बात ही निराली होगी। इस बात की सौ फीसद गारंटी दी जा सकती है कि एक बार यदि ऑर्गेनिक तरबूज (Organic) जिसने खाया, वह निश्चित तौर पर इसके स्वाद का दीवाना हो जाएगा। यह भी तय है कि तरबूज की खेती यदि किसान अपना ले तो उसके जीवन में तरबूज जितनी ही मिठास आ सकती है। हरदा जिले के किसान मनोज पटेल पिछले दो वर्ष से तरबूज की खेती कर रहे हैं। उनको खेत से कहीं जाना नहीं पड़ा और व्यापारी और ग्राहक खेत से ही सारा माल ले गये। उन्होंने लॉकडाउन (Lockdown) के बावजूद हरदा जिले के अलावा इंदौर में अपना माल बेच दिया। तरबूज की इतनी मांग का ही नतीजा है कि इस वर्ष उन्होंने दस एकड़ में तरबूज और खरबूज की बोवनी की है और आगामी दस दिनों में उनकी फसल भी तैयार हो जाएगी। परिशुद्ध खेती, ड्रिप सिंचाई प्रणाली और उन्नत किस्मों ने उनको आर्थिक लाभ पहुंचाने में मदद की है। दो वर्ष पूर्व ग्राम दहेड़ी के किसान संस्कार गौर ने भी तरबूज की खेती की थी, और उनका तरबूज भी इंदौर, भोपाल, होशंगाबाद और इटारसी में खूब पसंद किया गया था। दावा किया जाता है कि यदि किसान इसे अपनाए तो निश्चित तौर पर अपने जीवन में मिठास स्वयं ही घोल सकता है।
ऑर्गेनिक का जवाब नहीं
दरअसल, तरबूज की खेती तो ज्यादातर नदियों की रेत पर होती रही है। बीते कुछ वर्षों से यह खेत में होने लगी है। हरदा जिले के ग्राम सोनतलाई निवासी मनोज पटेल बताते हैं कि ऑर्गेनिक तरीके से उगाया तरबूज एक बार जो खा ले तो बाजार का रुख ही न करे, बल्कि इसी तरबूत को खाना पसंद करेगा। व्यक्ति को जैविक तरबूज में बाजार के तरबूज से एकदम अलग हटकर स्वाद मिलेगा और यह स्वाद वह पूरे सीजन लेना चाहेगा।
पानी की कमी से निपटने बेहतर विकल्प
गर्मी के दिनों में तरबूज एक अत्यंत लोकप्रिय सब्जी मानी जाती है। इसके फल पकने पर काफी मीठे व स्वादिष्ट होते है। शरीर में पानी की कमी से निपटने के लिए यह बढि़ऌया विकल्प है। तरबूज में पानी की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती है जिसे खाने पर शरीर में पानी की आपूर्ति होती है। तरबूज में विटामिन-ए और सी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करते हैं। साथ ही आंखों की सेहत के लिए भी फायदेमंद है। इसके सेवन से लू नहीं लगती है।
तरबूज की किस्म और स्वाद
इस वर्ष उन्होंने अपने खेत में मोगली और सागर किंग किस्म लगायी है। फसल में जीवामृत, गौ अमृत और कंडे गलाकर उसका पानी डाला है। जैविक पद्धति से उगाए खरबूत की खेती में उनको सौ क्विंटल प्रति एकड़ की उपज प्राप्त होने की उम्मीद है। हालांकि इस बार मौसम का उतार-चढ़ाव कुछ कम उत्पादन कर सकता है, बावजूद इसके यह घाटे का सौदा नहीं होता है। तरबूज-खरबूज की फसल 70-75 दिन में खेत से बाहर आ जाती है।
ड्रिप और मल्चिंग पद्धति
किसान ड्रिप और मल्चिंग पद्धति से तरबूज की खेती करेगा तो कम पानी में भरपूर सिंचाई होगी, मल्चिंग से वायरस या कीट व्याधि आदि का प्रकोप भी नहीं आएगा। मलचिंग विधि से तरबूज बोने से खरपतवार नहीं होता, पैदावार अच्छी होती है व फसल टूटने के दस दिन तक खराब नहीं होती। ड्रिप-मल्चिंग पद्धति में खेत को प्लास्टिक बेड़ों से ढंका जाता है, खेत में नमी बनी रहती है, खरपतवार नहीं पनपते हैं। प्लास्टिक के बेड अलग-अलग साइजों में मिलते हैं। इनके बीच में पतला पाइप डाला जाता है, जिस पर 20 इंच की दूरी पर छेद होते जिनसे बूंद-बूंद एक-एक पौधों तक पानी जाता है। इस पाइप से पौधों तक खादें भी दी जाती हैं।