इटारसी। हिन्दू धर्म में प्रत्येक व्रत एवं त्योहार का विशेष महत्त्व है। हमारे देश में अलग -अलग त्योहार की अलग धूम देखने को मिलती है। प्रत्येक व्रत व त्योहार बड़ी ही श्रद्धा भाव से पूरे रीति रिवाज के आठ मनाया जाता है। ऐसे ही व्रत त्योहारों में से एक है हल षष्ठी का त्योहार। यह त्योहार श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मदिवस के रूप में पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। पारंपरिक हिंदू पंचांग में हल षष्ठी एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को समर्पित है। भगवान बलराम माता देवकी और वासुदेव जी की सातवें संतान थे।
हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती मनाई जाती है। श्रावण पूर्णिमा के छह दिन बाद हलषष्ठी मनाई जाती है। इसे अलग जगहों पर अलग -अलग नामों से जाना जाता है। कुछ जगह इसे हल छठ तो कुछ जगह हल षष्ठी नाम से जाना जाता है। इस दिन का भी शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है और इस व्रत को मुख्य रूप से संतान की सुख समृद्धि के लिए रखा जाता है। आइए एस्ट्रोलॉजर और वास्तु स्पेशलिस्ट डॉ आरती दहिया जी से जानें इस साल कब मनाया जाएगा हलषष्ठी का त्योहार और इसका क्या महत्व है।
हल षष्ठी तिथि और शुभ मुहूर्त
हलषष्ठी का त्योहार श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी को समर्पित है। भगवान बलराम माता देवकी और वासुदेव जी की सातवें संतान थे। श्रावण पूर्णिमा के छह दिन बाद हल षष्ठी मनाई जाती है।
इस साल हल षष्ठी की तिथि- 28 अगस्त 2021, शनिवार
षष्ठी तिथि प्रारंभ – 27 अगस्त, 2021 को शाम 06:48 बजे
षष्ठी तिथि समाप्त – 28 अगस्त, 2021 को प्रातः 08:56 बजे
उदया तिथि में षष्ठी तिथि 28 अगस्त की है इसलिए इसी दिन व्रत रखना फलदायी होगा।
हल षष्ठी व्रत की मान्यता
इस व्रत की मान्यता यह है कि इस दिन बिना हल चली धरती से पैदा होने वाले अन्न का सेवन करना चाहिए। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल होने के कारण इन्हें हलधर भी कहा जाता है और उन्हीं के नाम पर इस पर्व को हलषष्ठी कहते है।
हलषष्ठी व्रत का महत्व
मुख्य रूप से हल षष्ठी का व्रत संतान सुख के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से संतान की दीर्घायु होने की कामना पूरी होती है, जो माताएं इस व्रत को नियम पूर्वक करती हैं उनकी संतान को कोई बाधा नहीं आ पाती है। संतान की इच्छा रखने वाली माताओं के लिए भी ये व्रत विशेष रूप से फलदायी होता है।
हलषष्ठी व्रत पूजन विधि
इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात् पृथ्वी को लीपकर एक छोटा सा तालाब बनाया जाता है जिसमें झरबेरी, पलाश, गूलर की एक-एक शाखा बांधकर गाड़ दी जाती है और इसकी पूजा की जाती है। पूजन में सात अनाज जिसमें मुख्यतः गेहूं, चना, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ आदि को भून कर चढ़ाया जाता है। इसके उपरान्त एक हल्दी से रंगा हुआ वस्त्र और समस्त सुहाग सामग्री भी चढ़ाई जाती है। इस व्रत पर रात्रि जागरण का विशेष महत्व है माना जाता है। यह भी मान्यता है कि इस दिन जिस व्यक्ति ने व्रत नियम लिया होता है वह पूर्ण रात्रि जाग कर प्रभु सिमरन करता है तभी इस व्रत का फल प्राप्त होता है। इस दिन जो माताएं व्रत का पालन करती हैं उन्हें किसी भी ऐसी खाद्य सामग्री का सेवन नहीं करना चाहिए जो हल चली हुई जमीन पर उगाई गई हो। तालाब में उगे हुए फलों और सब्जियों का सेवन करते हुए व्रत को करना फलदायी है। इस दिन गाय के दूध का सेवन किसी भी रूप में नहीं करना चाहिए।