नौ रूप, 9 औषधियों में भी विराजते हैं, जो समस्त रोगों से बचाकर जगत का कल्याण करते हैं।
इटारसी। चैत्र नवरात्रि 2021 का पर्व इस बार 13 अप्रैल से शुरु हो चुकी है। नवरात्रि (Navratri) में हर मां को प्रसन्न करने में लगा रहता है। इन नौ दिनों में नवरात्रि/नवदुर्गा यानि मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वहीं आज कल कोरोना जैसी महामारी पूरी दुनिया में फैली हुई है और वैज्ञानिकों के अनुसार भी इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। कारण ये है कि ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। ऐसे में आज हम आपको देवी मां के 9 रूपों से जुड़ी नौ औषधियों के बारे में बता रहे हैं। जानकारों की मानें तो मां अम्बे के यह नौ रूप, 9 औषधियों में भी विराजते हैं, जो समस्त रोगों से बचाकर जगत का कल्याण करते हैं।
नवदुर्गा (Navdurga) के नौ औषधि स्वरूपों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया और चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया है। माना जाता है कि यह औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली और और उनसे बचा रखने के लिए एक कवच का कार्य करती हैं, इसलिए इसे दुर्गाकवच कहा गया। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष जीवन जी सकता है। यहां हम जानकारों से बातचीत के बाद आपको बता रहे हैं, दिव्य गुणों वाली उन 9 औषधियों के बारे में जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है-
1. प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ – नवरात्रि में नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती को देवी शैलपुत्री का ही एक रूप माना जाता है। यह आयुर्वेद की प्रमुख औषधियों में से एक है, जो सात प्रकार की होती है।
1. हरीतिका (हरी)- भय को हरने वाली मानी गई है।
2. पथया – जो हित करने वाली है।
3. कायस्थ – जो शरीर को बनाए रखने वाली है।
4. अमृता – अमृत के समान।
5. हेमवती – हिमालय पर होने वाली।
6. चेतकी – चित्त को प्रसन्न करने वाली है।
7. श्रेयसी (यशदाता) शिवा – कल्याण करने वाली।
2. द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी – ब्राह्मी को नवरात्रि की दूसरी देवी ब्रह्मचारिणी का ही रूप माना गया है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। इसी कारण ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीडित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करनी चाहिए।
3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर – नवरात्रि में नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा का ही रूप चन्दुसूर या चमसूर को कहा गया है। यह एक धनिये के समान पौधा है। जिसकी पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए।
4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा – नवरात्रि में नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है, इन्हीं का एक स्वरूप पेठा भी माना गया है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। माना जाता है कि मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीडित व्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करनी चाहिए।
5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी – नवरात्रि में दुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती व उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान मानी गईं हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।
6. छठी कात्यायनी यानि मोइया – नवरात्रि में दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीडित रोगी को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करनी चाहिए।
7. सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन – दुर्गा का नवरात्रि में स्पतम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीडित व्यक्ति को करनी चाहिए।
8. अष्टम महागौरी यानि तुलसी – नवरात्रि में दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है।
9. नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी – नवरात्रि में माता दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीडित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करनी चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित व साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करतीं है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।