कविता: राधे अजन्मा जनम्यौ
– सत्येंद्र सिंह:
राधे अजन्मा जनम्यौ आज ।
जो सम्हारे ब्रह्मांड के काज।।
माखन लूटै बांटे औरु ब्रज की मांटी खाए।
मां यशोदा को मुख मांहि ब्रह्मांड दिखाए।।
गोप ग्वाल संग घूमे नाचै जंगल गाय चराए।
खेल खेल में दुष्टन मारै कालिय नाथ नथाए।।
रहै आम जन बनिकें पर राजन राज बतावे।
गोपिन संग रास रचाए औरु प्रेम पाठ पढावे।।
जीवन को संग्राम रचेए निष्काम करम बतावे।
पूरौ पूरौ युद्ध रचाए जनम मरण ज्ञान करावे।
ऐसौ स्याम नित लीला कर छिप छिप जावे।
करहुं प्रनाम अकिमचन राधे कान्ह दरस करादे।
सत्येंद्र सिंह (Satyendra Singh)
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