बसंत पंचमी (Basant Panchami) की पूर्व संध्या पर मानसरोवर का आयोजन

Post by: Poonam Soni

विनोद कुशवाहा द्वारा/ इटारसी:  स्थानीय “श्री प्रेम शंकर दुबे स्मृति पत्रकार भवन” में ‘ मानसरोवर साहित्य समिति (Mansarovar Sahitya Samiti) के तत्वाधान में बसंत पंचमी की पूर्व संध्या पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी गुलाब भम्मरकर के संयोजन में आयोजित की गई। काव्य गोष्ठी का आयोजन माखन लाल मालवीय के मुख्य आतिथ्य तथा ममता वाजपेयी की अध्यक्षता में किया गया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में स्वर्णलता छेनिया विशेष रूप से उपस्थित थीं।

कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ । तत्पश्चात वरिष्ठ पत्रकार महेश तिवारी को श्रद्धांजलि स्वरूप दो मिनिट का मौन रखा गया। “मानसरोवर साहित्य समिति” के संरक्षक देवेन्द्र सोनी, अध्यक्ष राजेश दुबे एवं सुप्रसिद्ध शायर जफरउल्लाह खान जफर ने काव्यगोष्ठी के संयोजक गुलाब भम्मरकर का स्वागत शाल श्रीफल से किया। साथ ही अतिथियों सहित विशिष्ट अतिथि स्वर्णलता छेनिया का भी स्वागत सत्कार किया गया। संस्था के अध्यक्ष राजेश दुबे ने स्वागत उद् बोधन दिया तो संरक्षक वरिष्ठ पत्रकार देवेन्द्र सोनी ने मानसरोवर साहित्य समिति की गतिविधियों की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन मानसरोवर साहित्य समिति के संरक्षक विनोद कुशवाहा ने तथा आभार प्रदर्शन संस्था के उपाध्यक्ष बृजमोहन सिंह सोलंकी ने किया। आयोजन को सफल बनाने में राजेश गुप्ता, तरुण तिवारी, सौरभ दुबे की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

काव्य गोष्ठी का प्रारम्भ गुलाब भम्मरकर ने सरस्वती वंदना से किया –

वर दी वीणावादिनी वर दो
ऐसा कुछ वर दो

राजेश व्यास ने सामाजिक व्यवस्थाओं पर व्यंग्य करते हुए कहा –

अजब की दुनिया है ये पागलखाना
गजब की दुनिया है ये पागलखाना

युवा कवि विकास उपाध्याय ने नई कविता प्रस्तुत की –

ऐ भूख न सता इतना बता
तू लगती क्यों है

हास्य व्यंग्य के विचारशील कवि राजेश गुप्ता ने समसामयिक रचना से कोरोना के प्रति जागरूक किया-

कोई कोरोना कहता है
कोई दानव समझता है

ओजस्वी कवि तरुण तिवारी तरु ने बड़े ही जोशपूर्ण ढंग से काव्य पाठ करते हुए कुछ श्रृंगार रस की कविताओं से गोष्ठी की दिशा बदल दी-

मैं तेरे करीब और करीब
आना चाहता था

राकेश ओझा ने बसंत ऋतु का स्वागत करते हुये ‘आ गया है वसंत पड़ा है झूला ‘शीर्षक से कविता पढ़ी।

गीतकार विनय चौरे ने अपने गीत से गोष्ठी को नए आयाम दिए-

आईने के सामने न आईए
कहीं तुम्हारी नजर न लगे

युवा कवि हनीफ खान ने उनके कुछ मुक्तकों से श्रोताओं को बेहद प्रभावित किया।

विनोद दुबे ने माँ सरस्वती को नमन करते हुए अपनी कविताओं में वसन्त का सुंदर चित्रण किया।

युवा शायर सतीश शमी ने अपने चिरपरिचित अंदाज में गजल को कुछ तरह तरन्नुम दिया –

दिल उस वक़्त ज़िंदगी से ऊब गया
अश्क मेरा दामन से छूट गया

कवि निर्मोही ने गोष्ठी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपनी वेदना व्यक्त की –

हम अपने बुजुर्गों का
चलन छोड़ रहे हैं

जीवन घावरी ने वसन्त ऋतु का इस कदर स्वागत किया कि श्रोता आनंदित हो गए ।

उनकी भावनाओं को राजेन्द्र भावसार ने आगे बढ़ाया –

संस्कृति रहे संस्कार रहे
सबके जीवन में वसन्त रहे

वरिष्ठ कवि सुनील जनोरिया ने अपनी कविता की शुरुआत उदबोधन से की । उन्होंने वसन्त के प्रति मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त किया –

है वसन्त की राह देखता
दुनिया का हर प्राणी

गज़लकार मदन बड़कुर तन्हाई ने अपनी छवि के विपरीत उनके सशक्त व्यंग्य से अपनी एक अलग छाप छोड़ी –

बड़ा जोर शोर है जिसका
वो कवि नामवाला है

जफ़र साहब ने दोस्ती का जिक्र करते हुए अपनी गज़ल को कुछ यूं स्वर दिए –

आप सलामत रहें
दोस्ती सलामत रहे

मानसरोवर साहित्य समिति के इस अनूठे आयोजन में कवयित्री मनोरमा मनु ने पहली बार अपनी प्रस्तुति दी –

ऋतु वसन्त आया
प्रकृति का कोना कोना मुस्काया

रविशंकर रवि ने गोष्ठी में कुछ गंभीर रचनाएं पढ़ीं ।

रामवल्लभ गुप्त ने वर्तमान परिवेश पर करारा व्यंग्य किया –

दंगाईयो दरिंदो
गली के गुंडो

नर्मदांचल के जाने माने शायर साजिद सिरोंजवी की गज़ल ने शमां बांध दिया –

हम अकेले थे सच बोलकर
उनके पीछे जमाना लगा

गीतकार रोहिणी दुबे ने वसन्त से अपनी कविताओं के माध्यम से बात की –

कह दिया वसन्त ने
बोल से मेरे

जलज शर्मा, सोहागपुर ने उनकी गज़ल से माहौल को सरस कर दिया –

समन्दर सी है ये दुनिया
हमने साहिल बनाया है

महेन्द्र नामदेव, सिवनी मालवा ने अपने मुक्तक और गीत से जीवन का संदेश दिया –

दीप बन जाती है ज़िंदगी
ज़िंदगी गीत गाती रहे

एल.एस राजोरिया, होशंगाबाद ने श्रमिकों का आव्हान किया –

मेरे प्यारे श्रमिक बन्धु
कर्मठ तुम इंसान हो

कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि स्वर्णलता छेनिया ने कुछ यादें साझा कीं –

ऐ वसन्त तुम फिर आये हो
कुछ मीठी यादें लाये हो ?

आयोजन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कवि लेखक माखनलाल मालवीय , सिवनी मालवा ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं भी मानसरोवर साहित्य समिति की पाठशाला का एक विद्यार्थी रहा हूं । उन्होंने कवि विपिन जोशी को बहुत शिद्दत से याद किया –

जीवन गीत गाते जा रहा हूं
गुनगुनाते जा रहा हूं

 

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