होशंगाबाद। आत्मनिर्भर भारत और नवीन राष्ट्रीय नीति अभियान के तहत होमसाइंस काॅलेेज में मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण (Mushroom Production Training) प्रारंभ किया। विगत पांच सालों यह प्रशिक्षण कार्य किया जा रहा है। प्राचाय डाॅ कामिनी जैन ने बताया कि मशरूम उत्पादन के लिए काॅलेज में पालिथीन बैग प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है इससे कम स्थान में अधिक उत्पादन किया जा सकता है। इसके उत्पादन के लिए किसी प्रकार की विशिष्ट तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नही होती है। इसक उत्पादन में कमरे की तैयारी, रासायनिक विधि द्वारा भूसा भिगोना, बीजभरना, प्रबंधन, तुडाई, संग्रहण एव ंउपयोग इन चरणों में किया जाता है। मशरूम से विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे कटलेट्स, नूडल्स, पकोड़ा, अचार, सूप ,पुलाव, विरयानी बनाई जा सकती है।
पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं
प्राचार्य ने बताया कि मशरूम की खेती से पर्यावरण का कोइ्र्र नुकसान नही होता। खेती के बाद बचा भुसा कार्बनिक खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है। भूमिहीन व्यक्तियो के लिये यह लाभदायी है। मशरूम उत्पादन स्वरोजगार के लिए बड़ा अवसर प्रदान करती है। इसका कार्य महाविद्यालय में होगा और शैक्षिक स्टाॅफ इसका प्रशिक्षण करेंगे।
मशरूम की 50 किस्म
मशरूम की लगभग 50 किस्में ऐसी है। जिन्हें खाया जाता है। इन किस्मों में सबसें सामान्य मशरूम को ताजा या डिब्बाबंद करके बेंचा जाता है। इसमें सबसे अधिक मूल्यवान मोरेस वा गुच्छी, आयस्टर, ढ़िगरी, श्वेत, धान, पराली प्रजातियां है।