विशेष: काेराेना डर के आगे जीत है…

Post by: Poonam Soni

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आइए पहले आपको तीन प्रत्यक्ष घटनाएं सुनाती हूं :

स्नेह सुरभि: पहली- एक निकट संबंधी परिवार के बुजुर्गाें से काेराेना जा भिड़ा, परिवार के एक छाेटे सदस्य ने बुजुर्गाें के प्रति निश्चित जिम्मेदारी निभाई।
यहां विराम नहीं लगता इसी परिवार में एक अन्य युवा सदस्य काेराेना से प्रभावित हुआ छाेटा सदस्य यथावत जिम्मेदारी पूरी करता रहा, इस बीच इस परिवार के निकटतम रिश्तेदार के काेराेना प्रभावित हाेने पर भी छाेटा सदस्य तत्पर रहा।

आंखों देखी घटना है।
इस पर मेरे मन का सवाल सिर्फ यह है कि क्या तत्पर रहने वाला वह छाेटा सदस्य प्रभावित नहीं हाेना चाहिए था, अगर हां ताे क्याें नहीं हुआ, अगर नहीं ताे फिर काेराेना भयभीत करने वाला ताे नहीं है शायद…

दूसरी घटना– एक परिचित जिसने जीवन काे कभी सीरियस नहीं लिया, दिव्यांग था पर मस्तमाैला। केवल काेराेना की संभावना की चपेट में आया, रिपोर्ट नेगेटिव ही आई पर मृत्यु की गाेद में वह पाॅजिटिवली चला गया।
मेरे मन का सवाल सिर्फ यह है कि यदि वह काेराेना से नहीं मरा ताे वह काैन सा डर था जाे उसे समय से पहले निगल गया, शायद मृत्यु का डर…

तीसरी घटना- तेज गर्मी है। शहर की सड़कें सुनसान हैं। काेराेना राक्षस घूम रहा है। शायद तेज चक्कर खाकर या संभावित अटैक आने से एक बुजुर्ग महिला सड़क पर गिर गई। आसपास लोग उसे देखते रहे ना उठाने आए ना उठाकर मुंह पर पानी मारने की जेहमत ही कर सके। लाेगाें काे डर था कहीं वह काेराेना से ना गिरी हाे। बधाई साेशल डिस्टेंस हमारे दिलाें में आ चुका है।
मेरे मन का सवाल सिर्फ यह है कि काेराेना का साेशल डिस्टेंस मानवीयता काे भी निगल रहा है…

“खैर”

मेरे सवालाें से आपकी सहमति असहमति स्वाभाविक है। सबके अपने विचार हैं और विचार क्षमता। इस पर बंधन या बाध्यता ना मेरा अधिकार है और ना आपकी विवशता। पर मेरा मन कहता है सच है डर के आगे ही जीत है। या यूं कहें जाे डर गया साे मर गया। जीवन वास्तव में मृत्यु तक की यात्रा ही ताे है। मरना ताे तय है पर डर कर क्या मरना और तय मानिए आ गई ना ताे….जब जन्म देने वाली ही नहीं बचा सकेगी ताे किसी और की विसात ही क्या।
पर जब तक जिंदा हाे जागाे.. और जागते रहाे। अपने जागने और जीवित हाेने का प्रमाण दाे। सरकार काे आपने चुना है सरकार ने आपकाे नहीं। सवाल करना आपका हक है पूछिए.. इसलिए नहीं क्याेंकि काेराेना के कारण हमारे शहर में लाॅकडाउन है और दमाेह में नहीं बल्कि इसलिए क्याेंकि काेराेना हमारी पहचान हमसे छीन रहा है। काेराेना वह ब्लैंक चेक बन गया है जिसे अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति, कूटनीति, अफसरशाही मन पसंद तरीके से भुनाया जा रहा है, दाेषी हम ही हाेंगे क्याेंकि चुप हैं। लिहाजा आपकाे सवाल करने की वजह मिले इसलिए कुछ शेयर करते हैं। हालांकि साेशल डिस्टेंस जरूरी है ताे आने वाली पीढ़ी शेयरिंग वाली भारतीय आत्मा काे संस्मरण में ही सुन सकेगी। आप और हम ताे शेयर कर ही सकते हैं ताे सुनिए और बेहतर समझें ताे सुधारिएगा भी..

जितना ज्ञान यहां वहां पढ़ने से मिल रहा है, वह बताता है कि अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी यह डाटा जुटा रही है कि दुनिया के कितने देशाें में काेराेना वायरस असर कर रहा है और कहां नहीं। यूनिवर्सिटी का डाटा कहता है कि अप्रैल 2020 तक नौ देश ऐसे हैं जाे काेराेना प्रूफ हैं। ये देश हैं उत्तर काेरिया, तुर्कमेनिस्तान, सूडान, ताजिकिस्तान, उत्तर कोरिया, दक्षिणी सूडान यमन, बुरुंडी, मलावी, लिसोथो और कोमोरोस। इन देशाें काे अरब, फारस, स्लाम, अफ्रीका, चीन की आभा प्रभा किसी ना किसी रूप में प्रभावित करती है।आश्चर्य है ना। पर हम उत्सवधर्मी भारतियाें के लिए प्रसन्नता की बात है कि कहीं ताे वह जगह है जहां काेराेना की मार नहीं है। क्याेंकि दूसरे की थाली का घी हम भारतियाें काे कभी दुखी नहीं करता भले ही दूसरा हमारी भारतीय आत्मा काे छिन्न- भिन्न क्याें ना कर देना चाहता हाे। और यथार्थ देखिए कि अप्रैल 2021 यानी एक साल बाद भी काेराेना राक्षस के आगाेश में समाए देशाें की टाॅप लिस्ट में चल रहे अमेरिका, भारत, ब्राजील, रूस, पेरू, स्पेन, चिली, ब्रिटेन, मेक्सिकाे, इटली, ईरान, फ्रांस, साऊदी अरब और तुर्की की लिस्ट में काेराेना प्रूफ नाै देश शामिल नहीं हैं। ताे कहा जा सकता है कि या ताे वे चेत गए या हम पिछड़ गए हैं…

मध्य एशिया का तुर्कमेनिस्तान 70 प्रतिशत रेगिस्तान है। कमाल यह है कि इस देश में कोरोना वायरस शब्द के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है। हमारे देश में पुलिस भरे मास्क लगाने पैसा वसूले या डंडे मारे इस तुर्कमेनिस्तान देश की पुलिस मास्क लगाने वालाें और महामारी की बात करने वालों को सीधे जेल भेज रही है। कोरोना की रोकथाम के लिए सोशल पोस्ट और दीवारों पर लगे पोस्टर भी हटा दिए गए हैं। शायह यह देश जान गया है कि डर के आगे जीत है।
ट्रेकिंग और क्लाइंबिंग के लिए पर्वताराेहियाें का पसंदीदा ताजिकिस्तान देश चीन की बार्डर से कहीं सटा है। बताया जा रहा है मार्च की शुरुआत में ही इस देश ने दुनिया के 35 देशों के नागरिकों का आना जाना बंद कर दिया और यह एलान भी किया कि जब तक काेराेना है विदेशी यहां नहीं आ सकेंगे। शायद इस देश काे अपनाें की जान की कीमत पता है।
चीन से सटा उत्तर कोरिया दुनिया के सीक्रेट देशों में से एक है। इस देश के आस्था के विश्वास की पराकाष्ठा है कि यह देश अपने आप काे नास्तिक देश मानता है। चीन में कोरोना वायरस फैला ताे इसने अपनी सारी सीमाओं को सील कर दिया था। आमतौर पर ज्यादा विदेशी नागरिकों का आना-जाना भी नहीं है। शायद इस देश का विश्वास है कि अपने सुरक्षित रहेंगे ताे सर्वाइवल आसान हाेगा।

2011 में आजाद हुआ दक्षिणी सूडान अभी घुंटैंया चलने वाला बालक है लेकिन कोरोना वायरस से मुक्त है। जनसंख्या की दृष्टि से जरा सा देश है। सीमाएं सील हैं। अंदर से ना बाहर जाने की अनुमति है ना बाहर से अंदर आने की। यहां तेल के उत्पादन पर आधिपत्य काे लेकर बड़े द्वंद हैं। फिलहाल 45 प्रतिशत तेल उत्पादन पर चीन का अधिकार है साे काेराेना की कुदृष्टि इस पर कैसे पड़ेगी।
तीन कराेड़ की आबादी वाला यमन भूखे गरीबाें का देश है। पूर्वी अफ्रीकी देश मलावी निहायती निर्धन देशाें में एक पर काेराेना से सुरक्षित। दक्षिणी अफ्रीकी देश बुरुंडी, अफ्रीका का लिसोथो और कोमोरोस भी फिलहाल कोरोना के संक्रमण में नहीं आए हैं। एक साल पहले भी नहीं और एक साल बाद भी नहीं।
भारत काेराेना प्रभाविताें की सूची में अमेरिका के बाद दूसरे पायदान पर है। खुशी इस बात की है कि मृत्युदर अन्य देशाें की तुलना में कम है। हमें, हमारी शारीरिक और मानसिक अवस्थाओं काे आदत जाे है सब कुछ चुप झेल जाने की। अंग्रेजी के अच्छे शब्दाें में कह लाे ताे इम्यूनिटी और डाइजेशन दाेनाे अच्छा है। देश हाे या मप्र एक साल बीत गया, अपने मर रहे हैं, भटक रहे हैं, इलाज के लिए तरस रहे हैं, खाने काे राेटी नहीं है और राेजगार छिन चुके हैं। हमारे पास हल है केवल लाॅकडाउन। नाम बदल कर और जिम्मेदारियाें के कंधे बदलकर। जानते हैं क्याें क्याेंकि जब सस्पेंड करने या मुखिया बदलने की बारी आए ताे साहब पर नहीं दाराेगा पर निलंबन की कार्रवाई करके लाॅलीपाॅप दी जा सके। अापदा में अवसर तलाशे जा रहे हैं उनके लिए जिनके हाथाें पहले ही अवसर देकर हम पहले से ही गलतियां करते चले आ रहे हैं।
इस सबका आप पर, मुझपर क्या प्रभाव हाेगा, इस पर भी मन का वमन करेंगे। आप सुनिएगा। सुधारिएगा और गलत लगूं ताे समझाइएगा.. शायद सुधर जाऊं।
अंत में हास्यमंच का एक व्यंग्य बताती हूं। कवि पूछते हैं बताओ भला इतना मांसाहार है प्रकृति में फिर मुर्गा, मुर्गी ही ज्यादा काटे जाते हैं। क्याें .. जवाब आया नहीं कवि ही बाेले सुबह- सुबह जगाता है ना इसलिए।

आप जगाइए मत पर जागिए
डर के आगे ही जीत है
अपने डर काे डराइए,
वह सब कीजिए जाे आपकी और आपके अपनाें की सुरक्षा के लिए जरूरी है। जागते रहेंगे तभी ताे जिंदा रहेंगे..

surbhi

– स्नेह सुरभि

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