अक्षय नवमी  : आंवले के वृक्ष की पूजा की

इटारसी।

मंगलवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया गया। इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। पुरानी मान्यता है जो लोग इस नवमी पर आंवले की पूजा करते हैं, उन्हें देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
बताते हैं कि इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की परंपरा भी है। ऐसा करने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है, सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता बढ़ती है, साथ ही ये त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। आंवले के रस के सेवन से त्वचा की चमक भी बढ़ती है। आंवला नवमी के अवसर पर आज महिलाओं ने विभिन्न मंदिर परिसरों और मैदानों में लगे आंवले के वृक्ष के आसपास पूजा करके परंपरा निभाई। महिलाओं ने आंवले के पेड़ के इर्दगिर्द सूत बांधकर परिक्रमा की। बूढ़ी माता मंदिर परिसर में भी सुबह से दोपहर तक सैंकड़ों महिलाएं पहुंची और आंवले के वृक्ष के आसपास पूजा अर्चना कर समय बिताया।
आंवला नवमी के संबंध में कथा प्रचलित है कि प्राचीन समय में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे शिवजी और विष्णुजी की पूजा की थी। तभी से इस तिथि पर आंवले के पूजन की परंपरा शुरू हुई है। आयुर्वेद में भी आंवला को सेहत के लिए वरदान मना गया है। इसके नियमित सेवन से आयु बढ़ती है और बीमारियों से रक्षा होती है तो आंवले के रस का धार्मिक महत्व भी है। मान्यता है कि नियमित रूप से पीने से पुण्य में बढ़ोतरी होती है और पाप नष्ट होते हैं। पीपल, तुलसी की तरह ही आंवला भी पूजनीय और पवित्र माना है और इसी वजह से आंवला नवमी पर इसकी पूजा की जाती है।

CATEGORIES
Share This
error: Content is protected !!