– विनोद कुशवाहा
इस प्यास के बिना, ज़िंदगी ये अधूरी है।
और ज़िंदगी तेरे बिना, खुद कितनी अधूरी है ।।
सब मिल भी गया गर, तो क्या कीजियेगा,
हर ख्वाब अधूरा है, ख्वाहिश भी अधूरी है ।
कुछ सोचते रहे रात भर, आंगन में लेटकर,
कुछ बात है तुझमें, कोई बात अधूरी है ।
गर मिलना हो कल, तो मिल जाना मोड़ पर,
क्यूं तुझ तक पहुंचने की , हर राह अधूरी है ।
जब तलक ज़िद थी मुझमें, चलता रहा अकेला,
जब साथ नहीं तुम , तो मंजिल भी अधूरी है ।
तुम ही हो प्रारब्ध मेरा, तुम मेरी नियति हो,
कुछ शेष नहीं बाकी, मुक्ति भी अधूरी है ।
– विनोद कुशवाहा .
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