इति ‘कथा’ 

Post by: Manju Thakur

– विनोद कुशवाहा

इस स्तम्भ का नाम ” हुरं ” इसलिये रखा गया है क्योंकि इसमें आपको सप्ताह के हर रविवार को जीवन के विविध रंग देखने को मिलेंगे ।

‘ इति कथा ‘ से शुरूआत् का अर्थ ये मत लगा लीजियेगा कि यहां किसी कथा का अंत होने जा रहा है बल्कि ऐसा मान लीजिये कि आज से “नर्मदांचल” आप से संवाद की एक श्रृंखला प्रारम्भ कर रहा है। हमारे पाठक हर वर्ग से हैं। उनका व्यक्तित्व भी बहुआयामी है। तो हम उनके स्वभाव और रुचि के अनुकूल इस स्तंभ में सब कुछ देने का प्रयास करेंगे। हर विषय को छूने की कोशिश करेंगे। इसमें हम कितना सफल होते हैं ये तो समय ही बतायेगा लेकिन उससे पहले जरूरी ये है कि हम सब पहला कदम तो बढ़ाएं। मेरा पहला कदम लिखने की तरफ और आपका पहला कदम पढ़ने की तरफ। तो चलिए हम एक नए सफर पर चलते हैं। ‘ नर्मदांचल ‘ के साथ। ” बहुरंग ” के साथ। मेरे साथ। आपके साथ। पाठकों के साथ हम साथ – साथ हैं। … और हमेशा रहेंगे।

इस कालम की शुरुआत हम करेंगे ‘साहित्य’ के साथ क्योंकि “साहित्य” में सबका हित छिपा रहता है। साहित्य में भी हम आज बात करेंगे गद्य की। गद्य में भी बात करेंगे हम कथा – लेखन की। इटारसी के कहानीकारों की। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हमने आज ‘ इति कथा’ से लेखन का श्रीगणेश क्यों किया ।

वैसे तो हिंदी साहित्य जगत में कथा पर केंद्रित केवल दो ही पत्रिका प्रमुख हैं। कथादेश और कथाक्रम । इटारसी से भी अखिलेश शुक्ल ने एक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था – कथाचक्र। अब शायद उसका प्रकाशन नहीं हो पा रहा है। क्यों ? कैसे ? इस पर हम नहीं जायेंगे।अन्यथा बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी।

फिलहाल हम बात करेंगे हमारे नगर के कथाकारों की। उसके लिए हमें थोड़ा पीछे लौटना होगा।
सबसे पहले मैं जिक्र करना चाहूंगा महिला कथाकारों की। जिनमें घूम फिरकर एक ही नाम सामने आता है। कमलेश बख्शी।
वे मूलतः इटारसी की हैं और संप्रति मुंबई में निवास करती हैं। उनके उपन्यास हमेशा चर्चा में रहे हैं तथा उन्हें अनेक सम्मान व पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। दूसरा प्रमुख नाम आता है – नीता श्रीवास्तव का। वे लगभग 22 वर्ष इटारसी में रहकर मौन साधक की भांति निरंतर कथा लेखन करती रहीं। उनकी कहानियां देश की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई हैं। साथ ही आकाशवाणी से भी उनकी कहानियों का प्रसारण होता रहा है। उनके 6 कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान में वे अपने परिवार के साथ महू में निवास करती हैं। लघु कथाकारों की बात करें तो उनमें स्वर्गीय रवि पांडे ‘अकेला ‘ और संतोष मालवीय ‘ प्रेमी ‘ का स्मरण हो आता है। वर्तमान में देवेन्द्र सोनी लगातार लघु कथायें लिख रहे हैं सम्भव है कि निकट भविष्य में उनका कथा संग्रह भी हमारे सामने आए। लघु कथायें तो शिप्रा विज ने भी लिखी हैं। प्रकाशित भी हुई हैं। 70 – 80 के दशक में संतोष मालवीय ‘ प्रेमी ‘ और देवेन्द्र सोनी ‘ कौशिक ‘ ने लंबी कहानियां भी लिखी हैं। एक नाम और मेरे जेहन में है । वो है डॉ अनिल सिंह ‘आजमी ‘ का । वे उत्तरप्रदेश में आजमगढ़ के थे परंतु स्वयं को इटारसी का ही मानते थे। वर्तमान में डॉ अनिल सिंह खंडवा में निवास करते हैं तथा खिरकिया के विष्णु राजोरिया महाविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर हैं। हम दोनों ने उन दिनों सैंकड़ों कहानियां साथ लिखीं जो प्रकाशित भी हुईं, प्रसारित भी हुईं। उस समय भी मैंने एक उपन्यास लिखा था जो किसी की नाराजगी की वजह से फाड़ कर फैंक दिया गया । इसकी चर्चा फिर कभी । उस समय अनिल सिंह ने भी शायद एक उपन्यास लिखा था। अपनी कहानी व उपन्यास पर उनका मन फिल्म बनाने का भी था । वे मुंबई से जुड़े हुए थे। अफसोस कि उनका ये सपना पूरा नहीं हो पाय। उसका कारण भी अजीबोगरीब है। उनके सपनों का अभागा नायक मैं ही था। ऐसे में उनके ख्वाब भला कैसे पूरे होते। बी के पटेल ‘ स्नेहिल ‘ के अंदर भी एक कथाकार मौजूद है। आदिमजाति कल्याण विभाग में शिक्षक के पद पर कार्यरत राकेश ओझा सशक्त कथाकार हैं। … अंत में पूर्ण विनम्रता और सम्मान के साथ मैं टी आर चोलकर और अशोक दीक्षित का यहां ज़िक्र करना चाहूंगा। अशोक दीक्षित म प्र विद्युत्त कम्पनी में अधिकारी हैं तो वहीं टी आर चोलकर भारतीय रेलवे के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं । अशोक दीक्षित ने कहानियां तो निरंतर लिखी हैं मगर उनके समयाभाव के कारण कहानियों का प्रकाशन कम हो पाया है। अशोक दीक्षित का भी कथा संग्रह प्रकाशित होने की प्रतीक्षा में दहलीज पर खड़ा है। जबकि टी आर चोलकर के कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उपन्यास लेखन के भी वे नजदीक हैं।

समय – समय पर इस अंचल में कुछ उपन्यासकार भी ” पुनश्च ” के संपादक दिनेश द्विवेदी के माध्यम से दस्तक देते रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से मृदुला गर्ग, चित्रा मुद्गल, मेहरुन्निसा परवेज़, राजेन्द्र अवस्थी आदि प्रमुख हैं। एक बार उपन्यासकार रानू भी इटारसी से रूबरू हो चुके हैं।

अभी इस स्तम्भ का शहर के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी पोस्टमार्टम करेंगे। तो उनसे मैं पहले ही क्षमा मांग लेता हूं। ये निवेदन करते हुए कि हे साहित्य और पत्रकारिता के डॉक्टर बंधुओं हो सकता है मेरे से कुछ नाम विस्मृत हो गए हों। तो कृपया मेरी टांग खींचने का कुत्सित प्रयास मत करियेगा वैसे भी विपिन जी के इस नगर की छवि को कुछ लोग धूमिल करने का प्रयास कर ही रहे हैं ।

यहां कथा समाप्त होती है । अगली बार फिर किसी नए विषय के साथ मिलेंगे । तब तक के लिए आज्ञा दीजिये । नमस्कार।

vinod kushwah

– 96445 43026

लेखक मूलतः कहानीकार है परन्तु विभिन्न विधाओं में भी दखल है। आपके ४ प्रकाशित काव्य संग्रह, अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं और कविताओं का प्रकाशन, भोपाल और बिलासपुर विश्व विद्यालय द्वारा प्रकाशित अविभाजित मध्यप्रदेश के कथाकारों पर केन्द्रित वृहत कथाकोश, कई पत्रिकाओं में वैचारिक प्रतिक्रियाओं का प्रकाशन, सोवियत रूस से कविताओं का प्रकाशन, आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण, कविताओं पर प्रदर्शनी हुई है। इसके अलावा आपने कृषि, पंचायत, समाज कल्याण, महिला बाल विकास, आरजीएम, शिक्षा विभाग में विभिन्न कार्यपालिका, प्रशासनिक, अकादमिक पदों पर सफलता पूर्वक कार्य किया है।

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