लगा उत्तर भारतीय समुदाय का मेला
इटारसी। उत्तर भारतीय समाज द्वारा मनाए जाने वाले लोकआस्था के पर्व छठ पूजा के अंतर्गत आज पथरोटा नहर के बहते पानी में खड़े होकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया गया। उत्तर भारत में यह पर्व नई फसल के आने पर मनाया जाता है और इसकी पूजा में खरीफ फसल के अनाज के नए दानों का उपयोग किया जाता है। साथ ही इस सीजन के नए फल भी उपयोग किए जाते हैं।
छठ पर्व के पहले दिन नदी या बहते हुए जल स्त्रोत पर जाकर डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। दूसरे दिन सुबह महिलाएं फिर नदी या बहते हुए जल स्त्रोत पर उगते हुए सूरज को अर्घ्य देती हैं। यह परंपरा महाभारत काल से चली रही है। इस पर्व को लेकर कहा जाता है कि जब पांडव जुएं में सब कुछ हार गए थे तो द्रोपती ने सूर्य देव से आराधना की थी तो जब उनका राजपाट मिल गया तो इस पर्व की शुरुआत हुई।
पथरोटा नहर पर लगा भक्तों का मेला
नहाय-खाय के साथ ही शुरु हुए छठ पर्व के अंतर्गत आज यहां पथरोटा नहर पर छठ व्रतियों ने डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ माता से अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की। छठ पूजा का नियम पालन पिछले दो दिन से व्रती सादगी और पवित्रता का विशेष ध्यान रख रहे हैं। छठ पर्व के तहत खरना के बाद अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया गया। बुधवार उगते सूर्य को व्रतधारी अपने रिश्तेदार व मेहमानों के साथ अर्घ्य देंगे। इसके साथ ही व्रत का समापन हो जाएगा।
छठ पूजा करने वाले व्रतियों ने व्रत प्रारंभ करने से पूर्व सुबह स्नान कर धूप अगरबत्ती से सूर्य देव का ध्यान किया। उसके बाद चावल, घीया की सब्जी, चने की दाल और रोटी का भोजन ग्रहण किया। सांध्य प्रहर में फिर इसी तरह से भोजन बनाकर ग्रहण किया। खरना के दिन सुबह स्नान के बाद दिन भर व्रत रखा। रात को सादी रोटी, गुड़ वाली खीर, केला का खरना हुआ।
मंगलवार को पहलाअर्घ्य यहां पथरोटा नहर पर हुआ। यहां रातभर वेदी बनाकर छठ माता की पूजा-अर्चना की। बताया जाता है कि शहर और आसपास लगभग एक हजार परिवार उत्तर भारत के हैं, जो वहां से यहां आकर विभिन्न कारोबार से जुड़कर यहीं रह रहे हैं। कई समाजसेवी इस छठ पूजा कार्यक्रम में विशेष योगदान देते हैं. बुधवार को छठ व्रती सुबह उगते सूरज को अर्घ्य देने के बाद गुड़ और अदरक का प्रसाद ग्रहण कर व्रत का उद्यापन करेंगे। इसी के साथ छठ पर्व का समापन होगा।
क्या है छठ पूजा
छठ पर्व सूर्यदेव की पूजा-अर्चना का पर्व है। इसे बिहार के भोजपुर निवासी खासतौर पर मनाते हैं। हालांकि यह संपूर्ण बिहार और उत्तर भारत के कुछ और रायों में मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली के बाद छठी तिथि को मनाया जाता है। पुराणों में भी इस पर्व की महिमा का बखान किया है। मान्यता है कि इस पर्व याचक को सब कुछ मिल जाता है। पुराणों में यह भी कहा है कि इस पर्व को मनाने से कुष्ठ रोग तक दूर हो जाता है।