देवी के चौथे स्वरूप कूष्माण्डा की करे आराधना, चढ़ाएं मालपुए या कद्दू के पेठे

Post by: Poonam Soni

इटारसी। शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navratri) के चौथे दिन देवी के चौथे स्वरूप मां कुष्माण्डा (Maa Kushmanda) की पूजा की जाती है। कूष्माण्डा माता आयु, यश, बल व ऐश्वर्य को प्रदान करने वाली भगवती कूष्माण्डा की उपासना-आराधना का विधान है। यह माता अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात है। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार सृष्टि से पहले जब अंधकार व्याप्त था तो मां दुर्गा ने ब्रह्मांड (अंड) की रचना की थी और यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति मानी जाती हैं इसलिए उनका नाम कूष्मांडा पड़ा। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है।

पूजा की विधि
इस दिन हाथों में पुष्प लेकर देवी मां को प्रणाम करें, कथा सुनें व षोड़षोपचार पूजन व आरती करें। मालपुए या कद्दू के पेठे चढ़ाएं। सर्वप्रथम मां कूष्मांडा की मूर्ति अथवा तस्वीर को चौकी पर दुर्गा यंत्र के साथ स्थापित करें इस यंत्र के नीचे चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं। अपने मनोरथ के लिए मनोकामना गुटिका यंत्र के साथ रखें। दीप प्रज्ज्वलित करें तथा हाथ में पीले पुष्प लेकर मां कूष्मांडा का ध्यान करें।

ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्.

सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्

कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्.

मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल मण्डिताम्.

प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्.

कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

 

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