विशेष आलेख : डॉ. अर्पणा श्रीवास्तव
भारतीय संस्कृाति आध्यात्म प्रधान संस्कृति है। आध्यात्मिक प्रकाश जीवन से नकारात्मकता को दूर करता है और ज्ञान का उजाला लाता है । आध्यात्म हमें जीवन जीने का तरीका सिखाता है क्योंकि इस मार्ग पर हमारे अंदर वो विचार जन्म लेते हैं जो हमें जीवन में सफलता और सत्य का मार्ग दिखाते हैं। हालांकि वक्त और उम्र के साथ बदलाव आते हैं लेकिन उस दौर में भी विचारों को संतुलित करना जरूरी है। सकारात्मक सोच एक उर्जा प्रदान करती है, हौसला देती है सफल होने का, और उत्साहित करती है नित नए आयाम स्थापित करने के लिए। वर्तमान में किसी स्थिति को देखते हुए कभी भी अगर आप नकारात्मक हो तो अपने मस्तिष्क को अच्छे विचारों की दवाई दीजिए। हमारे पास शक्ति है यह निर्णय लेने की कि कौन सी भावना को हम महसूस करना चाहते हैं और ऐसे ही भावनाओं को रचा जा सकता है। यह आसान नहीं है लेकिन मेहनत करेंगे तो ऐसा हो पाएगा। बस जरूरत है इस रास्ते को खोजने की जिसमें आध्यात्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।
वर्तमान में लॉकडाउन के समय में टी.वी. धारावाहिक रामायण, महाभारत, कृष्णा आदि से उत्पन्न नए विचार और ज्ञानार्जन के द्वारा भावी पीढ़ी के द्वारा कुछ नया सृजन करने में रूचि दिखाई दे रही है, जिससे भविष्य में परिणाम सुखद होंगे। जहां तक नैतिक मूल्यों की बात की जाए तो उनके भी पल्लवित होने के अच्छे अवसर मिलेंगे। यह नैतिक मूल्य हमारे स्वभाव में मिलकर अच्छे संस्करों का निर्माण करते हैं, जिसके आभाव में हम कितना भी ज्ञान अर्जन कर लें अधूरा है। पहले समयाभाव हुआ करता था परंतु अभी आज घर में रहकर बालक-बालिकाओं के मन में यह टी.वी धारावाहिक आध्यात्म के प्रति अधिक रूचि जागृत करने में अधिक मददगार और नवीन चेतना का संचार करने में सहायक होंगे। यह कार्य देश में हिंसा और आराजकता को दूर करने में उपयोगी होगा।आध्यात्म धर्म को बढ़ावा देने में और अधर्म का नाश करने में भी सहायक है। अत: आध्यात्मा का होना हमारे जीवन में विशेष महत्व रखता है। हमें इस आध्यात्म को लेकर ही चलना होगा, जिसे जीवन की कला कहा गया है ।
लॉकडॉउन के इस दौर में भी प्रासंगिक हैं महर्षि श्री अरविंद के विचार:-
महर्षि श्री अरविंद एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी, महान स्वातंत्रता सैनानी, कवि, योगी और महान दार्शनिक थे। वेद,उपनिषद, योग आदि पर उन्होंने मौलिक ग्रंथ लिखे। उनका पूरे विश्व में आध्यात्म पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है। महर्षि श्री अरविंद आत्मवान थे। ऐसे में जब देश बड़ी निराशा व विषाद की स्थिति से गुजरता दिखाई दे रहे है, हम सब श्री अरविंद के विचारों से ऐसी आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं जो सबको सहारा दे और पथ प्रदर्शन में सहायक होगी ।
जैसे की हम जानते हैं समाज में हर तरह के विचार के व्यक्ति होते हैं, कुछ पैसे की नजर से ही हर स्थिति, परिस्थिति व्यक्तियों को देखते हैं । कुछ शारीरिक नजर से हर समय, हर किसी को परखते हैं, कुछ लोग भावुकता के पलड़े में सबको तौलते हैं। बुद्धि से विचार करने वाले तो कम ही होते हैं और सबसे कम होते हैं आध्यात्म की नजर से संसार को देखने वाले। आध्यात्मिक पहलु का अर्थ है जीवन को यथार्थ से देखना। प्रभु का ध्यान आध्यात्म के सुख के क्षेत्र में आता है। आध्यात्म की नजर से देखें तो सुख- दुःख तो मात्र एक विचार है। एक के लिये एक घटना दु:ख का संदेश लाती है, तो दूसरे के लिए भविष्य में सुख की आहट भी देती है। किसी भी खबर का असर अच्छा या बुरा नहीं होता है। हर खबर को साक्षी भाव से देखना चाहिए, तो इतनी परेशानी नहीं होगी जितनी बनाई जाती है। एक बार आपने साक्षी भाव को संसार की हर खबर को देखना शुरू कर दिया तो भंयकर से भंयकर दुख में भी आप डोलेंगें नहीं।
श्री अरविंद का जीवन और उनकी रचनाएँ भावी पीढ़ी को संदेश देती हैं कि वे इसके महत्व को समझे तथा समझाने का प्रत्यन करते रहे हैं। उनकी पुस्तक ‘सावित्री’ 2400 लाईन वाली कविता है जो आध्यात्म पर आधारित है, लाईफ डीवाईन, गीता प्रबंध, वंदे मातरम् (पत्रिका), भवानी मंदिर आदि भी उनकी रचनाएँ हैं। अरविंद आश्रम से निकलने वाली पत्रिका ‘कर्मधारा’ में कहा जाता है कि उन्हें साधना के दौरान भगवान कृष्ण के दर्शन हुए और इस प्रकार वे योग और आध्यात्म में रम गये। उन्हें विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियाँ भी हुई। इस प्रकार हम कह सकते है श्री अरविंद ऐसे युग पुरूष थे जिनको मनुष्य यु्गों तक याद रखेगा। उनके जन्मजात संस्कार, विचार, संकल्प तथा आदर्श हमारे लिये प्रेरणा शक्ति हैं। उन्होंने मानव जीवन को और अधिक सुंदर बनाने हेतु अंर्तज्ञान को विशेष महत्व दिया है। जो आने वाली पीढ़ी के लाभप्रद सिद्ध होगा। अत: उनकी साहित्यिक रचनाओं से प्रकृति प्रेम की भावनाओं का विकास और आध्यात्मिक आभास द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त कर स्वयं भी और दूसरों को भी आध्यात्म से मानव जीवन का चरमोत्कर्ष से अवगत करा सकतें हैं ।
मनुष्य की यह परा-प्रकृति –आत्मा उतनी ही सत्य है, जितनी कि किसी पाश्चात्य व्यक्ति की इंद्रियों के लिए कोई भौतिक पदार्थ। आत्मा-परमात्मा – का अंश है यह तो सर्वविदित है।आत्मा में चैतन्य नामक विशेष गुण हैं।आत्मा में जानने की शक्ति है आत्मा के द्वारा जीव को अपने अस्तित्व का बोध होता है और ज्ञान मूल स्त्रोत आत्मा ही है।
वेद, गीता, रामायण, महाभारत, योगसिद्धि अन्तर्ज्ञान की दुर्लभ विधि है। अत: आध्यात्म इस सृष्टि का सर्वोच्च ज्ञान है । इस प्रकार सृष्टि के उन अनसुलझे रहस्यों को जिन्हें विज्ञान नहीं सुलझा सका, चेतना शक्ति के आधार पर सुलझाने में समर्थ विद्या को आध्यात्म के नाम से जाना गया है। मानवीय समस्यों के हल के लिए विज्ञान एवं आध्यात्म का मिलना नितांत आवश्यक है। भौतिक विज्ञान केवल लौकिक आनंद दे सकता है । परंतु आध्यात्म विज्ञान का आदर्श मनुष्य को अधिक आनंद देता है। आज मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार को समझने के लिए स्मृति, कल्पनां, निर्णय अनुभव बोध आदि का भी उपयोग कर रहा है। विज्ञान में ऊर्जा भौतिकी के क्षेत्र में नए अनुसंधान कार्य हो रहे हैं। इनसे भविष्य, में आत्मा अथवा चेतना के स्वतंत्र अस्तित्व का प्रमाण सिद्ध होना संभव है।
इसलिए आज इस बात की आवश्यकता है कि विज्ञान के साथ-साथ आध्यात्म की ओर भी उचित ध्यान दिया जाए, अन्यथा आज का मानव विभिन्न प्रकार की समस्याओं और संकटों से त्राण नहीं पा सकता है। इस अर्थ में यदि देखा जाये तो आध्यात्म एक सकारात्मक विज्ञान भी है, क्योंकि इसका जन्मस ही आत्मा के आधार से और आत्महित के लिए ही होता है। अत: कहा जा सकता है कि आध्यात्म मानव जीवन के चरमोत्कर्ष की आधार शिला है ।
व्याख्याता (अंग्रेजी)
शा. नर्मदा महाविद्यालय,
होशंगाबाद(म.प्र.)