इटारसी। आज उत्तम संयम धर्म के अवसर पर श्री चैत्यालय जी में प्रात:काल तीन बत्तीसी का पाठ और 9 बजे से मंदिर विधि हुई।
इस अवसर पर प्रवचनों में बताया कि व्रत व समिति का पालन करना, मन, वचन,काय की अशुभ प्रवत्तियों का त्याग करना, अपनी इन्द्रियों को वश में करना तथा प्राणियों की रक्षा करना उत्तम संयम धर्म कहलाता है। संयम दो प्रकार के बताये गये हैं। प्राणी संयम, पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय जीवों की रक्षा करना तथा करने का भाव निरंतर होना, प्राणी संयम कहलाता है। इन्द्रिय संयम, पांच इन्द्रियों स्पर्शन, रसना, घ्राण, नेत्र, कर्ण और मन को नियंत्रण में रखना तथा रखने का निरंतर भाव होना, इन्द्रिय संयम कहलाता है। इन दोनों संयमों में इन्द्रिय संयम मुख्य है क्योंकि इन्द्रिय संयम प्राणी संयम का कारण है, इन्द्रिय संयम होने पर ही प्राणी संयम होता है, बिना इन्द्रिय संयम के प्राणी संयम नहीं हो सकता। हम सब इन्द्रियों के दास बने हुए हैं बड़े-बड़े बलवान योद्धा और विचारशील विद्वान भी इन्द्रियों के गुलाम बने हुए हैं, और हम अपना अधिकतर समय इन्द्रियों को तृप्त करने में ही लगाते हैं। हमें भी अपनी क्षमतानुसार जितना हो सके अपनी इन्द्रियों और मन को संयमित करके संसार- सागर से मुक्ति रूप अपना ध्येय साधना चाहिए और नियम लेना चाहिए। यदि हमारे ऐसे नियम लेने के भाव आने लगें तो हमारी भी उत्तम संयम-धर्म पालन करने की शुरुआत हो जाएगी।