डाक सेवा के 37 साल बेमिसाल…ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का पर्याय रहे शर्मा

Post by: Poonam Soni

होशंगाबाद। डाक विभाग (post office) जैसे आम जनता से सीधे जुड़ाव और वित्तीय संस्थान के योग जैसे अति महत्वपूर्ण विभाग में 37 साल की बेदाग सेवा के बाद साल के अंतिम दिन धर्मेंद्र शर्मा सेवानिवृत्त हो गए। उन्होंने होशंगाबाद, रायसेन जिले के उदयपुरा, बाड़ी, सुल्तानपुर के अलावा विदिशा मुख्य डाकघर में डाक सहायक और सहायक पोस्टमास्टर का दायित्व जिम्मेदारी से निभाया। दोबारा होशंगाबाद आये और संभागीय कार्यालय में अहम जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए विभाग को अलविदा कहा। उनके सेवानिवृत्ति के दौरान लंबे समय तक उनके सहकर्मी रहे मित्रों के हर्ष और विषाद मिश्रित भावों को शब्दों में सहेजना किसी के भी बूते की बात नहीं। उनके भावों का सार मात्र यही है कि शर्मा जितने अच्छे कर्मचारी रहे, उससे अच्छे वे व्यक्ति हैं। विभाग आज एक श्रेष्ठ कर्मचारी और उम्दा व्यक्ति को विदा करते हुए दुखी है, तो उनके भावी सुखमय और स्वस्थ जीवन के प्रति शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए प्रसन्न भी हैं।

ईमानदारी की मिसाल
बेहद साधारण और विपन्न परिवार से आने वाले श्री शर्मा अपने काम के प्रति बेहद सजग और निष्ठा की परिसीमा तक ईमानदार रहे। उन्होंने शायद ही कभी अपने कार्यालय से एक सफ़ेद पेपर या एक रिफिल भी घर लाए हों। ऐसा ही वाकया उस वक्त का जब श्री शर्मा विदिशा संभागीय कार्यालय में महत्वपूर्ण पद पर पदस्थ थे। इस दौरान विभाग में डाक सहायक के पद पर भर्ती चल रही थी। अभ्यर्थियों में श्री शर्मा के गांव के पास का एक युवक भी शामिल था। जब उसे श्री शर्मा की भूमिका की जानकारी लगी तो अपने परिजनों के साथ विदिशा आ गए। यह बात 90 के दशक की रही होगी। उन्होंने श्री शर्मा को पूरी बात बताई और किसी भी तरह युवक को भर्ती कराने की बात करते हुए उनके सामने बड़ी रकम देने का प्रस्ताव रखा। यह रकम उस दौरान श्री शर्मा के करीब छह माह के वेतन के बराबर रही होगी। श्री शर्मा ने तत्काल तो भर्ती के बाबत उनसे कुछ नहीं कहा, लेकिन शाम तक रुकने की बात कहकर कार्यालय चले गए। शाम को कार्यालय से लौटकर उन्होंने कहा कि आपके बेटे की भर्ती स्वत: हो चुकी है। उन्होंने इसके बाद भी श्री शर्मा को कुछ राशि देने की जिद की, लेकिन उन्होंने एक नया पैसा भी नहीं लिया। जबकि इस दौरान शर्मा का परिवार बेहद कठिन दौर से गुजर रहा था। ऐसे कई वाकये उनके सामने आए, लेकिन वे कभी अपनी राह से विचलित नहीं हुए।

पूरे परिवार का रहे सहारा
श्री शर्मा छह भाई बहनों में सबसे बड़े हैं। इस साधारण गरीब परिवार में बड़े बेटे का स्थान पिता की तरह ही होता है। श्री शर्मा ने इस जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाया। उन्होंने न केवल अपनी शासकीय सेवा पूरी जिम्मेदारी से की अपितु अपने पारिवारिक दायित्वों को भी पूरा किया। उनका पूरा जीवन ही परिवार के लिए समर्पित रहा। सभी भाई बहनों को बेहतर शिक्षा दीक्षा दिलाई। उन्हें व्यवस्थित किया। आज उनका परिवार सुखी और समृद्धि की ओर अग्रसर है।

दी जाती हैं मिसालें
श्री शर्मा अपने गांव के पहले ऐसे युवक थे, जिन्होंने हायर सेकंडरी परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी। उनके पिताजी गौरीशंकर शर्मा और माताजी भगवती देवी शर्मा बताती हैं कि ‘मुन्नाÓ बचपन से ही होनहार था। जब ये पहली में था तभी रामचरित मानस पढ़ लेता था। उसके मास्साब उससे बहुत खुश रहते थे। उनके पिताजी बताते हैं कि वे खुद निरक्षर हैं लेकिन बच्चों को शिक्षा देने के लिए पूरा जीवन संघर्ष में बिता दिया। इस कार्य में उनके काका पंडा दादा की दूरदृष्टि, उनका संघर्ष, त्याग, शिक्षा के प्रति उनकी सोच अहम रही। उन्होंने बताया कि उनके बेटे की आज भी समाज में लोग मिसाल देते हैं।

चाचा मेरे बौद्धिक अभिभावक
इस दौरान श्री शर्मा ने बताया कि भले ही मेरे माता पिता कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन उनसे अच्छे और सच्चे माता पिता हो ही नहीं सकते। निरक्षर रह कर भी शिक्षा के महत्व को उनसे बेहतर कोई जान ही नहीं सकता। उन्होंने बताया कि मेरे चाचा, जिन्हें हम
‘लाला’ कहते हैं। वे मेरे बौद्धिक अभिभावक हैं। प्रज्ञा चक्षु होते हुए भी उन्हें सभी धार्मिक ग्रंथ कंठस्थ हैं। वे बचपन से ही हमें धार्मिक कथाएं सुनाते थे। हमारे सभी भाई बहनों के चरित्र पर उनकी बहुत छाप है। मेरे जीवन की सफलता इन्हीं महान व्यक्तियों से मिली सीख का प्रतिसाद है। इस अवसर पर सभी को सादर नमन।

 

Leave a Comment

error: Content is protected !!