गजल : दिल से मेरे जाने क्यों अब वो…

गजल : दिल से मेरे जाने क्यों अब वो…

दिल से मेरे जाने क्यों अब वो, ज़ुदा होता नहीं,
कैद में है उसकी दिल मेरा, रिहा होता नहीं।

बस गये हैं दिल में मेरे वो, नज़र के रास्ते,
कब वो आते कब हैं जाते, ये पता होता नहीं।

रूठ जाते मुझ से अक्सर, मैं मनाऊँ इसलिए,
मीत मेरा दिल से मेरे, तो ख़फ़ा होता नहीं।

कर दिया उसके नयन ने, जादू ऐसा देखिए,
अब किसी से दिल को मेरे, राबता होता नहीं।

है अगर जाना तो जाओ शौक से, तुम रूठ कर,
दोस्ती में दोस्तों के, फ़ासला होता नहीं।

कौन कब बन जाए दिलबर, किसको होता पता,
ये कहीं पर यार मेरे, तो लिखा होता नहीं।

mahesh soni

महेश कुमार सोनी
माखन नगर .

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