झरोखा : लो आया सावन झूम के…

झरोखा : लो आया सावन झूम के…

: पंकज पटेरिया –
हमारी ड्रीम लैंड रेसीडेंसी मे सावन जैसे ही आया तो तो सभी ड्रीम लैंडवासी खुशी से झूम झूम गाने लगे… लो आया सावन झूम के…। जैसे उनका बरसो पुराना कोई ड्रीम साकार हो गया हो। जब यह झूमझाम की झमाझम संडे की भीगी सुबह हमारी नींद की खलल बनी, तो अवचेतन में बसे मेरे शहर के सावन दास मेरी आंखो मे अपने पूरे भरे पूरे कद के साथ साकार हो गए। दरअसल अपने छोटे शहर से रिटायरमेंट के बाद अपने राम बच्चों के पास ताजा आए हैं। लिहाजा इस महानगर की कालोनी कल्चर से हाल फिलहाल अनभिज्ञ मुश्किल एक अदद डुप्लेक्स लंबे चौड़े शर्तनामे के बाद किराए पर प्राप्त हो पाया। इसलिए धीरे-धीरे यहां का माहौल समझ आएगा, किराएदार जो ठहरे।
बहरहाल हमारे शहर में जब किसी के घर सुबह सावन आ धमकता तो मतलब साफ होता था, किराना दुकान की उधारी चुकाने का उलाहना देने कोई सावन आया होगा। वह बहुत अच्छे जानता था कि बाबू जी संडे को ही घर पर पाए जाते। फिर छुट्टी के कारण पोहा वोहा बनता है, गोया नाश्ते की जुगाड भी हो जाती है। अब अपने राम तो इस महानगर की इस कालोनी में अभी नमुदार हुए इसलिए ज्यादा जानकारी ड्रीम लैंड कालोनी की नही।
यू अतीत का प्रेत आदमी का साथ बुढ़ापे तक कहां छोड़ता। यह बात अलग है कि अल्जाइमर वगैरह की गिरफ्त में आ जाए तो थोड़ा बहुत छुटकारा मिल जाता है। तो यहां के सावन के आने का अर्थ नही पता था। खैर यहां जो सावन आया है झूमके और जिसकी झुमझुमाहट पूरी ड्रीमलैंड कॉलोनी में छा गई।वह बिल्कुल अपने सावन से अलग है।
दरअसल मेरे यहां के सावन सेठ जी से संबंधित यह मामला है। हमारे मकान मालिक अमुकचंद जी ने बताया कि यह नया बाजार वाले सुपर मार्किट के मालिक सेठ सावन दास जी है। बहुत भले आदमी है। उन्होंने यहां कालोनी में एक बड़ी किराना दुकान खोली है, ताकि रहवासियों को राशन पानी आदि की किल्लत न हो। बेचारो को तेल चाय दाल चावल शक्कर आदि के ४,५ किलो मीटर भागना पड़ता था। ओह जी यह बात है, मैंने सिर हिलाया।
तभी देखा आपस में शर्माजी, मिश्रा जी बातचीत करते आ रहे थे। उनके एक हाथ में सत्यनारायण के प्रसाद की पुड़िया थी, दूसरे हाथ में लटक रहे केरी बैग में दो तीन अन्य बड़ी घरेलू सामान की पुड़िया थी। दोनो की बातचीत का सार यह था कि सेठ जी ने बड़ा काम किया। अब सिगरेट से लेकर खाने पीने तक का सब समान हमे मिल जायेगा।आज ओपनिग की है कथा करवाई थी। सभी को बुलाया था,अच्छा हुआ चले गए। नही जाते तो माइंड कर जाते।
आज ही दुकान शुरू की है लिहाजा कुछ खरीदना भी चाहिए। सो लगे हाथ नगद खरीदी भी कर ली।अब घर गृहस्थी में कब कौन सा सामान खत्म हो जाए, इसलिए डाल लाया। दोनों की बातचीत से सावन का निहितार्थ और अर्थशास्त्र मुझे समझ आ गया। तभी मेरी अकल का ट्यूबलाइट जल उठा। मैं भाग कर थोड़ा सा घरेलू सामान नगद पैसे देकर ले आया। परिचय भी हो गया। आगे उधारी आदि लिए प्लेटफार्म भी बन गया। अब मैं समझ गया आया सावन झूम के… का सही सही मायने यानी डेफीनेशन।

नर्मदे हर

pankaj pateriya

पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
9893903003
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