झरोखा : जरुरी है वर्तमान का चिपको आंदोलन…

Post by: Manju Thakur

Their sorrows and pains are one caste, they are together in happiness also

: पंकज पटेरिया –
पेड़ो को आसपास रहने दो
धरती को सांस लेने दो,
ये हमारे आदि देव है,
यह अटल विश्वास रहने दो।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव का आभार मानते हुए राजधानी की जनता ने जय जयकार के उद्घोष से आकाश गूंज दिया, २९ हजार पेड़ों की बलि देकर बनाए जाने वाले माननियो के बंगले और फ्लैट का प्रस्ताव निरस्त कर दिया। नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गी और विधायक भगवान दास सबनानी के प्रति भी राजधानी वासियों ने साधुवाद व्यक्त किया।
दरअसल शिवाजी नगर और तुलसी नगर में माननियो के बंगलो और फ्लैट बनाने के लिए बड़े पैमाने पर दरख्तों को जिनकी संख्या तकरीबन 29 हजार बताई जाती है काटे जाने की एक प्रोजेक्ट का व्यापक विरोध शुरू कर बड़े पैमाने पर क्षेत्रवासियों ने एक जबरदस्त आंदोलन शुरू किया था, जिसे चिपको आंदोलन नाम दिया था। धीरे-धीरे इसे जबरदस्त सहयोग मिलना शुरू हुआ था। ऐसे समय जब ना प्रदेश बल्कि अपने देश और दुनिया में पर्यावरण को लेकर चिंता की जा रही है और पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ जैसे आंदोलन चलाए जा रहे हैं, ऐसे में प्रदेश में पेड़ों को कत्ल करने का काम कैसे संभव होता। लिहाजा संवेदनशील मुख्यमंत्री ने अविलंब इस प्रोजेक्ट को निरस्त कर दिया। जिसका राजधानी में व्यापक स्वागत हुआ।
इधर प्रसंग वश चिपको आंदोलन की पृष्ठभूमि में झांकना जरूरी है ताकि नई पीढ़ी के लोग जान सके की चिपको आंदोलन आखिर क्या है। उल्लेखनीय है चिपको आंदोलन एक पर्यावरण रक्षा आंदोलन था। जो उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में शुरू हुआ था चमोली आज उत्तराखंड में है। इसका नेतृत्व प्रख्यात गांधीवादी नेता और चिंतक स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा ने किया था श्री चंडी प्रसाद भट्ट और श्री गोरा देवी उनके सहयोगी थी और उनके साथ हो गए। वहां की महिला पुरुष बताते हैं जंगल के ठेकेदार चमोली के घने जंगल काटते जा रहे थे यह 1973 की बात है। इससे फिक्र बंद लोगों ने पेड़ों को आलिंगन कर पर्यावरण रक्षा की अपील करते हुए यह आंदोलन शुरू किया था। आंदोलन को देश दुनिया में व्यापक चर्चा हुई थी। बहुगुणा जी द्वारा शुरू किया गई इस मुहिम की अमेरिका ने भी सराहना करते हुए, उन्हें पुरस्कृत किया गया था। और अंत में तात्कालिक कांग्रेस सरकार को जनता के सामने घुटना देखने को मजबूर होना पड़ा और किसी तरह वन संपदा की रक्षा हो पाई थी।
मुझे याद है, गांधीवादी पत्रकार और पर्यावरणविद स्वर्गीय अनुपम मिश्रा उत्तराखंड और जोशी मठ हर माह जाते थे कवरेज करने के लिए। वह दिल्ली से जाते आते वक्त होशंगाबाद अब नर्मदापुरम में गट्टू बाबू के बगीचे अब श्री दादा कुटीर में रुका करते थे यह भी उनका परिवार था। 70 के दशक में मेरी पत्रकारिता के शुरुआती दिन थे। लिहाजा खूब पढ़ने, लिखने और नई नई जानकारी जुटाने की ललक मन में रहती थी। मैं अपने बहनोई श्री टी पी मिश्र के यहां रहता था। जब तब अनुपम भाई के यहां आने पर हमपेशा होने से उनसे खूब बाते चिपको आंदोलन की होती थी। तभी से देश दुनिया में चिपको आंदोलन लोक प्रिय हुआ। लिहाजा ऐसे मौके पर पूरी जनचेतना एक बिंदु पर केंद्रित होकर कामयाब होता है चिपको आन्दोलन।
अस्तु सरकार ने पर्यावरण रक्षा के संकल्प को दोहराते हुए, इस तरह के किसी भी प्रोजेक्ट को कभी भी मंजूरी न देने की मंशा पर मुहर लगा दी।
एक बार पुन साधुवाद।
नर्मदे हर

pankaj pateriya edited

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
9340244352

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