सरकार और संस्थाओं के जागरुकता के प्रयास विफल हो रहे हैं। समझाईश और लगातार हो रहे घाटे के बावजूद धरतीपुत्र के तमगे के साथ किसान उसी मां के आंचल में आग लगा रहा है, जिसके कारण उसे धरतीपुत्र होने का सम्मान मिला है। गेहूं की फसल की कटाई के वक्त बड़ी संख्या में खेत सुलगते रहे हैं, अब गेहूं की बुवाई के लिए भी किसान खेतों को आग के हवाले कर रहे हैं।
आज सोनासांवरी से बाईखेड़ी के मध्य कई खेत सुलग रहे थे। धान की पराली में आग धधक रही थी तो अनेक खेत कालिख लिए हुए थे, जिनमें अगली फसल की तैयारी थी। कुछ खेतों में पलेवा का काम चल रहा था तो कुछ में ट्रैक्टर से बखरनी की जा रही थी। लगातार इस बात के लिए किसानों को जागरुक किया गया कि नरवाई जलाने से खेतों की उर्वरा शक्ति कम होती है, जब उर्वरा शक्ति कम होगी और उत्पादन प्रभावित होगा तो निश्चित तौर पर ज्यादा उपज लेने के लिए किसान अधिक मात्रा में यूरिया, डीएपी और अन्य रसायनिक चीजों का इस्तेमाल करके अनाज को जहरीला बनायेगा। यह न सिर्फ स्वयं किसान के बल्कि उपभोक्ता के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ होगा।
सरकार से उम्मीद क्या करें? केवल जागरुकता कार्यक्रम तक उसकी भूमिका सीमित है और कभी-कभार कुछ किसानों पर एफआईआर भी हो जाती है। बावजूद इसके किसान नरवाई जलाना नहीं छोड़ रहा है। निश्चित तौर पर यह अधिक उत्पादन का मोह ही कहा जाएगा। जब पंजाब जैसे हालात यहां पैदा होंगे तो ही शायद किसान इसमें बदलाव लाये!