कविता: फितरत प्रेम की

Post by: Poonam Soni

राह में हम तेरे इंतजार में
तुझे देखना गवारा ना था
तो हमारी भी पलटकर
देखने की फितरत ना रही।

चाहत थी, तब भी और अब भी
पर तेरी नजरों ने फेरी नजर
मेरी भी चाहत दिखाने की
अब फितरत ना रही।

तेरी याद जो टीस बन रही
पर यूँ तेरा खामोशी से जाना
अब मेरी भी रोने की
पुरानी फितरत ना रही।

वादा कर निभाना
सबके वश में कहाँ
साथ तेरे, यह दर्द का रिश्ता
पर अब तू आया भी अगर
दर्द दिखाने की फितरत ना रही।

MINAKSHI

मीनाक्षी ” निर्मल स्नेह “
खोपोली ( महाराष्ट्र)

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