समाजवादी जन परिषद ने पेसा कानून पर उठाये सवाल

इटारसी। समाजवादी जन परिषद (Samajwadi Jan Parishad) ने मध्यप्रदेश सरकार (Government of Madhya Pradesh) द्वारा लागू पेसा कानून पर अमल को लेकर अनेक तरह के सवाल उठाये हैं।

उनका मानना है कि वर्तमान में जल, जंगल, जमीन पर वन विभाग का कानून चलता है। बिरसा मुण्डा जयंती से लेकर मध्य प्रदेश में पेसा कानून जागरूकता सम्मलेन तक राज्य की सरकार एवं मुख्यमंत्री बड़ा जोर लगाकर कह रहे हैं कि पेसा कानून के तहत जल, जंगल, जमीन सभी गांव वालों का है।

मगर जमीनी हकीकत और ही कुछ बयां करती है। अब देखना यह है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में आदिवासी ब्लॉक एवं जिले हैं, ये सब सरकार के दायरे के हिसाब से संविधान के पांचवी व छटवी अनुसूची के दायरे में आते हैं तो क्या अब इन क्षेत्रों में राज्य एवं केन्द्र के अन्य कानून लागू करेंगे या चालू रहेंगे?

समाजवादी जन परिषद के नेता फागराम और राजेन्द्र गढ़वाल ने सवाल उठाया कि सरकार के वन विभाग, राजस्व, जल संसाधन, सहकारिता विभाग, पुलिस विभाग, आबकारी विभाग, केन्द्र सरकार की सतपुड़ा टाईगर रिजर्व के कानून पेसा कानून क्षेत्र में लागू रहेंगे या सभी विभागीय कानून में बदलाव किया जायेगा।

इस समय जल, जंगल, जमीन पर सम्पूर्ण कब्जा वन विभाग का है। आज भी गांव के गरीब व आदिवासियों लोगों पर अंग्रेज के जमाने के वन कानून 1927 के द्वारा गरीबों पर केस बनाया जाता है। गरीबों को जेल भेजा जाता है। आज भी कई गरीब व आदिवासी लोग जेल में हैं। आज आदिवासी इलाकों में कई पत्थर खदान रेत खदान सरकार के खनिज विभाग के पास में है, क्या पेसा कानून के तहत खनिज विभाग खदानें वापस करेगा ?

पेसा कानून के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग एवं रेलवे लाइन को कोरीडोर से जोडऩे के लिए सड़कों को चौड़ीकरण करने के लिए किसानों की जमीन लोगों की जमीन अधिग्रहण करेंगे तो पांचवी व छटवी अनुसूची क्षेत्र में राज्य सरकार व केन्द्र सरकार जमीन छोडऩे को तैयार होगी?

क्या सरकार कहीं पर भी किसी निजी कंपनी को उद्योग के लिए जमीन देना बंद करेगी, आज के आधुनिक सभ्यता के दौर में या आधुनिक विकास के दौरे में गांव का विस्थापन बन्द होगा?

क्या पेसा कानून लागू होने से क्या गांधी जी के सपनो का स्वराज्य आएगा? अब देखना है कि सरकार की नीयत और नीति में कितना दम है?

क्षेत्र की गरीब जनता एवं राज्य की गरीब जनता को अपना हक़ अधिकार के लिए संघर्ष करना ही पड़ेगा बिना संघर्ष के कुछ नहीं मिलने वाला है और जब तक बड़े बदलाव के लिए बड़े संघर्ष करना ही पड़ेगा।

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