इटारसी। श्री द्वारिकाधीश बड़ा मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में भागवत कथा ज्ञान गंगा की महिमा बताते हुए आचार्य पंडित सौरव दुबे भागवताचार्य ने भक्तों को विगत 7 दिनों से निरंतर भागवत कथा रूपी अमृत का रसपान कराते हुए विश्राम दिवस में भगवान की सुंदर दिव्य कथाओं का रसपान कराया।
आचार्य दुबे ने कथा में भगवान द्वारिकाधीश के विवाहों की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि विवाह भोग के लिए नहीं विवाह योग के लिए होता है। भटके हुए मन को एक खूंटे में बांध देना ही विवाह कहलाता है। महाभारत का प्रसंग भागवत के माध्यम से युधिष्ठिर के द्वारा राजसूय यज्ञ की पावन कथा का विस्तार करते हुए आचार्य श्री ने बताया कि हमेशा छोटी से छोटी सेवा सबसे छोटा काम करके करना चाहिए। इसलिए भगवान सर्व समर्थ होते हुए भी द्वारिकाधीश ने महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भगवान ने अतिथियों का पाद प्रक्षालन एवं संत महापुरुषों की जूठी पत्तल उठाने का कार्य किया।
श्री सुदामा चरित्र का विस्तार करते हुए कहा कि सुदामा की दरिद्रता भगवान श्री कृष्ण ने ही दूर की उन्होंने भगवान द्वारकाधीश और सुदामा की कथा का बड़ा ही मार्मिक करुणामय प्रसंग सुनाते हुए मित्र का मित्र के प्रति कैसा व्यवहार होना चाहिए चौपाई का उदाहरण देते हुए कहा जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहिं विलोकत पातक भारी।। का दृष्टांत सुनाया ।भक्त का भगवान के प्रति समर्पण होना चाहिए इसका जीवंत उदाहरण मित्र सुदामा से सीखना चाहिए।
कथा के अंत में दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कथा सुनाते हुए कहा कि मानव जीवन में गुरु की अति आवश्यकता है। परीक्षित जी को श्री शुकदेव जी का अंतिम उपदेश देते हुए बताया कि आत्मा अजर अमर है अविनाशी है। इसे न शस्त्र काट सकता है, ना आग जला सकती है। शुकदेव जी की विदाई के साथ कथा के विश्राम में हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे के साथ पूरा पंडाल भक्ति में हो गया।
कथा के यजमान श्रीमती इंदु हेमन्त बडग़ोती एवं सभी भक्तजनों ने भगवान की सुंदर आरती उतारी और इसी के साथ ही कथा का विश्राम हुआ। पंडित सौरभ दुबे ने विश्राम दिवस पर संबोधित करते हुए उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जिन्होंने श्रीमद् भागवत कथा आयोजन में भरपूर सहयोग दिया। उन्होंने मंदिर समिति सहित स्थानीय प्रशासन एवं मीडिया का भी आभार व्यक्त किया।