स्वच्छता की रैंकिंग में पलीता लगा सकती है शहर की ” डर्टी पिक्चर “

Post by: Rohit Nage

The city's "dirty picture" can spoil the cleanliness ranking.
  • – स्वच्छ सर्वेक्षण की तैयारी को मुंह चिड़ा रहे कचरे के ढेर
  • – गंदगी, लापरवाही और अनदेखी कहीं गिरा न दे इस बार रैंकिंग
  • – नगर पालिका ने अब तक शुरु नहीं की स्वच्छ सर्वेक्षण की तैयारी
  • – सोशल मीडिया पर रोज नागरिक पोस्ट करते हैं गंदगी की पिक्चर

इटारसी। जगह-जगह कचरे के ढेर, बेपरवाह नगर पालिका के अधिकारी, गंदगी को लेकर सोशल मीडिया पर लगातार नगर पालिका को लानत भेजते आम नागरिक। यह तस्वीर, इस वर्ष नगर पालिका को स्वच्छता सर्वेक्षण में रैंकिंग गिराने के लिए काफी है। जहां महज 17 किलोमीटर दूर नर्मदापुरम की नगर पालिका दो माह से लगातार स्वच्छता सर्वेक्षण की तैयारी कर रही है, इटारसी नगर पालिका ने एक कदम भी नहीं बढ़ाया है। विभागीय अधिकारी बेफिक्र हैं, मानो उनको स्वच्छता रैंकिंग से कोई सरोकार नहीं। पिछले वर्षों में स्वच्छता रैंकिंग में मिले तमगे अब केवल इतिहास की बात बनकर दीवार की शोभा बढ़ा रहे हैं, क्योंकि शहर की स्वच्छता व्यवस्था बदहाल है।

शहर की तंग और भीतरी गलियों की बात छोडिय़े, यहां तो सोशल मीडिया पर बाजार में लगे कचरे के ढेर की तस्वीर पोस्ट करने के बाद सफाई होती है, वह भी स्वच्छता विभाग के सभापति के सक्रिय होने पर। अन्यथा, अधिकारियों का रवैया तो ऐसा मालूम होता है, जैसे स्वच्छता सर्वेक्षण जैसी कोई परीक्षा के विषय में इनको जानकारी नहीं ही नहीं है।

शौचालयों की सुध नहीं

नगर पालिका का स्वच्छता अमला अब तक जागृत अवस्था में नहीं आया है। शहर के शौचालयों में सालभर में हुई कमियों को अब तक नहीं जांचा गया है, पुताई, रंगाई, रैंप, लैंप जैसी बुनियादी चीजों पर ध्यान नहीं गया है। सामुदायिक शौचालयों की बदहाली भी देखने अधिकारी अब तक नहीं पहुंचे हैं। स्वच्छता विभाग के निरीक्षक केवल कुर्सी पर बैठकर ड्यूटी बजा रहे हैं, वे कभी मैदान में दिखाई नहीं देते। तुलना करें तो पूर्व के अधिकारियों के कामकाज के इर्दगिर्द भी वर्तमान के अधिकारी दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसे में कैसे रैंकिंग की उम्मीद की जाए? भले ही रैंकिंग कम हो जाए, लेकिन, इतना तो रुचि ले लें कि शहर साफ ही दिखने लगे। क्योंकि स्वच्छता रैंकिंग का पैमाना बड़ा कठिन है, उस तक पहुंचना वर्तमान की कार्यप्रणाली देखकर असंभव सा लगता है।

प्रयास ही नहीं दिख रहे

स्वच्छता रैंकिंग अच्छी लाने के लिए नगर पालिका के प्रयास नाकाफी तो छोडि़ए होते ही नहीं दिख रहे हैं। नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पंकज चौरे और सभापति राकेश जाधव की सुबह शहर के वार्डों के दौरे और निरीक्षण से होती है, और अधिकारियों की सुबह दफ्तर के वक्त आकर रजिस्टर में हाजरी देने से। शहर के लगभग हर वार्ड से गंदगी की शिकायत की आ रही हैं और सफाई कराने की मांग लोग कर रहे हैं। साफ-सफाई के नाम पर हर माह लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन फिर भी वार्डों में सफाई नजर नहीं आती है। स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर कोई तैयारी दिखाई नहीं दे रही है। सफाई को लेकर गंभीरता नहीं बरती जा रही है। वार्डों में खाली पड़ी जगहों पर गंदगी के ढेर नजर आते हैं।

सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी बेअसर

शहर में सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बड़ी मात्रा में हो रहा है, इस पर कागजों में पाबंदी है, लेकिन हकीकत में यह बेअसर है।पिछले दिनों नगर पालिका ने अतिक्रमण हटाया तो रेलवे स्टेशन के पास नालियों में हजारों डिस्पोजेबल भरे पड़े थे, जो साफ नहीं किये गये। कचरे के ढेर में सबसे ज्यादा डिस्पोजल, पॉलीथिन नजर आती है। नपा द्वारा पहले, तो कभी-कभार कार्रवाई की जाती थी, लेकिन अब कार्रवाई बंद है। थोक विक्रेताओं के यहां बड़ा स्टाक है और छोटे-छोटे दुकान पॉलीथिन में ही सामान बेच रहे हैं।

रैंकिंग में आएगी गिरावट

यही हाल रहा तो निश्चित तौर पर इस बार स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर की रैंकिंग में गिरावट आना तय है। न तो कचरा वाहनों में गीला-सूखा कचरा अलग लिया जा रहा है, ना ही कचरा गाडिय़ां वार्डों में समय पर पहुंचती हैं। सड़कों पर झाड़ू तो महीने में एकाध बार लग जाए तो वहां के लोग खुशकिस्मत समझते हैं, जहां सफाई हो जाती है। नालियों की सफाई भी नियमित नहीं की जाती है। लोगों में बीते दस वर्षों में नगर पालिका गीला-सूखा कचरा अलग-अलग देने की आदत नहीं बना पायी, जागरुकता अभियान केवल तभी चलता है, जब सर्वे टीम के आने का वक्त होता है। ठीक उसी तरह जैसे कोई पढ़ाई से बचने वाला बच्चा सालभर नहीं पढ़ता, केवल परीक्षा की तारीख आने पर ही किताब खोलता है। ऐसे में वह या तो फेल होता है या बेहद कम अंक हासिल कर पाता है।

सभापति खुद परेशान

कभी गंदगी देखकर, कभी चलित शौचालय की हालत देखकर, कभी कचरे में लगी आग देखकर, कभी सफाई कर्मचारियों की अनुपस्थिति देखकर स्वच्छता विभाग के सभापति स्वयं परेशान रहते हैं। वे लगातार सोशल मीडिया पर इसको पोस्ट भी करते हैं कि उन्होंने कब किसकी लापरवाही पकड़ी। आज ही चलित शौचालय की जर्जर हालात देख सभापति राकेश जाधव ने नाराजी व्यक्त की। निरीक्षण के दौरान तीनों शौचालय की जर्जर हालत, टूटे दरवाजे, पानी के नल नहीं होना पाया गया। जाधव ने अधिकारियों पर नाराजी व्यक्त करते हुए कहा कि जन सुविधा के लिए शौचालय बनाए थे, शहर में सामाजिक, धार्मिक कार्यों में होने वाले आयोजनों में इन चलित शौचालय की आवश्यकता पड़ती है, ऐसे में सभी शौचालय तैयार रहना चाहिए । सीएमओ से जल्द उक्त समस्या का निराकरण करने का अनुरोध करते हुए स्वास्थ विभाग पर विशेष ध्यान देना का अनुरोध किया। इन हालातों में जाहिर है, सफाई अमला बेलगाम हो चला है, इस पर नकेल कसना जिन अधिकारियों की जिम्मेदारी बनती है, वे स्वयं ही रुचि नहीं ले रहे हैं। कुल जमा हालात ठीक नहीं है, ऐसे में अच्छी रैंकिंग की उम्मीद करना बेमानी है।

इनका कहना है…

  • वर्तमान जो अधिकारी हैं, वे सेनेटरी इंस्पेक्टर नहीं हैं, हम स्थायी सेनेटरी इंस्पेक्टर के लिए प्रयास कर रहे हैं। अब स्वच्छता विभाग के अधिकारियों को भी सक्रिय किया जाएगा और उनसे भी कहेंगे कि वे वार्डों में निकलकर निरीक्षण करें।

पंकज चौरे, नपाध्यक्ष

  • हां, यह सही है कि अभी हम पूरी तरह से इस तरफ ध्यान नहीं दे सके हैं। लेकिन, हम संसाधन जुटा रहे हैं। शौचालयों की मरम्मत होनी है, डस्टबिन बदले जाने सहित अन्य कई काम होने हैं, हम जल्द ही इसकी तैयारी में तेजी लाएंगे। प्रयास किया जाएगा कि शहर की रैंकिंग घटे नहीं बल्कि बढ़े।

श्रीमती ऋतु मेहरा, सीएमओ

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