श्री धृष्णेश्वर ज्योर्तिलिंग के पार्थिव स्वरूप का पूजन एवं रूद्राभिषेक
इटारसी। श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर लक्कडग़ंज इटारसी (Shri Durga Navagraha Temple Lakkadganj Itarsi) में श्री धृष्णेश्वर ज्योर्तिलिंग (Shri Dhrishneshwar Jyotirlinga) के पूजन एवं रूद्राभिषेक के साथ यहां पर चल रहे पार्थिव ज्योर्तिलिंग पूजन एवं रूद्राभिषेक का समापन हो गया।
प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी भगवान शिव (Lord Shiva) को प्रसन्न करने 29 जुलाई से भगवान शिव का पूजन एवं रूद्राभिषेक मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे, आचार्य पं. सत्येन्द्र पांडे एवं पं. पीयूष पांडे के द्वारा प्रतिदिन पूजन एवं रू्रदाभिषेक कराया जा रहा था। समापन समारोह के अवसर पर मंदिर समिति के अध्यक्ष प्रमोद पगारे ने समिति के सचिव जितेंद्र अग्रवाल बबलू कोषाध्यक्ष दीपक जैन सहित सदस्य देवेंद्र पटेल सुनील दुबे महेंद्र पचोरी एवं यजमानों के प्रति आभार व्यक्त किया।भगवान धृष्णेश्वर ज्योर्तिलिंग की महिमा भक्तो को बताई गई। शिव ही ब्रम्हा और विष्णु है। शिव साक्षात परम सत्य है। शिव शून्य है तो शिव अनंत भी है। शिव के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है चाहे देवता हो या मानव बिना शिव पूजन के किसी का उद्धार नहीं हुआ। सावन मास में शिव पूजन का विशेष फल मिलता है।
उक्त उदगार मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे ने द्वादश ज्योर्तिलिंग पूजन और अभिषेक के अवसर पर भगवान धृष्णेश्वर ज्योर्तिलिंग की महिमा बताते हुए व्यक्त किए। श्री धृष्णेश्वर ज्योर्तिलिंग की महिमा और इतिहास बताते हुए पं. विनोद दुबे ने कहा कि इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन बिना 12 ज्योर्तिलिंग की यात्रा अधूरी मानी जाती है इसलिए यात्री यहां अवश्य आते है।
महाराष्ट्र (Maharashtra) के औरंगाबाद (Aurangabad) से पश्चिम की ओर 30 किलोमीटर (KM) दूरी पर वेरूल गांव के समीप शिवालय नाम के तीर्थ स्थान पर धृष्णेश्वर दिव्य ज्योर्तिलिंग है। यहां पर कालांतर में नाग पूजक आदिवासियों की वस्ती थी। नाग जमीन में जिस स्थान पर रहते है उसी स्थान को बाबी पहले है। समय चलते यह नाम वारूल और फिर वेरूल हो गया। मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे ने उक्त ज्योर्तिलिंग की कई कथाएं अलग-अलग ढंग से विस्तार से बताई और कहा कि यहां पर शिवजी का वास है क्योंकि इस लिंग की स्थापना माता पार्वती ने की थी। इंदौर (Indore) की रानी अहिल्याबाई होल्कर (Rani Ahilyabai) पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसी महिला हिंदू रानी थी जिन्होंने देश के बारह ज्योर्तिलिंग का समय-समय पर जीर्णोद्वार कराया उसमें धृष्णेश्वर भी एक था।