इटारसी। शिवनगर चांदौन में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में कथावाचक पंडित भगवती प्रसाद तिवारी ने कहा कि अपनी आत्मा भी अंदर है और परमात्मा भी अंदर है। परमात्मा से मिलने का रास्ता भी अंदर ही है। उन्होंने कहा कि सत्संग, सेवा, धर्म, ईश्वर में श्रद्धा रखो, श्रद्धा अनुभूति का विषय है, शब्दों का नहीं,अनुभव करो और सुखी रहो।
कथा के पांचवे दिन उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपने कर्तव्य के साथ परम कर्तव्य भगवत्प्राप्ति, आत्मसंतुष्टि, आत्म उन्नति का भी प्रयत्न करते रहना चाहिए। जीवन में कितना भी काम, झंझट, परेशानियां हों, अपनी आत्मा के लिए समय जरूर निकालना चाहिए। राजा परीक्षित को सतगुरू शुकदेव जी ने यही समझाया था, कि राजन अब अपने परम कर्तव्य का पालन करो। मोह माया में मत फंसो ये सब छोड़कर जाना पड़ेगा। मृत्यु सबकी होती है, पर मुक्ति सबकी नहीं होती है। मनुष्य शरीर की दशा देखकर के चिंतन करो कि यह नाशवान है, फिर भी इस शरीर से अविनाशी आत्मसुख को पाने का प्रयास, पुरूषार्थ, प्रयत्न, प्रार्थना करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज की सेवा, राष्ट्र की, गरीब की, गौमाता की, माता-पिता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है। मानव आंख से,जीभ से, मन से पाप करता है। सतगुरूदेव कहते है पाप छोडऩा ही महान पुण्य है। किसी को सुख ना दे सको तो कोई बात नहीं, दुख देना बंद कर दो। अगर सबको सुख देना हमारे हाथ में नहीं है तो दुख ना देना ये तो हमारे हाथ में है।