*कर्तव्यों व अधिकारों के मध्य संतुलन ही है धर्म : कोरोना महाभारत के आध्यत्मिक मर्म*

Post by: Manju Thakur

*प्रसंग-वश- चंद्रकांत अग्रवाल*
दूरदर्शन पर तो महाभारत ने विराम लेकर बिदा ले ली पर कलर्स व स्टार प्लस पर दो अलग अलग कथानक, कलेवर, ग्लेमर के साथ महाभारत जारी है। उसी प्रकार कोरोना का महाभारत भारत में भी उग्र होता जा रहा हैं। सोम-रस की सरकारी अनुमति से हो रही वर्षा ने देश भर में आग में घी का काम किया ऐसा कई बुद्धिजीवी मानते हैं।सोम-रस तो वैसे भी आदिकाल से ही सोशल डिस्टेंस के साथ ही इमोशनल डिस्टेंस भी बढ़ाता रहा हैं। पर इस बार सोम-रस लेने के लिए 2-3 किमी तक लगी कतारों ने सोशल डिस्टेंस भी खत्म कर दी प्रारंभ के कुछ दिनों में। लाकडाउन में भी दवा, दूध के अलावा सिर्फ दारू के लिए बिंदास कोई भी अपने घरों से निकलकर मनचाहे ढंग से घूम फिर सकता हैं। कोई रोक-टोक होने पर सीना तानकर कह सकता हैं टच नहीं करना दारू लेने जा रहा हूँ या दारू की बोतल बताकर कह सकता है कि दारू लेकर आ रहा हूँ। गोया दारू की बोतल उसके लिए कर्फ्यू पास बन गयी हैं। कोरोना से पहले शराबी मदिरा की खरीदी, उसका उपभोग सामाजिक निंदा से बचने छुपकर करते थे, अब खुलकर कर रहे हैं। कोरोना ने उनको बहुत बेशर्म बना दिया हैं। दिलचस्प बात यह हेै कि मैंने आज तक कभी नहीं सुना कि किसी ने किसी से भीख में मदिरा मांगी हो। मदिरा के लिए उसकी गरीबी भी कहीं बाधक नहीं बनती। कोरोना के साथ अब अपराध भी बढ़ गये हैं। मदिरा का साथ पाकर।

mahabharat 1
महाभारत में शर-शय्या पर लेटे भीष्म श्रीकृष्ण के निवेदन पर धर्मराज युद्धिष्ठिर को राज धर्म की शिक्षा देते हुए कहते हैं कि देश से, मातृभूमि से बड़ा कभी कोई नहीं होता। कोरोना के इस महाभारत में देश की चिंता कितने लोग कर रहे हैं। देश की छोड़ों अपनी स्वयं की चिंता तक नहीं कर रहे व लॉकडाउन में भी सोशल डिस्टेंसिंग का रोज मजाक बना रहें हैं। भीष्म धर्म की भी बड़ी अद्भुत परिभाषा अर्जुन को बताते हैं। वे कहते हैं किअपने कर्तव्यों व दूसरों के अधिकारों के मध्य संतुलन बनाना ही वास्तव में धर्म हैं। आज ऐसा धर्म कितनों को स्वीकार्य हैं। हर व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए मुखर हैं पर अपने कर्तव्यों व दूसरों के अधिकारों की उसे कोई परवाह नहीं हैं। तब यह धर्म तो नहीं हैं। फिर तो यह अधर्म ही हुआ। फिर भी यह देश सुरक्षित हैं तो सिर्फ उन सेवाभावी, समर्पित, राष्ट्रप्रेमियों की नैतिक ताकत के कारण जो हर संक्रमण काल में सिर्फ अपने कर्तव्यों व दूसरो के अधिकारों को याद ही नहीं रखते तदनुसार कर्म भी करते हैं।
श्रीकृष्ण ,द्रोपदी से कहते हैं कि विधाता ने सबको किसी न किसी हेतु से पृथ्वी पर भेजा हैं, जन्म दिया हैं। पर जब कोई भी विधाता के उसके निमित्त किये गये हेतु के विश्वास को ठेस पहुंचाया हैं तो फिर वह स्वयं भले ही कुछ समय का सुख व वैभव प्राप्त कर ले पर विधाता की परीक्षा में तो फेल हो जाता हैं। इस तरह उसका संपूर्ण जीवन भी निरर्थक हो जाता हैं। समय की धूल उसे इस तरह मिट्टी में मिला देती हैं कि इतिहास, देश व समाज तो दूर की बात हैं उसके अपने सगे संबंधी भी उसको कभी याद नहीं करते। श्रीकृष्ण कहते हैं कि शूरवीर तो कुरूक्षेत्र में वीर गति को प्राप्त करके भी मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं पर सुविधाभोगी का अपराध कभी भी न तो विधाता माफ करता हैं, न प्रकृति एवं न ही इतिहास। कोराना के इस महाभारत में हमें इस कड़वे यथार्थ को नहीं भूलना चाहिए। कर्ण द्वारा अधर्म के पक्ष में युद्ध करने पर भी उसकी दानवीरता ने उसे अमर कर दिया। इतिहास आज भी यदि अधर्म के पक्ष में युद्ध करने वाले भीष्म,एवं कर्ण को सम्मान देते हैं तो सिर्फ इसीलिए कि उनके जीवन में त्याग ही उनका परम धर्म था।आज भी कोरोना के महाभारत में देश को, मातृभूमि को अपना तन, मन, धन सभी देने की हमारी दानवीरता की परीक्षा की घड़ी हैं। कोई अधर्मी होकर भी अपनी दानवीरता से अपना जीवन सार्थक कर सकता हैं। यह समय स्वार्थी व सुविधाभोगी बने रहने का तो कतई नहीं हैं। कोरोना योद्धाओं पर पुष्प वर्षा करके, उनके पद प्रक्षालन करके ही हम अपने कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं मानें। स्वयं भी उनकी तरह तन से , मन से या फिर धन से पीड़ित मानवता की सेवा में यथाशक्ति अपना योगदान देवें। तभी हमारी भावशुद्धि रेखांकित होगी, तभी हमारी सक्रियता सार्थक होगी। यदि कुछ नहीं भी करना चाहते तो कम से कम अपने घर में रहकर कोरोना योद्धाओं की जिजीविषा व उनके अदम्य साहस को सम्मान तो देवें उनको इस तरह प्रणाम तो कर ही सकते है। देशों की सीमाओं पर लड़े जाने वाले युद्धों में तो शत्रु सामने होता है पर कोरोना के महाभारत में तो किसी को पता नहीं कि कब कोरोना का हमला, किस तरह हमें अपना शिकार बना लेगा। अत: आत्म अनुशासन, जन जागरण भी इस महाभारत के कारगर ढाल है बचाव के लिए।
कम लोग ही जानते होंगें कि श्रीकृष्ण द्रोपदी को युद्ध का परिणाम युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व ही बता देते हैं। पर वे द्रोपदी को कहते हैं कि हर मानव को भविष्य में नहीं वर्तमान में ही जीना चाहिए, वर्तमान में ही रहना व सोचना चाहिए। भविष्य को विधाता के ऊपर छोड़ देना चाहिए क्योंकि भविष्य को तय करने का अधिकार सिर्फ विधाता के पास होता हैं।
श्री कृष्ण ने द्रोपदी को स्पष्ट बता दिया था कि उसके पति 5 पांडवों को छोड़कर संपूर्ण कुरू वंश का विनाश हो जायेगा। अपरोक्ष रूप से इसका अर्थ यह था कि अभिमन्यु व उसके पांचों पुत्र भी मारे जायेंगें। द्रोपदी यह सुन विचलित हो गयी। उसने युद्ध न होने देने व अपने अपमान को भूल जाने की बात कही। तब श्री कृष्ण ने बहुत खूबसूरत व्याख्या की जिंदगी की। उन्होंनें कहा कि तुम्हारे पिता ध्रुपद द्वारा किये गये यज्ञ के अग्नि कुंड से तुम्हारा जन्म विधाता ने क्यों किया यदि तुम उसका मर्म न समझकर धर्म के आदर्श मूल्यों व सत्य की स्थापना में अपनी भूमिका नहीं निभाओगी तो तुम अपने पुत्रों के साथ आनंद से जी तो लोगी पर यह समाज मातृभूमि व देश के साथ छल ही होगा। दूसरे दिन द्रोपदी बहुत चिंतन करने के बाद श्री कृष्ण से सहमत हो जाती हैं। महाभारत के लिए द्रोपदी को जिम्मेदार मानने वाले सब कुछ जानते हुए भी देश व प्रजा के लिए भावी पीढ़ी के लिए उसकी इतनी बड़ी कुर्बानी को याद रखें व अपने गिरहबान में झांकर देखें कि वे स्वयं कोरोना के इस महाभारत में कहां खड़े हैं।

chandrakant

आप वरिष्ठ लेखक, पत्रकार व कवि हैं जो विगत 35 सालों से साहित्य व पत्रकारिता हेतु लेखन कार्य कर रहे हैं।
Contact : 94256 68826

Leave a Comment

error: Content is protected !!