क्यों मनाया जाता हैं गंगा दशहरा पर्व जानियें महत्व और पूजन विधि सम्पूर्ण जानकारी…
गंगा दशहरा कब मनाया जाता हैं?
ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष के दसवें दिन गंगा दशहरा मनाया जाता हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह मई व जून के बीच आता हैं। इस दिन को गंगा अवतरण भी कहते हैं। ये शब्द गंगा व अवतरण से मिलकर बना हैं।
गंगा दशहरा 2022 शुभ मुहूर्त
दशमी तिथि प्रारम्भ | जून 09, 2022 को सुबह 08 बजकर 21 मिनट पर |
दशमी तिथि समाप्त | जून 10, 2022 को सुबह 07 बजकर 25 मिनट पर |
गंगा दशहरा कैसे मनाया जाता हैं?
गंगा दशहरा को गंगा का जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म मे इस त्यौहार का अधिक महत्व हैं। इस दिन गंगा में स्नान किया जाता हैं। गंगा के मुख्य घाट हरिद्वार, वाराणसी, इलाहबाद, ऋषिकेश मे हैं। 10 दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में, गंगा के हर घाट को सजाया जाता हैं। हजारों की संख्या मे गंगा दशहरा पर लोग स्नान करते हैं।
गंगा दशहरा का महत्व (Significance of Ganga Dussehra)
पुराणों के अनुसार भागीरथ की तपस्या के बाद जब गंगा धरती पर आई थी। उस दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी थी। गंगा माता के धरती पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से पूजा जाना जाने लगा। इस दिन गंगा में स्नान करने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती हैं। स्कंद पुराण में दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र दिया हुआ हैं।
यदि नहीं जा पा रहें गंगा नहाने तो यह मंत्र का करें जाप
ऐसा माना जाता हैं कि अगर आप गंगा नदी नहीं जा पा रहें हैं तो आप घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा का ध्यान करते हुए स्नान कर सकते हैं। इसके बाद इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से आपको उतना ही फल मिलेगा जितना आपको गंगा मे नहाने से मिलता।
”ऊं नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:”
“ऊं नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा”
गंगा दशहरा पूजा विधि
- गंगा दशहरा के दिन गंगा में 10 डूबकी लगाकर स्नान करना चाहिये।
- स्नान करने के बाद पूजा स्थल पर धूप दीपक जलाकर, पुष्प अर्पित करना चाहिये।
- गंगा का ध्यान करतें हुऐ मंत्र का जाप करना चाहियें।
- गंगा को 10 प्रकार का भोग लगाना चाहियें।
- इसके बाद गंगा जी की आरती करना चाहियें।
दान करना न भूलें
गंगा दशहरा के दिन 10 चीजों का दान करना शुभ माना जाता हैं। हिंदू धर्म मे त्यौहारों पर दान करना बहुत ही अच्छा माना जाता हैं। गंगा दशहरा पर भी दान करना और गरीबों को भोजन कराना शुभ होता हैं। इससे गंगा की कृपा दृष्टि आप पर बनी रहेगी और आपकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
गंगा दशहरा क्या मान्यता हैं
ऐसा माना जाता हैं कि गंगा दशहरा के दिन स्नान कर पूजन करने से 10 तरह के पाप धूल जाते हैं। और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। इतना ही नहीं इस दिन पूजा में भी आपको 10 तरह की चीजों का इस्तेमाल करना चाहिए। आप अलग अलग तरह के फल और फूल से गंगा की पूजा कर सकते हैं।
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गंगा दशहरा कथा (Ganga Dussehra Story)
एक बार राजा सागर ने अपने साठ हजार पुत्रों के साथ एक बहुत विशाल यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। देवराज इंद्र ने सागर के यज्ञ के घोडें का हरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था पर अंशुमान ने राजा सागर के साठ हजार पुत्रों के संग घोडें को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया परन्तु घोडें का कहीं पता नहीं चला। फिर धोडें को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी पर गया।
पृथ्वी पर जा कर देखा कि साक्षात भगवान महर्षि कपिल एक ऋषि के रुप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सागर का घोडा घास चर रहा था। प्रजा उन्हें देखकर चोर-चोर चिल्लाने लगी। महर्षि कपिल की तपस्या भंग हो गई। जब महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले तो तो वहां मौजूद सारी प्रजा और सागर के बेटे भस्म हो गए।
उसके बाद मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने गंगा की मांग की। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि राजन आप पृथ्वी पर गंगा का अवतरण तो चाहते हों, परन्तु आपने पृथ्वी से पूछा हैं कि क्या वह गंगा के भार और वेग को संभाल पाएंगी। मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने के लिए शक्ति केवल भगवान शिव में हैं। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त किया जायें।
महाराज भगीरथ ने वैसा ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा की धारा को अपने कमण्डल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धाराओं को अपनी जटाओं में समेट लिया और जटाए बांध ली। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका। अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई।
उन्होंने एक बार फिर से भगवान शिव की आराधना की। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वर दिया। इस प्रकार शिव की जटाओं से छूटकर गंगा हिमालय की घाटियों में कल-कल करतीं हुई मैंदान की ओर मुड़ी। इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भागशाली हुए।
उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत किया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा हैं। गंगा प्राणी मात्र को जीवनदान ही नहीं देती, बल्कि वह उन्हें मृत्यु के उपरांत मुक्ति भी देती हैं। इसी कारण भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गंगा की महिमा गाई जाती हैं।
पवित्र गंगा को स्वच्छ बनाये रखें
इन त्योहारों के दौरान ये देखा जाता हैं कि लोग जितना भी चढ़ावा फूल, नारियल, पन्नियाँ सभी नदी में बहा देते हैं। इससे गंगा मैली होती जा रही हैं। इस पवित्र नदी को बचाने का जिम्मा हमारा ही हैं। इसे ऐसे दूषित न होने दें। पूजा पाठ के दौरान उसमें स्नान के दौरान साबुन का प्रयोग न करें। पूजन सामग्री को भी निश्चित स्थान में ही रखें नदी में न बहायें। इसके लिए सरकार द्वारा भी गंगा की सफाई के कई अभियान चलाये गए हैंं।