बहुरंग : कब तक बेइज्जत होती रहेगी मीडिया (Media) ? – विनोद कुशवाहा

Post by: Manju Thakur

हाथरस (Hathras)में जो हुआ वह बेहद शर्मनाक है। निर्भया की मृत्यु के बाद बने कानून भी असरहीन साबित हो रहे हैं। अपराधियों में भी कानून और सजा का ख़ौफ रहा नहीं। तभी आए दिन इस तरह की घटनायें होती रहती हैं। चाहे उत्तरप्रदेश हो, राजस्थान हो या फिर मध्यप्रदेश ही क्यों न हो। हर राज्य में दुष्कर्मों की घटनायें बढ़ती जा रही हैं। इस सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है पुलिस का रवैया। पहली बात तो ये है कि पीड़िता थाने तक पहुंच ही नहीं पाती। फिर अगर जैसे – तैसे पहुंच भी जाती है तो उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती। थाने में भी उससे इस तरह के सवाल किये जाते हैं मानो उसने ही कोई अपराध किया हो। कई बार मीडिया की सजगता से एफ आई आर लिखी जाती है। मीडिया (Media)की सक्रियता से ही अपराधी को दंड भी मिलता है। उसी मीडिया (Media)के साथ जब स्थानीय प्रशासन और पुलिस प्रशासन हाथरस में दुर्व्यवहार करता है तो दुख होता है।
हाथरस में ‘आज तक’ की संवाददाता को जिस तरह डीएम ने धमकी दी या वहां जिस तरह का अभद्र व्यवहार एडीएम ने किया उसने समूची व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। केवल पत्रकार ही नहीं ‘तृणमूल कांग्रेस’ के सांसद भी पुलिस की बदतमीजी के शिकार हुए हैं। पुलिस अधिकारी यहीं नहीं रुके उनके कलुषित हाथ प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की गिरेबां तक भी पहुंच गए। अफसोस इस बात का है कि इतना सब होने के बाद भी ये कॉलम लिखे जाने तक प्रशासन ने न तो डीएम के खिलाफ कोई कार्यवाही की और न ही एडीएम के विरुद्ध कोई एक्शन लिया गया। जबकि पूरा देश टीवी पर ये सब कुछ लाइव देख रहा था। इतना ही नहीं प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi)और मायावती (Mayawati) बार-बार डी एम को हटाने की मांग कर रही हैं लेकिन मुख्यमंत्री योगी (CM Yogi) डीएम का बचाव करते नजर आ रहे हैं।
इधर होशंगाबाद के पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह गौर (Santosh Singh Gour, SP Hoshangabad) ने ‘शांति समिति’ (shaanti samiti) की बैठकों एवं पत्रकार वार्ता में समस्त स्थानीय पत्रकारों को आमंत्रित करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने अपने निर्देश में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि पत्रकारों को आमंत्रित करने में किसी भी तरह का पक्षपात बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। केवल यही नहीं पुलिस अधीक्षक ने यहां तक निर्देशित किया है कि भविष्य में यदि इस तरह की कोई शिकायत मिलती है तो संबंधित के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी। इस सराहनीय पहल के लिए मैं व्यक्तिगत रूप से पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह गौर के प्रति आभार व्यक्त करता हूं। उल्लेखनीय है कि जिले के सेमरी हरचंद (Semri Harchand) कस्बे में आयोजित ‘शांति समिति’ की बैठक में शासन द्वारा अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार रमा दुबे (Rama Dubey)को आमंत्रित न कर उनकी घोर उपेक्षा की गई।
इटारसी से प्रकाशित एक लोकप्रिय साप्ताहिक समाचार पत्र ने भी इस अंक के अपने ‘संपादकीय’ में लगभग इसी आशय की बात की है। ‘संपादकीय’ के अनुसार – प्रदेश के कई पुलिस थानों में अपने अपनों को बुलाकर ‘शांति समिति’ की बैठकों के आयोजन की औपचारिकता भर पूरी की जा रही है। आगे वे लिखते हैं – देखने में आता है कि ‘शांति समिति’ की बैठकों में सत्तारुढ़ पार्टी के नेताओं को बैठकों में विशेष तवज्जो दी जाती है और अन्य लोगों की उपेक्षा की जाती है।
उपरोक्त शिकायतें वाजिब हैं। स्थानीय नगरपालिका प्रशासन द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भी आमंत्रण को लेकर यही बात कही जा सकती है। ‘गणतंत्र दिवस’ जैसे “राष्ट्रीय पर्व” पर गणमान्य नागरिकों की उपेक्षा की जाती है। जो सही मायने में गणमान्य नागरिक हैं वे गांधी मैदान के किसी कोने में खड़े होकर भीड़ का हिस्सा बन कर रह जाते हैं।
तो अब सवाल ये है कि पुलिस प्रशासन जिनको ‘शांति समिति’ की बैठकों में आमंत्रित करने योग्य समझता है उसका मापदंड क्या है? यही सवाल मुख्य नगरपालिका अधिकारी (CMO, Nagar Palika) से पूछा जाना चाहिये कि स्थानीय प्रशासन किसे गणमान्य नागरिक मानता है ? उसका अपना मापदंड क्या है ? ये कौन तय करता है कि कौन गणमान्य नागरिक है और कौन नहीं है?

vinod kushwah

विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)

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