इटारसी। हमारा देश समृद्ध परंपरा, संस्कृति और त्योहारों का देश है। ये त्योहार हमें अपने नजदीक लाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है रंगों का महोत्सव होली। बदलती स्थिति में होली की परंपरा में भी विसंगतियां आयी हैं। आधुनिक होली प्रकृति और पर्यावरण के लिये घातक बन रही है। पानी, लकड़ी और रसायनों का बढ़ता प्रयोग इसके स्वरूप को दूषित कर रहा है।
हमारा प्रयास है कि हम लोगों को पर्यावरण के प्रति सजग करें और ग्रीन होली (पर्यावरण मित्र बनकर) का पर्व मनायें। लकड़ी का यथासंभव कम से कम प्रयोग करके विकल्प के तौर पर कंडे इस्तेमाल करें। लकड़ी का प्रयोग करना ही है तो फिर हरे-भरे पेड़ नहीं काटें। अब वक्त आ गया है कि बिगड़ते पर्यावरण को बचाने के लिये हमें अपने त्योहारों के स्वरूप को भी बदलना होगा। ऐसे में होली के त्योहार को भी पर्यावरण सम्मत रूप से मनाए जाने पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए।
– यहां हम इस श्रंखला में शहर के कुछ लोगों के विचार देंगे जो नागरिकों को पर्यावरण मित्र होली खेलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इस श्रंखला में रेस्टॉरेंट संचालक राकेश गौर (Rakesh Gaur) के विचार हैं कि होली पर्व मनायें, लेकिन हमारी भावनाएं अपनी जगह है। साथ ही हम पर्यावरण का भी ध्यान रखें। केवल हरे-भरे पेड़ न काटें जाएं, प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करें और पानी का प्रयोग करें, लेकिन ध्यान रखें कि यह कम से कम खर्च हो तो बेहतर है।
– सामाजिक कार्यकर्ता मनीष ठाकुर ( Manish Thakur) का कहना है कि कोरोना का भयावह समय हमने देखा है। ऑक्सीजन की कमी ने मनुष्य को झकझोर दिया था, अत: हमें त्योहार तो मनाना है, लेकिन प्रयास रहे कि इससे पर्यावरण को नुकसान न हो। ध्यान रखना होगा कि हम हरे-भरे वृक्षों को नुकसान न करें। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो हम वर्षों-बरस हमारी होली जैसा पर्व मना सकेंगे।