कलेक्टर किस्सा गोई: एक साहब बहादुर ऐसे भी…

Post by: Poonam Soni

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झरोखा: पंकज पटेरिया। नर्मदापुरम होशंगाबाद के एक बेहद सीनियर हमारे साथी पत्रकार हो गये है, कीर्ति शेष भाई कल्याण जैन। उन्हें प्यार सम्मान से लोग दद्दा कहते थे। अपनी भारी भरकम काया, सोने चांदी की यानी सराफे की दुकान का व्यवसाय, और विरासत में मिली पत्रकारिता उनका गोया छूटती नहीं, कमवख्त मुंह से लगा एक जबरदस्त नशा या शौक था उनका खरी खरी बात लिखना।
नतीजे की परवाह न करना और हंसी ठिठोली के गुब्बारे फोडऩा प्रियशगल था। इसके चलते उनकी भिडंत अकसर मंत्री, अफसर किसी से भी हो जाती थी। यार तुम या तू उनका पहला सिग्नेचर संबोधन होता था। कभी कभी लोगो को बुरा भी लगता था, लेकिन उनकी हसोड खुशमिजाजी के चलते लोग माइंड नहीं करते थे। लेकिन एक बार यही तू-तुम के संबोधन से तू-तू, मैं-मैें की विकट स्थिति बन गई थी। युवा आईएस ऑफिसर की एशोसियेशन खासी नाराज हो गई थी, तात्कालिक कुशल प्रशासक कलेक्टर प्रशांत मेहता को हड़ताल का नोटिस देकर इन ताजा ताजा जिले में पोस्ट हुए साहब बहादुरो ने बड़ी दुविधा में डाल दिया था। इधर कलम बहादुर पत्रकार भी लामबंद होने लगें कि यदि पत्रकार के खिलाफ कुछ एक्शन होता है, तो डटकर मुकवला किया जाए।

कलेक्टर साहब अपनी कर्मठता, कार्यशैली और सौम्य व्यवहार के कारण प्रेस सहित सभी वर्गो में लोकप्रिय थे। मामला बहुत ही मामूली था। उन दिनों शहर के एक इलाके मे पीने के पानी की बड़ी किल्लत थी। नगरपालिका परिषद सीमित साधनों से पानी पाइप लाइन से सप्लाई करती थी। कुछ लोग पानी का फ्लो बढाने के लिए नीचे छोटी मोटर लगा लेते थे। उससे अगले पड़ाव पर पानी नहीं पहुंच पाता था। कलेक्टर को शिकायत हुई, लिहाजा उन्होंने
एक युवा आईएस अफसर संभवत वे नगर प्रशासक भी थे को जांच करने लगाया। बिल्कुल नए-नए जोशखरोश से भरे साहब बहादुर एक डॉक्टर यानी बेहतरीन सर्जन भी थे। लेकिन आईएस में चयन हो जाने से ट्रेनिंग में इधर पोस्टिंग हुई थी। बहरहाल जांच करते नालियों के किनारे पाइप लाइन के पास कुछ मोटरे जिन्हे शायद टिल्लू पंप कहते थे उन्हें मिली जो उन्होंने जब्त कर ली। हालाकि इन मोटरो से कल्याण भाई का कुछ लेना देना नही था, पर होना था विवाद तो बस तू अथवा यार तुम कहने भर से तल्खीयत
इतनी बड़ी की कलेक्टर साहब भी परेशान।

उन्होंने मुझे और तात्कालिक पीआरो को फोन कर समस्या का हल लिकालने का आग्रह किया, ताकि सोहद्रपूर्ण ढंग से मामला निपटे। मैं उन दिनों दैनिक भास्कर का होशंगाबाद संवाददाता था, मित्र तुलसी दास(कीर्ति शेष)जी ने उन अफसर से अनुरोध किया कि वे पीआरओ ऑफिस में पधारे, हम लोग जैन को लेकर पहुंच रहे हैं। दोनो पक्ष बैठ कर बातचीत कर विचार कर लें। कलेक्टर साहब भी यही चाहते थे। लिहाजा वे अफसर पीआरओ दफ्तर आ गए। पीआरओ प्रकाश दीक्षित भी मौजूद रहे, चर्चा शुरू हुई। वे युवा अफसर बोले मेरे पिता माताजी मुझे तू तुम नही बोलते कभी? ये जनाब लगातार त, तुम ही बोलते रहे, मैं यह सहन नही कर सकता। इट्स शेम फूल। कल्याण भाई थोड़ी थोड़ी देर यार तू, तुम मेरे लड़के के समान हो बोलते बीच मे कूद पड़ते, स्थिति बनते बनते फिर बिगड़ जाती। भारी मशकत के बाद सुलह हुई। तू, तुम से आप पर आकर बर्फी का पीस एक दूसरे को खिला हाथ मिलवा कर इस मामले का खात्मा हुआ। कलेक्टर साहब ने स्वयं फोन कर इस सम्मान पूर्ण स्थिति की बहाली पर साधूवाद दिया। लिहाजा ठीक ही कहा किसी ने।
सोच समझ कर शब्द बोलिए, शब्द के होत दो भाव।
एक शब्द औषधि करत, एक शब्द करत घाव।
नर्मदे हर।

pankaj pateriya

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार 9340244352,9407505691

 

 

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