सोचकर भी हैरानी होती है, जो करोड़ों दिलों के हीरो होते हैं, क्या वे इतना भी ज्ञान नहीं रखते कि नियम क्या हैं? पिछले दिनों मुंबई में कोरोना का प्रोटोकाल तोड़ते हुए सुरेश रैना, गुरु रंधावा और सुजैन खान जैसी हस्तियों में से यह कहा गया कि उनको नहीं मालूम था कि यहां कर्फ्यू चल रहा है। माना जाए, कि ये सिर्फ अपने पेशे की हद तक ज्ञान रखते हैं, उससे बाहर की दुनिया का इनको पता नहीं होता, हास्यास्पद सा लगता है। करोड़ों दिलों में अपनी कला के जरिए राज करने वाले इन सेलेब्रिटीज़ की इस तरह की हरकतों से क्या संदेश जाएगा? वैसे ही इस देश के कई शहरों में लोगों ने कोरोनाकाल में इतने नियम तोड़े कि सरकार की नाक में दम कर दिया। सुरक्षा कर्मी पिटाई करें तो उनको भला-बुरा कहा गया। सरकारों को कोसा गया कि बेरहमी से मार रहे हैं, और सरकार देख रही है। क्या करें, प्यार की भाषा ये लोग समझ नहीं रहे थे। अब ये तमाम बड़े लोग भी यही सब कर रहे हैं, हस्तियां हैं तो उनकी पिटाई तो नहीं हुई, लेकिन ऐसे लोगों को माफ कतई नहीं करना चाहिए, ताकि आमजन में भी संदेश जाए कि चाहे छोटो हो गया बड़ा, नियम तोड़ेगा तो सजा का हकदार होगा।
कोरोना नियमों को धता बताते हुए मुंबई के एक क्लब में पार्टी कर रहे सुरेश रैना, गुरु रंधावा, सुजेन खान आदि सेलिब्रिटी की गिरफ्तारी और फिर जमानत पर रिहा होने की घटना भी देश की अन्य बड़ी घटनाओं की तरह थोड़े दिन बाद लोग भूल जाएंगे। उन पर दर्ज मुकदमे भी अन्य कई अनजान मुकदमों की तरह चलेंगे और एक दिन पता चलेगा कि जुर्माना, या माफी मिल गयी या फिर अदालत जो भी तय करे, लेकिन इसमें बहुत जल्द कुछ निर्णय होने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि अदालतों पर पहले ही मुकदमों का बोझ रहता है, उस पर ऐसे लोग गैरजिम्मेदारी का परिचय देते हैं। जो करोड़ों दिलों में राज करते हैं और उनके फैन उनकी तरह बनना या जीना चाहते हैं, ऐसे लोगों का आचरण हम सोचने को मजबूर करता है।
कोरोना ने देश के हर छोटे-बड़े शहर को अपनी चपेट में लिया है और अपने पीछे कई भयावह यादें छोड़कर गया है। यह एक ऐसा वायरस है, जिसे किसी से कोई लगाव नहीं। चाहे वे सेलेब्रिटी हो, नेता हो,आम आदमी हो। वह झुग्गी में रहता है या गगनचुंबी इमारतों में। सबको इसने अपना शिकार बनाया है। हम कई ऐसी हस्तियों को खो चुके हैं, जिनकी देश को अभी और जरूरत थीं, उनके अनुभवों से देश को आगे ले जाया जा सकता था, इतने बड़े नुकसान के बाद हम अपने हर छोटे-बड़े नागरिकों से जिस जिम्मेदारी की अपेक्षा करते हैं, वह आज भी नहीं दिखती है। कोरोना कुछ कमजोर क्या हुआ, भेड़ चाल शुरु हो गयी, जैसी दिसंबर 2019 तक थी। ऐसे लोगों को क्या कहें, जिनसे अपने फैन को नियम फालो करने की अपील करने की जरूरत है, वे स्वयं नियम तोड़ रहे हैं।
इन लोगों के पास पैसों की कमी नहीं, यदि ये पांच साल भी घर बैठ जाएं तो खाने-पीने की चिंता तो न रहे, ये लोग उन लोगों के विषय में जरा भी नहीं सोचते जो पांच घंटे भी घर बैठ जाएं तो उनके यहां शाम के भोजन की मुश्किल हो जाए। फिर भी ये मेहनतकश इन लोगों को अपना हीरो, अपना आदर्श मानते हैं। लानत भेजनी चाहिए, ऐसे लोगों की इस तरह की गैरजिम्मेदाराना हरकतों पर। ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई करके गैरजिम्मेदाराना हरकतें करने वालों को एक कड़ा संदेश देना चाहिए कि जो गलती करेगा, सजा पाएगा, चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो। ऐसे लोग जिनकी देश इज्जत करता है, कानून की इज्जत उतारने पर तुले हैं। वैसे भी इस देश में लॉकडाउन के दौरान लगायी गयी पाबंदियों की किस तरह से धज्जियां उड़ाई गयीं हैं, यह देश ने देखा है। जो लोग जिम्मेदारी से पेट बांधकर घर बैठे, मुसीबतों के बावजूद मानवता की चिंता करते हुए उन्होंने अपने जिम्मेदार नागरिक होने का परिचय दिया, वे घर में बैठे उन लोगों को देखते और कोसते रहे जो कानून की इज्जत उतार रहे थे।
आज भले ही कोरोना की वैक्सीन आने का दावा किया जा रहा है, दावा इसलिए कि कोई भी वैक्सीन शत-प्रतिशत सुरक्षित नहीं हो सकती। अभी वैक्सीन का असर भी दुनिया के सामने ठीक से नहीं आया है। दुनिया भर के चिकित्सा विशेषज्ञ विगत दस महीने से हमें आगाह कर रहे हैं, उपाय बताये जा रहे हैं, सुरक्षा नियमों का पालन करने की अपील कर रहे हैं। लेकिन, कुछ लोगों को इससे कोई लेना-देना नहीं। हमने जिम्मेदारों को देखा है, नियम तोड़ते हुए। नेताओं ने चुनावी रैलियां कीं, जैसे ही वैवाहिक आयोजन प्रारंभ हुए, कोरोना का भय समाप्त हो गया और पचास लोगों की अनुमति पर पांच सौ और हजार लोग पहुंचते रहे। आज दो सौ की अनुमति पर दो हजार पहुंच रहे हैं। धार्मिक आयोजनों में भीड़ बढ़ रही है, बाजार में क्या दुकानदार, क्या ग्राहक, सबने मास्क पहनने से परहेज शुरु कर दिया है। अस्पताल में कोरोना जांच में मरीजों की संख्या में आयी बड़ी गिरावट को लोगों ने चमत्कार समझकर यह मान लिया कि अब कोरोना खत्म हो गया। लेकिन, इस गिरावट के पीछे प्रशासन, शासन, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पुलिस, चिकित्सा विभाग का जो त्याग रहा है, उसे पल में भुला दिया। डॉक्टर्स, नर्सेस, और पैरामेडिकल स्टाफ कई-कई दिन घर नहीं गया, रात और दिन पुलिस ने सड़कों, गलियों में गुजारी है, यह अब किसी को याद नहीं। केवल वे ही जानते हैं, जिन्होंने इस पीड़ा को महसूस किया है। अब भी कोरोना का खतरा टला नहीं है, हमने अपने व्यवहार में जिम्मेदारी नहीं दिखायी तो आज भी बचाव मुश्किल है। लोग बिना मास्क के घूम रहे हैं।
महामारी के जिस मोड़ पर अभी देश-दुनिया खड़ी है, उसमें चिंता कम जरूरी हुई है, खत्म नहीं। क्योंकि कोरोना गया नहीं है, चोला बदलकर फिर आ गया है। यूरोप के कई देशों में फिर से सख्त नियम लागू करने प्रारंभ कर दिये हैं। वहां इस तरह के फैसलों से राजनीति नहीं होती है, हमारे देश में सरकार के फैसलों पर सवाल उठाए जाते हैं, यूरोपीय देशों में हमारे जितनी खराब स्थिति नहीं है, वहां कुछ दिन लोग सह लेते हैं, यहां कुछ घंटे भी सह पाना मुमकिन नहीं होता है। ब्रिटेन से इस वायरस के नए रूप की जो खबर आ रही ई है, उसने दुनिया भर में एक नया खौफ पैदा कर दिया है। यद्यपि, विश्व स्वास्थ्य संगठन के बयान में कहा है कि यह ‘बेकाबू’ नहीं है, फिर भी वायरस तेजी से फैलने की बात को गंभीरता से नहीं लेना घातक साबित हो सकता है। बतौर सावधानी अनेक देशों ने ब्रिटेन से किसी के भी अपने देश में आने पर रोक लगा दी है।
समझाना होगा कि इस वैश्विक महामारी ने दुनिया को हर मोर्चे पर पीछे किया है। अत: हमें प्रधानमंत्री के उस वाक्य का पालन करना चाहिए, कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। क्या, लोग उसका पालन कर रहे हैं? यदि नहीं तो फिर खामियाजा भी हमें ही भुगतना पड़ेगा। नहीं तो जब तक वैक्सीन के जरिए कोरोना का खात्मा नहीं होता, हमें ईमादारी से प्रोटोकाल को मानना होगा। सेलेब्रिटी से भी उम्मीद है कि वे अपना सामाजिक आचरण सुधारें और अपने फैंस के दिलों को इस तरह न तोड़ें कि आप एक ही हरकत से हीरो से जीरो बन जाएं।