हरियाली तीज क्यों मनाई जाती हैं जाने महत्व, पूजा विधि, पूजन सामग्री, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा सम्पूूूर्ण जानकारी
हरियाली तीज (Hariyali Teej)
सावन के महीने मे आने वाली हरियाली तीज को विशेष त्योहार माना जाता हैं। प्रतिवर्ष श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह त्यौहार मनाया जाता हैं। यह दिन सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं के लिए विशेष दिन होता हैं।
ऐसी मान्यता हैं यदि हरियाली तीज के दिन सुहागिन स्त्रियां यदि विधि विधान से माता पार्वती और भगवान शिव का पूजन करें तो उनका वैवाहिक जीवन सुखमय होता हैं और पति को दीर्घ आयु प्राप्त होती हैं। अगर कुंवारी कन्या देवी पार्वती और भगवान शिव का व्रत करें तो उन्हें मनचाहा वर प्राप्त होता हैं।
हरियाली तीज शुभ मुहूर्त (Hariyali Teej Auspicious Time)
- इस वर्ष हरियाली तीज 31 जुलाई 2022 मनाई जायेगी।
- पूजा मुहूर्त – सुबह 6:03 बजे से सुबह 8:33 बजे तक।
- हरियाली तीज मुहूर्त – सुबह 6 बजकर 30 मिनट से 8 बजकर 33 मिनट तक हैं।
हरियाली तीज क्यों मनाई जाती हैं (Why Is Hariyali Teej Celebrated)
पौराणिक हिन्दू घर्म की मान्यता अनुसार हरियाली तीज व्रत करके ही माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न किया था। और इसी दिन भगवान शिव ने पार्वती को अपनी पत्नी के रूप स्वीकार किया था। भगवान शिव को प्रसन्न करना इतना आसान नहीं था। माता पार्वती के कठिन तप के बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार किया था।
हरियाली तीज महत्त्व (Hariyali Teej Significance
हिन्दू धर्म वर्ष में चार हरियाली तीज आती हैं। और हर तीज का अपना अलग महत्व होता हैं। हरियाली तीज का महत्व सुहागिन महिलाओं और कुवांरी कन्याओं के लिए बहुत अधिक होता हैं। हरियाली तीज को श्रावणी तीज और सिंधारा तीज भी कहते हैं। इस व्रत का एक और उद्देश्य हैं हरियाली तीज के व्रत के द्वारा लोग भगवान से अच्छी वर्षा की कामना भी करते हैं।
हरियाली तीज पूजन सामग्री (Hariyali Teej Pooja Material)
- गीली काली मिट्टी, बालू रेत
- केले का पत्ता
- बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी।
- जनैव, नाडा, वस्त्र।
- सुहाग का सामान चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, सिंदूर, कंघी, मेहँदी आदि।
- घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, श्री फल, कलश।
- घी, दही, शक्कर, दूध, शहद।
हरियाली तीज पूजन-विधि (Hariyali Teej Worship Method)
- सबसे पहले महिलाएं स्नान आदि से निवृत्त होकर नए वस्त्र पहनें।
- उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा रखकर व्रत या पूजन का संकल्प लें। हरियाली तीज व्रत के लिए भगवान शिव माता पार्वती और भगवान गणेश की मूर्ति बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनानी चाहिए।
- उसके बाद तीनो मूर्ति को केले के पत्ते पर बैठा कर कलश के उपर नारियल रखना चाहिए।
- उसके बाद मूर्ति का पूजन कर कलश पर विधि विधान से नाडा बाँधना चाहिए। और कुमकुम, हल्दी,पुष्प चावल चढ़ाना चाहिए।
- इसके बाद हरियाली तीज की कथा पढ़नी चाहिए।
- उसके बाद सबसे पहले गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की गा कर पूजा करनी चाहिए।
- पूजा के बाद भगवान की परिक्रमा करनी चाहिए।
- ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया चाहिए और उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडना चाहिए।
- अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित कर देना चाहिए।
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सिंजारा का महत्व (Significance of Sinjara)
हरियाली तीज पर शादीशुदा महिला को उनके मायके से सिंजारा भेट किया जाता हैं। यह हरियाली तीज से एक या दो दिन पहले आता हैं। इसमें मायके से कपड़े, आभूषण, श्रृंगार का सामान और खाने-पीने की वस्तुएं होती हैं।
ऐसी मान्यता हैं कि मायके से आने वाले सिंजारे से ही बेटी के लिए शुभकामनाएं भेजी जाती हैं। और जिन लड़कियों का रिश्ता की बात हो जाती हैं उनके लिए ससुराल से सुहाग का सामान भेजा जाता हैं। जिसमें कपड़े, मेंहदी, श्रृंगार और मिठाई शामिल होती हैं।
हरे रंग का महत्व (Importance of Green)
हरा रंग शांति प्रदान करने वाला रंग माना जाता हैं ऐसी मान्यता हैं कि यह महीना हरियाली का होता हैं साथ ही हरा रंग खुशहाली का प्रतीक होता हैं। इस दिन हरे रंग से मां पार्वती और शिव भी प्रसन्न होते हैं। इसलिए महिलाओं और कन्याएं को इस दिन हरे रंग के वस्त्र और चूड़ियां पहननी चाहिए।
हरियाली तीज व्रत कथा (Hariyali Teej Vrat Story)
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता गौरी ने सती के बाद हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। बचपन से ही माता पार्वती भगवान शिव को वर बनाना चाहती थी। इसके लिए माता पार्वती ने कठोर ताप किया उन्होंने कड़कती ठण्ड में पानी में खड़े रहकर, गर्मी में यज्ञ के सामने बैठकर यज्ञ किया और 12 वर्ष तक निराहार पत्तें को खाकर पार्वती हरियाली तीज का व्रत किया।
उनकी इस निष्ठा से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने हिमालय के पास माता पार्वती से विवाह हेतु प्रस्ताव भेजा। जिससे हिमालय बहुत प्रसन्न हुआ और पार्वती को विवाह की बात बताई। जिससे पार्वती बहुत दुखी हुई और जीवन त्याग देने की बात कहने लगी। यह सुन कर सखी ने माता पार्वती को हरकर वन में ले गई जहाँ माता पार्वती ने तपस्या की थी।
वहा माता पार्वती को भगवान शिव ने दर्शन दिये और पति रूप में मिलने का वर दिया। तब हिमालय ने इस दुःख एवं तपस्या का कारण पूछा तब पार्वती ने अपने दिल की बात पिता से कही। इसके बाद पुत्री हठ के करण पिता हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान शिव से तय किया।