इटारसी। श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर (Shri Durga Navagraha Temple) में द्वादश पार्थिव ज्योर्तिलिंग का पूजन, अभिषेक एवं एक लाख रूद्रि निर्माण चल रहा है। जिसके तहत शनिवार को केदारनाथ ज्योर्तिलिंग (Kedarnath Jyotirlinga) का पूजन एवं अभिषेक मुख्य यजमान यतेन्द्र नीतू दुबे (Yatendra Neetu Dubey)ने किया । भगवान शिव (Lord Shiva) की भक्ति में ही शिव की शक्ति छिपी हुई है। शिव दाता भी है और तांडवकर्ता भी। शिव के बिना सृष्टि कैसी और सृष्टि के बिना शिव कैसे। सावन मास में ज्योर्तिलिंग का पूजन और अभिषेक अपनी अलग मान्यता रखता है।
उक्त उद्गार श्री द्वादश ज्योर्तिलिंग के मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे (Acharya Pt. Vinod Dubey) ने केदारनाथ ज्योर्तिलिंग के अभिषेक के समय व्यक्त किए। बारह ज्योर्तिलिंगों के पूजन और अभिषेक के अंतर्गत केदारनाथ ज्योर्तिलिंग का पूजन अभिषेक संपन्न हुआ। पं. विनोद दुबे ने कहा कि कौरव-पांडवों के युद्ध में अपने लोगों की अपनों द्वारा ही हत्या हुई। पापलाक्षन करने के लिए पांडव तीर्थ स्थान काशी (Kashi) पहुंचे। परंतु भगवान विश्वेश्वरजी उस समय हिमालय (Himalayas) के कैलाश पर गए हुए हैं, यह सूचना उन्हें वहां मिली। इसे सुन पांडव काशी से निकलकर हरिद्वार (Haridwar) होकर हिमालय की गोद में पहुंचे। दूर से ही उन्हें भगवान शंकरजी के दर्शन हुए। परंतु पांडवों को देखकर भगवान शिव शंकर वहां से लुप्त हो गए।
यह देखकर धर्मराज बोले, ” है देव, हम पापियों को देखकर शंकर भगवान लुप्त हुए हैं। प्रभु हम आपको ढूंढ निकालेंगे। आपके दर्शनों से हम पाप विमुक्त होंगे। हमें देख जहां आप लुप्त हुए हैं वह स्थान अब ‘गुप्त काशी’ के रूप में पवित्र तीर्थ बनेगा। पं. विनोद दुबे ने कहा कि पांडव गुप्त काशी (रूद प्रयाग) से आगे निकलकर हिमालय के कैलाश, गौरी कुंड के प्रदेश में घूमते रहे और भगवान शिव शंकर को ढूंढते रहे। इतने में नकुल-सहदेव को एक भैंसा दिखाई दिया उसका अनोखा रूप देखकर धर्मराज ने कहा कि शंकर ने ही यह भैंसे का रूप धारण किया हुआ है, वे हमारी परीक्षा ले रहे है।
पं. विनोद दुबे ने कहा कि गदाधारी भीम उस भैंसे के पीछे लग गए। भैंस उछल पड़ा, भीम के हाथ नहीं लगा। अंतत: भीम थक गए। फिर भी भीम ने गदा प्रहार से भैंसे को घायल कर दिया। घायल भैंसा धरती में मुंह दबाकर बैठ गया। भीम ने उसकी पूंछ पकड़कर खींचा। भैंसे का मुंह इस खीचातानी से सीधे नेपाल में जा पहुंचा। भैंसे का पाश्र्व भाग केदारनाथ में ही रहा। नेपाल में वह पशुपति नाथ के नाम से जाना जाने लगा। पं. विनोद दुबे ने कहा कि महेश के उस पाश्र्व भाग से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई। दिव्य ज्योति में से शंकर भगवान प्रकट हुए। पांडवों को उन्होंने दर्शन दिए। शंकर भगवान के दर्शन से पांडवों का पापहरण हुआ। शंकर भगवान ने पांडवों से कहा, मैं अब यहां इसी त्रिकोणाकार में ज्योर्तिलिंग के रूप में सदैव रहूूंगा।
केदारनाथ के दर्शन से मेरे भक्तगण पावन होंगे। पं. विनोद दुबे ने बताया कि कार्तिक माह में शुद्ध घी का नंदा दीपक जलाकर भगवान को नीचे उखी मठ लाया जाता है। वैशाख में जब बर्फ पिघल जाती है तब केदारनाथ के पट पुन: खोल दिए जाते है। केदारनाथ का मार्ग अति जटिल है। फिर भी यात्री यहां पहुंचते हैं। पं. दुबे ने कहा कि कुछ वर्षो पूर्व केदारनाथ क्षेत्र में आपदा आई लेकिन केदारनाथ शिवलिंग का कुछ भी नहीं बिगड़ा यह शिव का ही चमत्कार है।