कैसे करें जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्‍ण को प्रसन्न जाने 2022

कैसे करें जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्‍ण को प्रसन्न जाने 2022

जन्माष्टमी क्यों मनायी जाती हैंं, जाने शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजन सामग्री, व्रत विधि, व्रत  कथा, आरती सम्‍पूर्ण जानकारी

जन्माष्टमी क्यों मनायी जाती है (Why Is Janmashtami Celebrated)

हिंदू धर्म में जन्माष्टमी का त्‍यौहार एक बहुत ही महत्वपूर्ण होता हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है ऐसा माना जाता हैं कि कंस मामा के अत्याचार को सहते हुए माता देवकी और वासुदेव कारागार में बंद थे। जहां उनकी आठवीं संतान के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने जन्माष्टमी के दिन ही मध्य रात्रि में कारागार में जन्‍म लिया था। और जन्‍म लेने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण ने खुद को कारागार से मुक्त किया।

इसके बाद अपने माता-पिता को बचाने के लिए मथुरा आए और मामा कंस के पापों से मथुरा वासियों को बचाया। भगवान श्री कृष्‍ण ने ही द्वापर युग में धर्म का मार्ग दिखाया और गीता का ज्ञान दिया। इसके बाद भगवान कृष्ण द्वारका के राजा बने और अपने बचपन और ज्ञान के वजह से विश्व भर में विख्यात हुए। प्रतिवर्ष इसी दिन भगवान के घरती पर जन्म होने के कारण बडे उत्‍साह के साथ कृष्ण जन्माष्टमी का त्‍यौहार बनाया जाता हैं।

जन्माष्टमी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त (Janmashtami 2022 Date And Auspicious Time)

जन्माष्टमी

  • इस वर्ष जन्माष्टमी का त्‍यौहार 18 अगस्त 2022, गुरुवार को मनाया जाएगा।
  • अष्टमी तिथि का आरंभ : 18 अगस्त, गुरुवार रात्रि 09 : 21 मिनट से
  • अष्टमी तिथि का समाप्त : 19 अगस्त, शुक्रवार रात्रि 10:59 मिनट तक

जन्माष्टमी का महत्व (Significance of Krishna Janmashtami) 

जन्माष्टमी

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण को ही विष्णु अवतार माना जाता है। हिन्‍दू धर्म में जन्माष्‍टमी त्‍यौहार का बहुत अधिक महत्‍व हैं। इस दिन भगवान कृष्ण का आशीर्वाद पाने के लिए उपवास करते हैं और पूर्ण भक्ति भाव से भगवान की उपासना करते हैं। भगवान श्री कृष्ण के धरती पर अवतार लेने से कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व बहुत अधिक माना जाता है।

इस दिन जब कोई महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण की पूर्ण भक्ति भाव से उपासना करती है तो उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती हैं। साथ ही जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा दोष होता है उनके लिए कृष्ण जन्माष्टमी के दिन उपवास करना बहुत अधिक लाभदायक होता है।

हिंदू धर्म में मान्यता है कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन और पूर्ण भक्ति भाव से भगवान श्री कृष्‍ण की उपासना करते हैं तो उन्‍हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं।

जन्माष्टमी पूजन सामग्री (Shri Krishna Janmashtami Worship Material)

जन्माष्टमी

धूपबत्ती, कपूर, केसर, चंदन, कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, फूल माला, पंचमेवा, गंगाजल, शहद, शक्कर, शुद्ध घी, दही, दूध, फल, मिठाई, सिंहासन, झूला, पंच पल्लव, पंचामृत, केले के पत्ते, औषधि, श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर, भगवान गणेश की तस्वीर, भगवान के वस्त्र, नारियल, चावल, गेहूं, गुलाब और लाल कमल के फूल, आदि।

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जन्माष्टमी व्रत विधि (Janmashtami Fasting Method)

जन्माष्टमी

  • जन्माष्टमी के दिन रात 12 बजे भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए पूजा भी रात 12 बजे होती हैं।
  • जन्‍माष्‍टमी व्रत के दिन सुबह उठकर स्नानादि निवृत्त हो कर भगवान श्री कृष्‍ण से प्रार्थना कर व्रत का संकल्‍प लेना चाहिए।
  • इसके बाद भगवान श्री कृष्‍ण की प्रतिमा बाल-गोपाल को गंगाजल से स्नान कराया चाहिए और नए वस्त्र पहनाने चाहिए। इसके बाद भगवान कृष्ण के लिए झूला बनाकर उनकी प्रतिमा को बैठाना चाहिए।
  • इसके बाद उन्हें मोरपंख, बांसुरी, मुकुट, चंदन, वैजंयती माला, तुलसी दल आदि से सजाया जाता है।
  • इसके बाद उन्हें फल, फूल, मखाने, मक्खन, मिश्री का भोग, मिठाई, मेवे आदि अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान श्री कृष्ण के सामने दीप-धूप जलाना चाहिए।

जन्माष्टमी से व्रत कथा (Story of Krishna Janmashtami)

हिंदू धर्म की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय मथुरा में कंस नाम के राजा का राज था। वह एक पापी में और दुराचारी राजा था जो अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था। उसने अपनी बहन देवकी का विवाह है राजकुमार वासुदेव से करवाया दिया। जब विवाह बहुत ही धूमधाम से पूरा हो गया और कंस अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को उसके राज्य लेकर जा रहा था।

तभी रास्ते एक साधु ने आकाशवाणी कि और बताया की बहन देवकी का आठवां पुत्र ही कंस की मृत्यु का कारण बनेगा। कंस ने जब इस आकाशवाणी को सुना तो उसने देवकी को मारने की कोशिश की। तभी देवकी के पति वासुदेव देवकी बचा लिया और कंस से वादा किया की वह अपने सभी संतान को कंस के पास पहुंचा देंगे। यह सुनकर कंस ने देवकी को छोड़ दिया और उसे उसके पति के साथ कारागार में बंदी कर दिया।

जब देवकी की पहली संतान हुई तो कंस ने उसे मार दिया और इसी तरह वह लगातार देवकी की संतानों को पैदा होते ही मार देता था। इसके बाद एक दिन मध्य रात्रि में भाद्रपद के महीने में कृष्ण पक्ष और रोहिणी नक्षत्र में आठवीं संतान का जन्म होता है। देवकी की यह संतान भगवान विष्णु का अवतार था।

इसलिए भगवान ने अपनी चमत्कारी माया से खुद को गोकुल में एक ग्वाले के घर पहुंचा दिया जहां उनकी माता का नाम देवकी था और उनके घर जिस बच्ची ने जन्म लिया था उसे आठवीं संतान के रूप में कंस के कारागार में पहुंचा देते हैं। कंस उस बच्ची को मार देता है, इसके बाद कंस ने गोकुल में जन्म लेने वाले भगवान श्री कृष्‍ण के बारे मे पता चहला हैंं।

तब वह कृष्‍ण को मारने की बहुत कोशिश करता है लेकिन वह हर वार पराजित होता हैं इसके बाद भगवान श्री कृष्ण कंस के महल में पुनः जाते है और उसे मल युद्ध के दौरान मार देते है और मथुरा गोकुल और वृंदावन में रहने वाले सभी को कंस के अत्याचारों से मुक्‍त कर देते हैं।

भगवान श्री कृष्‍ण की आरती (Lord Shri Krishna Aarti)

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला । श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली । लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की ॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं । गगन सों सुमन रासि बरसै ।

बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग,

अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की ॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा । स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच,

चरन छवि श्रीबनवारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की ॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू । चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद,

टेर सुन दीन दुखारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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