स्मृतियाँ शेष : पत्रकारिता के पुरोधा का पुण्य स्मरण

Post by: Manju Thakur

झरोखा – पंकज पटेरिया : नर्मदांचल की पत्रकारिता के पुरोधा स्व प्रेम शंकर दुबे बेहद जहीन शख्सियत थे। वे कहते थे जर्नेलिजम इज ट्रस्ट एंड जर्नलिस्ट इस ट्रस्टी। मेरी पीढ़ी के पत्रकार उन्हें दददा जी कहते थे। हमारे परिवार से उनके आत्मीय संबंध थे। राजधानी भोपाल से पढाई लिखाई के बाद मैं गृह जिले होशंगाबाद आया ७० के दशक में पत्रकरिता शुरू की, तो बड़े भाई जो उन दिनों आकाशवाणी भोपाल में सेवारत थे मनोहर पटेरिया मधुर जी ने मुझसे कहा था कभी इटारसी जाकर दुबे जी से मिल आशीर्वाद लेना, वे बहुत सीनियर पत्रकार है। बहरहाल एक दिन इटारसी आकर स्टेशन के सामने उनकी दुकान पर पहुंच उनसे मिला।अपना परिचय दिया। दादा जी बहुत प्रसन्न हुए, बोले अपने दीपक आप हो, अच्छे घर परिवार से हो तुम्हे लिखने पढने के संस्कार जन्मघुटी में मिले है, पर भोपाल छोड़ होशंगाबाद पत्रकारिता करने आए? बड़ी पथरीली डगर है बहुत लड़ना पड़ता है रास्ता बनाने में। खैर, चलो कोई बात नहीं। होसला रखो जुट जाओ, नर्मदा मैया मार्ग प्रशस्त करेगी। स्पस्ट दिखता है, अलग पहचाने जाओगे। बस एक मंत्र खूब पढ़ो करो खूब लिखो। दादा जी का आशीर्वाद लेकर में होशंगाबाद आया और पहला डिस्पैच अखबार को भेजा बदबू में डूबे जग प्रसिद्ध घाट। खबर टॉक ऑफ टाउन बन गई। दद्दा जी बहुत खुश हुए। इस तरह के मुकाम आते जाते रहे। मुझे राजनेता
अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते थे मेरे सीनियर भी इगनोर करते थे। मै रोज नर्मदा जी के दर्शन करने जाता ओर आशीर्वाद लेता था। कविताएं लिखता था, तो खबर में कभी कोई पंक्ति या शेर कोट करता था, लोगो को वह रोचक लगने लगा। लोग जानने लगे वहीँ अफसर बुलाने लगे नेता दौरे पर साथ ले जाने लगे । माँ नर्मदा लोभ लालच के जंजाल से बचाती रही। बहुत कड़वे, खट्टे तीखे, अनुभव मिले। जो मेरी डिग्रियां थी उनकी वजह से ४० बरस गुजर गए। लिखना पढ़ना जारी है। ईश्वर की कृपा है। जब तब दददा जी से मिलने जाता रहा प्यार, कभी डांट भरा आशीर्वाद मिलता था।
एक बार इटारसी में नपा ने कवि सम्मेलन आयोजित किया, भैया आमन्त्रित थे। दद्दाजी मिले पूछा कवर करने आए हो या कविता पढ़ने, मेंने कहा जी आमंत्रण नहीं है। प्रोग्राम कवर कर लूँगा ,भैया से मिल लूगा। दादा जी नाराज हो गए। बोले नहीं नहीं ऐसा थोड़े होता है? उन्होंने तात्कालिक नपा अध्यक्ष सरताज सिंह को खबर भेजी, ओर अगले पल मैं मंच पर गीत पढ़ने बुला लिया गया। यह था उनका स्वभाव। गजब के सम्पर्क थे उनके। उस जमाने न तार थे न टेलीफोन की सुविधा, लेंकिन दादा की खबर दूसरे तीसरे दिन दिल्ली मुंबई के अखबारो में सुर्खी बनती थी। दूर तक फैले थे उनके सम्पर्क लेकिन कभी कोई अनुचित लाभ उन्होंने नहीं लिया। खद्दर का लिबास, कबीरा ना फखड़पन साफगोई ईमानदारी उनके व्यक्तित्व के गुण थे। आज ऐसे अच्छे लोग की पीढ़ी लुप्त हो रही है।अब वे फोटो या किस्सा कहानी में ही मिलते है।
आज दादाजी को याद करते सहज अपनी एक कविता अच्छे लोग की पंक्तियां याद आ गई…
अच्छे लोग बड़े नसीब से मिलते, न जाने कितने जन्मों के पुण्य कर्म जुड़ते, जब अच्छे लोग मिलते।
इटारसी का जिला पत्रकार संघ बधाई का अधिकारी है, उनका स्मरण करता ओर किसी पत्रकार को सम्मानित करता। आज जब भी इटारसी जाना होता उनके पुत्र भाई राजेश दुबे से मुलाकात होती, तो लगता अभी अभी दद्दा जी पत्रकार जवाहर सिह जी के साथ कही से घूमते आकर खड़े हो जाएंगे ओर पूछेंगे कहो पंकज दी ग्रेट कैसे हो? लेकिन यह केवल स्मृतियां है जो वेसी ही दुलारती डाटती है। दादा दुबे जी को विदा हुए तो २९ बरस हो गए। स्मृति को नमन।

pankaj pateriya
पंकज पटेरिया वरिष्ठ पत्रकार कवि
सम्पादक शब्द ध्वज
9893903003, 9407505691

1 thought on “स्मृतियाँ शेष : पत्रकारिता के पुरोधा का पुण्य स्मरण”

  1. आदरणीय चाचाजी, आपने पूज्य पिताश्री के संस्मरण के माध्यम से पुरानी यादें ताज़ा कर दी। इस लेख के माध्यम से आदरणीय पिताजी के कई अनछुए पहलू से अवगत हुआ । आपका आशीर्वाद बना रहे। सादर चरणस्पर्श।

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