सुख नाशवान संसार से, आनंद अविनाशी परमात्मा से मिलता है

Post by: Aakash Katare

इटारसी। निकट के ग्राम पलासी में चल रही श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम भंडारे के साथ हुआ। कथा वाचक पं.भगवती प्रसाद तिवारी ने समापन दिवस पर कथा में बताया कि आत्मज्ञानी सतगुरू श्री शुकदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित को समझाया। संसार में प्रत्येक जीवात्माएं मनुष्य आदि सुख, शांति, आनंद की खोज करता है।

जीव को सुख मिलता है लेकिन कभी दु:ख भी भोगना ही पड़ता है। संसार में सुख है, आनंद नहीं है। आनंद तो केवल परमात्मा से ही मिलता है। सुख के साथ दुख लगा हुआ है, लेकिन आनंद के साथ परमानंद, ब्रह्मानन्द, नित्यानंद, अखंडानंद, आत्मानंद लगा हुआ है। सुख और आनंद में बहुत अंतर है। सुख नाशवान संसार से, आनंद अविनाशी परमात्मा से मिलता है। संसार में अनेक प्रकार के दुखों का सामना करना ही पड़ता है, चाहे राजा हो या रंक हो, अमीर हो या गरीब हो, पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ हो, स्त्री हो या पुरुष हो किसी भी जाति, उम्र, धर्म, पंथ, संप्रदाय का हो कर्मानुसार सुख के साथ साथ सभी को दुख, अपमान, निंदा, बुराई, हानि, कलंक आदि न चाहते हुए भी भोगना ही पड़ता है।

इस संसार में दो सबसे बड़े दु:ख है, एक जनम का दूसरा मरण का दु:ख है। इन दोनों दुखों से सदा सदा के लिए बचने का उपाय करना चाहिए। संसार में संयोग सुख देता है, उसी का वियोग दु:ख भी देता है। मिलने का सुख और बिछडऩे का दुख होता है। संयोग में सुख कम मिलता है, वियोग में दुख ज्यादा होता है। हमारा ईश्वर के साथ नित्य संयोग बना बनाया है, जो कभी हम से अलग नहीं है। यह अनुभव जप, तप, ध्यान सेवा, सुमरण और सतगुरु की कृपा से हो जाता है। हम भगवान जी के और भगवान हमारे है। ऐसा माता रूक्मणी जी ने द्वारकाधीश प्रभु को प्राप्त किया है।

कथा में बताया कि मनुष्य को बार-बार सत्संग, सेवा, सुमरण, स्वाध्याय, साधना, तपस्या से ही भगवान जी को जानने में सफल हो सकता है। आज श्रीमद्भागवत कथा में स्यमंतक मणी, जरासंध वध, युधिष्ठिर राजा द्वारा राजसूय यज्ञ, शिशुपाल वध, सुदामा चरित्र, परीक्षित मोक्ष। कथा प्रसंग आध्यत्मिकता के साथ सुनाया। आज पं. तिवारी की सुपुत्री महिमा ने भी सत्संग प्रवचन सेवा में सुनाया।

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